Sunday, March 25, 2012

सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली


-साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त
-रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल
-रवीन्द्रनाथ टैगोरक१५०म जयन्तीपर साहित्य अकादेमीसँ फण्ड लेबा लेल मात्र नाम "कथा रवीन्द्र" राखल गेल
-समाप्ति कालमे संयोजककेँ गलतीक भान भेलन्हि, तखन रवीन्द्रनाथ टैगोरक एकटा कविताक  दू पाँतीक  हिन्दी अनुवाद देवशंकर नवीन पढ़लन्हि
-मात्र १८ टा कथाक पाठ भेल
-७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली, ओना ई ७७म आयोजन होइतए मुदा किएक तँ साहित्य अकादेमीक फण्डसँ संचालित कथा रवीन्द्र प्रभास कुमार चौधरीक शुरु कएल "सगर राति दीप जरय" क भावनाक अपमान कऽ साहित्य अकादेमीक खिलौना बनि गेल तेँ एकरा "सगर राति दीप जरय"क मान्यता नै देल जा सकल।
-एकटा मैथिली न्यूज पोर्टलक महिला संचालकक पति दारू पीबि कऽ आएल रहथि आ भोजनकालोमे हुनकर मुँह भभकैत छलन्हि। ७५म सगर राति दीप जरयमे दारू पीबापर धनाकर ठाकुर जीक विरोधक बाद कथा रवीन्द्र  मे सेहो ऐ तरहक घटना भेलापर साहित्य जगतमे आक्रोश अछि।
-भोजनक उपरान्त कथास्थल खाली भऽ गेल आ अधिकांश वरिष्ठ कथाकार सूतल देखल गेलाह, प्रभास कुमार चौधरीक कथा लेल भरि रातिक जगरना एकटा मखौल बनि कऽ रहि गेल।
-आयोजक स्वयं ऐ गोष्ठीकेँ बभनभोजक संज्ञा देने रहथि आ अन्ततः सएह सिद्ध भेल।
-ई गोष्ठी सगर राति दीप जरयक अन्त आ साहित्य अकादेमीक गोष्ठीक प्रारम्भ रूपमे देखल जा रहल अछि। "सगर राति दीप जरय" आब साहित्य अकादेमी संपोषित भऽ गेल आ ओकर इशारापर हिन्दीक लोकक कब्जा भऽ गेल, जइमे हिन्दीक पोथीक लोकार्पणसँ लऽ कऽ रवीन्द्रक कविताक हिन्दी अनुवादक दू पाँतीक पाठ धरि सम्मिलित रहल।
-टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भ साहित्य अकादेमीक फण्डसँ भेल, आ ऐसँ सगर राति दीप जरयक अन्तक प्रारम्भ मानल जा रहल अछि। मुदा साहित्य अकादेमी द्वारा संपोषित कवि-सम्मेलन आ सेमीनारमे टी.ए., डी.ए. सभ कवि निबन्धकारकेँ देल जाइ छन्हि मुदा एतऽ किछुए गोटेकेँ ई सौभाग्य प्राप्त भेल।
-टी.ए., डी.ए. लेल विभारानीपर सेहो जोर देल गेल  मुदा ओ कहलन्हि जे हुनकर आयोजन व्यक्तिगत रहतन्हि तेँ टी.ए., डी.ए. देब हुनका लेल सम्भव नै, जँ कथाकार लोकनि चेन्नै बिना टी.ए. डी.ए. लेने नै जेता तँ ओ ऐ कार्यक्रमकेँ करबा लेल इच्छुक नै छथि। अजित आजाद कहलन्हि जे हुनका टी.ए., डी.ए.भेटतन्हि तखन ओ जेता। कमल मोहन चुन्नू अजित आजादक समर्थन केलन्हि। मुदा टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भक विरोध आशीष अनचिन्हार केलन्हि तखन जा कऽ मामिला सुलझल।
-विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक सभ मैथिली कथा गोष्ठी, सेमीनारमे होइ छल मुदा साहित्य अकादेमीक फण्डिंगक शुरुआतक बाद "कथा रवीन्द्र"मे विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक अनुमति नै देबाक पाछाँ फण्ड देनिहार साहित्य अकादेमीक सुविधाजनक दबाब भऽ सकैए, से साहित्यकार लोकनिक बीचमे चर्चा अछि।

