Monday, January 9, 2012

मैथिलीक अग्निकवि श्री रामलोचन ठाकुरक साक्षात्कार जे कोकिल मंच (कोलकाता)क संस्थापक सदस्य श्री नबोनारायण मिश्र जी द्वारा लेल गेल



मैथिलीक अग्निकवि श्री रामलोचन ठाकुरसँ साक्षात्कार जे कोकिल मंचक श्री नबोनारायण मिश्र जी द्वारा लेल  गेल अछि। ई साक्षात्कार हुनकासँ विदेह द्वारा हुनका समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल जएबाक अवसर पर लेल गेल छल।



प्रश्न--  अपने कलकत्ता कहिआ अएलहुँ?
उत्तर---१९६३ ई.मे।

प्रश्न:--  मिथिला मैथिलीसँ कोना जुड़लहुँ?
उत्तर-- सुखदेव ठाकुर संगे मिथिला-संघमे अएलाक पश्चात।

प्रश्न-- अपनेक मैथिली साहित्य, आंदोलन आ रंगमंचमे सभठाम सक्रिय भूमिका रहल अछि, हम चाहब जे क्रमशः कोन बिन्दुसँ प्रारंभ करैत एखन धरिक जे क्रिया-कलाप अछि ताहि पर अपन विशद जानकारी देबाक कृपा कएल जाए।
उत्तर-- रंगमंच आ आंदोलनक पश्चाते साहित्यसँ जुड़लहुँ। १९७६मे रंगमंच जखन टूटि सन गेलै तकर पश्चाते लेखनमे पूर्णतः सक्रिय भेलहुँ।

प्रश्न-- प्रथम आंदोलन कहिआ भेल रहै जाहिसँ अपनेक सहभागिता दर्ज भेल।
उत्तर---१९७१मे प्रथम आ अंतिम १९८०मे। ९ दिसम्बर १९८०केँ मैथिली मुक्ति मोर्चाक नेतृत्वमे पटनामे विराट प्रदर्शन भेल छल जकर संयोजक हम छलहुँ आ मैथिली आंदोलनक इतिहासमे पहिल बेर मैथिल संतानक शोणितसँ पटनाक राजपथ रंगाएल छल।

प्रश्न-- आंदोलनक प्रेरणा किनकासँ भेटल?
उत्तर-- प्रथम बाबू भोलालाल दास आ दोसर किरणजी।


प्रश्न-- रंगमंचक हेतु पूर्णतः रंगमंचसँ जुड़ल पत्रिका, नाटकक अनुवाद आ अभिनयमे अपनेक योगदानक आइओ चर्चा अछि, एहिमे आइ किनकर नाम लेबए चाहब।
उत्तर---मुख्यतः प्रबीर मुखर्जी जे हमरा लोकनिक निर्देशक छलाह। ओ प्रत्येक नाटकमे हीरोकेँ पार्ट हमरे दैत छलाह। हीरोक पार्ट लेल बहुतो प्रयत्नशील छलाह मुदा हुनकर कहब छलन्हि जे जकरा हम उपयुक्त बुझैत छी से मात्र अहीँटा छी। जे समकालीन लेल इर्खाक कारण सेहो छल।

प्रश्न-- मैथिली साहित्यिक हेतु लेखन, पोथी-प्रकाशन, संपादन आ संग-संपादन बेस अर्चित-चर्चित आइओ अछि, ताहि संदर्भमे अपनेक की कहब अछि।
उत्तर--- पाँचम किलाससँ लिखनाइ प्रारंभ केलहुँ मुदा विधिवत् मिथिला-संघमे अएलाक पश्चात मिथिला-दर्शनसँ जुड़लहुँ। हमर प्रथम पोथी "इतिहासहंता" छपल छल जकर विमोचन यात्रीजी कएने छलाह।

प्रश्न-- संपादनमे कहिआसँ सक्रिय भेलहुँ।
उत्तर---"अग्निपत्र" १९७३ ई.मे जाहिमे डा. विरेन्द्र मल्लिक आ सुकान्त सोम संग छलाह।

प्रश्न-- कतेक अंक छपलैक ?
उत्तर---कुल सातटा अंक।


प्रश्न-- पुनः दोसर कहिआ ?
उत्तर---१९७६ इ.मे एकसरे पुनः प्रारंभ कएलहुँ जकर पाँचटा अंक तत्पश्चात १९८० इ.मे फेर एकटा अंक बहार भेल। जकर संपादनमे बीरेन्द्र मल्लिक आ सुकान्त सोम संग छलाह। मैथिली रंगमंचक मुखपत्र "रंगमंच" तकर संपादन १९७४
इ.मे,१९७५ इ.मे "सुल्फा" नामसँ हस्तलिखित पत्रिका निकालहुँ। मइ १९८१ इ.मे "देसकोस" जकर संपादकमे नाम छल विनोद कुमार झाक मुदा संपादन हमही करैत छलहुँ।