[-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी दिल्लीमे शुरू भेल/ १२ टा पोथीक लोकार्पण भेल जइमे ४ टा हिन्दीक पोथी छल !!
-कथा रवीन्द्र क रूपमे साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली कथा गोष्ठीक आरम्भ, संयोजक अछि मैलोरंग, देवशंकर नवीन आ प्रकाश
- मैलोरंग एकरा ७६म "सगर राति दीप जरय"क रूपमे आयोजित करबाक नियार केने छल मुदा "सगर राति दीप जरय" मे आइ धरि सरकारी साहित्यिक संस्थासँ फण्ड लेबाक कोनो प्रावधान नै रहै, से ई ७६म "सगर राति दीप जरय"क रूपमे मान्यता नै प्राप्त कऽ सकल।
-साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिलीक ऐ स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़बाक प्रयासक साहित्य जगतमे भर्त्सना कएल जा रहल अछि।
-आशीष चौधरी विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी लेल पोथी जखन पसारऽ लगलाह तँ साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक (कन्फूजन छल जे ई  ७६म "सगर राति दीप जरय"क आयोजन स्थल छी जे एतऽ एलाक बाद पता लागल जे ई साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक रूपमे हैक कऽ लेल गेल अछि।)  एकटा संयोजक प्रकाश झा तकर अनुमति नै देलखिन्ह, जखन कि एकर सूचना दोसर संयोजक देवशंकर नवीनकेँ दऽ देल गेल छल। प्रकाश झा आशीष चौधरीकेँ कहलखिन्ह जे जँ मंगनीमे पोथी बाँटी तँ तकर अनुमति देल जा सकैए, मुदा तकर कोनो सम्भावनासँ आशीष चौधरी मना केलन्हि । तकर बाद आशीष चौधरी विदेहक सम्पादक गजेन्द्र ठाकुरक संग अपन पोथी लऽ कऽ ओतऽ सँ बहरा गेलाह। ऐ कारणसँ किछु मैथिली पोथीक लोकार्पण नै भेल (जे ओना ७६म "सगर राति दीप जरय"मे लोकार्पण लेल आएल छल साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी लेल नै।) ।  ई पहिल बेर अछि जखन कोनो मैथिली गोष्ठीमे मैथिली पोथी बेचबाक अनुमति नै देल गेल, हँ कन्नारोहट होइत रहैए जे मैथिलीमे पोथी नै बिकाइए। साहित्य जगतमे ऐ तरहक जातिवादी गोष्ठी द्वारा कएल जा रहल सरकारी फण्डक मैथिलीक नामपर दुरुपयोगपर चिन्ता व्यक्त कएल जा रहल अछि।
-गजेन्द्र ठाकुर फेसबुकपर लिखलन्हि- जगदीश प्रसाद मण्डल, बेचन ठाकुर, कपिलेश्वर राउत, राजदेव मण्डल, उमेश पासवान, अच्छेलालशास्त्री, दुर्गानन्द मण्डल आदि श्रेष्ठ कथाकार लोकनिकेँ एकटा पोस्टकार्डो नै देबाक आयोजन मण्डलक निर्णय अद्भुत अछि, ओना तै सँ ऐ लेखक सभक स्टेचरपर कोनो फर्क नै पड़तन्हि। भऽ सकैए ७५म गोष्ठीक आयोजक अशोक आ कमलमोहन चुन्नू वर्तमान आयोजककेँ हुनकर सभक पता सायास वा अनायास नै देने हेथिन्ह आ वर्तमान आयोजक केँ से सुविधाजनक लागल हेतन्हि। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आयोजनमे सभ धोआधोतीधारी आ चन्दन टीका पाग धारी भोज खा आएल छथि, मुदा बजेबा कालमे अपन आयोजनकेँ बभनभोज बनेबापर बिर्त छथि।..ओना ई आयोजन साहित्य अकादेमीक फण्डसँ आयोजित भऽ रहल अछि आ एकरा साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी मात्र मानल जाए। मैथिली साहित्यक इतिहासमे ७६ म सगर राति दीप जरयक रूपमे ऐ जातिवादी गोष्ठीकेँ मान्यता नै देल जा सकत। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक जातिवादी चेहरा एक बेर फेर सोझाँ आएल अछि जखन ओ मैथिलीक एकमात्र स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़ि देलक। पवन कुमार साह लिखलन्हि-काल्हि‍ धरि‍ सगर राति‍क आयोजक कोनो संस्‍था नै होइ छल। मुदा आब ई वंधन टूटि‍ गेल।
-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक पहिल सत्रमे विभूति आनन्द (छाहरि), मेनका मल्लिक (मलहम) आ प्रवीण भारद्वाजक (पुरुखारख) कथाक पाठ भेल।  
-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी अध्यक्षता गंगेश गुंजन कऽ रहल छथि।
-कथापर समीक्षा अशोक मेहता आ रमानन्द झा रमण केलन्हि। अशोक मेहता कहलन्हि जे विभूति आनन्दक कथामे किछु शब्दक प्रयोग खटकल। मेनका मल्लिकक भाषाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे एतेक दिनसँ बेगूसरायमे रहलाक बादो हुनकर भाषा अखनो दरभंगा, मधुबनीयेक अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे कथाकार नव छथि से तै हिसाबे हुनकर कथा नीक छन्हि।
-रमानन्द झा रमण विभूति आनन्दक कथामे हिन्दी शब्दक बाहुल्यपर चिन्ता व्यक्त केलन्हि। मेनका मल्लिकक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे महिला लेखन आगाँ बढ़ल अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक भाषाकेँ ओ नैबन्धिक कहलन्हि आ आशा केलन्हि जे आगाँ जा कऽ हुनकर भाषा ठीक भऽ जेतन्हि।
-तकर बाद श्रोताक बेर आएल, सौम्या झा विभूति आनन्दक कथाकेँ अपूर्ण कहलन्हि, मुदा हुनका ई कथा नीक लगलन्हि।  आशीष अनचिन्हार विभूति आनन्दसँ हुनकर कथाक एकटा टेक्निकल शब्द "अभद्र मिस कॉल"क  अर्थ पुछलन्हि तँ देवशंकर नवीन राजकमलक कोनो कथाक असन्दर्भित तथ्यपर २० मिनट धरि विभूति आनन्द जीक बचाव करैत रहला, अनन्तः विभूति आनन्द श्रोताक प्रश्नक उत्तर नै देलन्हि।
-दोसर सत्रमे विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ, विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण, आ दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारक पाठ भेल।  विभा रानीक कथा पर समीक्षा करैत मलंगिया एकरा बोल्ड कथा कहलन्हि, सारंगकुमार कथोपकथनकेँ छोट करबा लेल कहलन्हि, कमल कान्त झा एकरा अस्वभाविक कथा कहलन्हि आ कहलन्हि जे माए बेटाक अवहेलना नै कऽ सकैए, मुदा श्रीधरम कहलन्हि जे जँ बेटाक चरित्र बदलतै तँ मायोक चरित्र बदलतै। कमल मोहन चुन्नू कहलन्हि जे ई कथा घरबाहर मे प्रकाशित अछि। आयोजक कहलन्हि जे  विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ केँ ऐ गोष्ठीसँ बाहर कएल जा रहल अछि।
विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण पर मलंगिया जीक विचार छल जे ई उमेरक हिसाबे प्रेमकथा अछि। सारंग कुमार एकरा महानगरीय कथा कहलन्हि मुदा एकर गढ़निकेँ मजगूत करबाक आवश्यकता अछि, कहलन्हि। श्रीधरम ऐ कथामे लेखकीय इमानदारी देखलन्हि मुदा एकर पुनर्लेखनक आवश्यकतापर जोर देलन्हि। हीरेन्द्रकेँ ई कथा गुलशन नन्दाक कथा मोन पाड़लकन्हि मुदा प्रदीप बिहारी हीरेन्द्रक गपसँ सहमत नै रहथि। ओ एकरा आइ काल्हिक खाढ़ीक कथा कहलन्हि।दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारपर मलंगिया जी किछु नै बजला, ओ कहलन्हि जे ओ ई कथा नै सुनलन्हि। सारंग कुमार एकरा रेखाचित्र कहलन्हि। कमलकान्त झाकेँ ई संस्कारी कथा लगलन्हि। श्रीधरमकेँ आरम्भ नीक आ अन्त खराप लगलन्हि। शुभेन्दु शेखरकेँ जेनेरेशन गैप  सन लगलन्हि आ कमल मोहन चुन्नूकेँ ई यात्रा वृत्तान्त लगलन्हि। दोसर सत्रमे श्रोताक सहभागिता शून्य रहल।..आशीष अनचिन्हार]
प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर औंघाइत---रमानंद झा "रमण" (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार)  

प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर सूतल मैथिलीक कुभंकर्ण---महेन्द्र मलंगिया  (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार) 

प्रभाष कुमार चौधरीक छातीपर सूतल मैथिलीक कुभंकर्ण---विभूति आनंद (चित्र साभार आशीष अनचिन्हार)

1 comment:

  1. "सगर रईत दीप जरई" के ई हालत अत्यंत चितागंक अछि . आस्थापीत लेखक सबहक वव्हार जों आना होतईन त ई चिंताक विषय छि.
    युवा लेखक सब हतोत्साहित होअता. अकर आगीला आयोजन चेन्नई मे क के ग्रामीन लेखक ले दुस्कर सैहो बनोल गैअल. आ जों टी अ /डी अ देल गेल त सब आयोजन नहीं का सकत.
    सम्पूर्ण घटना सं आम आ साधारण लेखक व पाटक हतप्रभ आछी .
    आस्थापित लेखकगन का के परंपराक पालन करबाक चाहीअं, आत्मसायं रखनाय सहो जरूरी .
    सब स बसी कत्थक नाम पर व्यापर आ राजनीति नहीं होबय्क चाही, मैथली क दशा भारतीय साहित्य मे ऊहिना बाद बधिआन नहीं आछी .

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