प्रश्न-- देसकोस कतेक अंक धरि छपलैक ?
उत्तर-- तीन अंक धरि।


प्रश्न फेर ?
उत्तर-- अक्टूबर १९८१ इ.मे "देसिल बयना"क संपादकमे नाम छलन्हि जनार्दन झाक मुदा संपादन हमही करैत छलिऐक।

प्रश्न-- कतेक अंकमे कोन रूपमे यथा मासिक,त्रैमासिक?
उत्तर-- एकर १३ अंक मासिक पत्रिकाक रूपमे छपलैक। रजस्ट्रेेशनक क्रममे "देसकोस"क नामे डिक्लेरेशन भेटलाक पश्चात ६ अंक धरि देसकोसक नामें प्रकाशित भेल। "मैथिली दर्शन"क पुनः प्रकाशन जनवरी २००५सँ मार्च २००६ धरि
त्रैमासिक रूपे भेल जकर संपादन कएलहुँ।


प्रश्न-- सेवानिवृति भेलाक पश्चात साहित्य लेल पूर्ण समय भेटल तकर सदुपयोग कोना कएल अछि ?
उत्तर-- तकरे परिणाम अछि जे संप्रति मिथिला दर्शनकेँ कार्यकारी संपादकक रूपमे कार्यरत छी जकर इ दोसर पर्याय मइ २००८सँ अद्यावद्यि चलि रहल अछि।

प्रश्न-- १५ आब हम पोथी रूपे प्रकाशनक जानकारी चाहब।
उत्तर---संपादन-------
१) आजुक कविता
२) युगप्रवर्तक कवीश्वर चन्दा झा
३) कविपति विद्यापति मतिमान

पोथी--------
कविता
१) इतिहासहंता (१९७७)
२) माटि-पानिक गीत (१९८५)
३) देशक नाम छलै सोन चिड़ैया (१९८६)
४) अपूर्वा (१९९६)
५) लाख प्रश्न अनुत्तरित (२००३)

हास्य-व्यंग------
१) बेताल कथा
लोककथा----
१) मैथिली लोककथा (१९८३)
पुणर्मुद्रण—२००६

निबंध-----
१) स्मृतिक धोखरल रंग (२००४)
२) आँखि मुनने आँखि खोलने (२००६)

अनुवाद------
१) प्रतिध्वनि ( काव्य--१९८२)
२) जा सकै छी किन्तु कियै जाउ (काव्य--१९९९-- भाषा-भारती सम्मानसँ सम्मानित)
३) फाँस (नाटक---१९९७)
४) जादूगर ( नाटक--१९८२)
५) रिहर्सल (नाटक---२००४)
६) चारि पहर ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)
७) किशुन जी विशुन जी ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)
८) बाह रे बच्चा राम ( नाटक--मंचित---अप्रकाशित)

उपन्यास-----
१) पद्मा नदीक माँझी (२००९)
२) नन्दितनरके ( अंतिकामे २००९, पोथी-२०११--मैथिलीमे)
नन्दितनरके ( बया---२००९,पोथी २०१०-हिंदी मे)


प्रश्न-- एकर अतिरिक्तो अनय-अन्य नामसँ कोना लिखलहुँ ?
उत्तर---पत्रिका चलएबाक क्रममे रचनाक अभाव भेने अन्यान्य नामसँ लिखलहुँ।लेखनमे रामलोचन ठाकुरक अतिरिक्त कुमारेश काश्यप, अग्रदूत,मुजतबा अली आदि नामे विभिन्न पत्र-पत्रिकामे बहुत रास कविता, निबंध आदि छिड़िआएल अछि।

प्रश्न-- मैथिली साहित्यमे किनकासँ प्रभावित भेलहुँ ?
उत्तर---सर्व प्रथम विद्यापति तत्पश्चात किरण आ यात्री।

प्रश्न-- बहुचर्चित साहित्यिक संस्था "संपर्क" जकर अपने संयोजक छी ताहि प्रसंग अपन मंत्व्य।
उत्तर-- २३,२४ आ २५ मई १९८१केँ मुक्तिमोर्चा दरिभंगामे अधिवेशन भेलैक आ आंदोलनकेँ माटिसँ जोड़बाक प्रयासेँ १५ सदस्यीय समीति बना एकरा दरिभंगामे छोड़ि देल गेल। एम्हर देसकोस सेहो नव बाट दिस तकैत छल फलतः हम जनार्दन झा, महेश्वर झा, निरसन लाभ, आ रामाधार मिश्रक सहयोगेँ "देसिल बयना" चलाओल मुदा ओहो दीर्घजीवी नहि भए सकल।"देसकोस"मे सहयोगी छलाह विनोद कुमार झा, सत्यनारायण झा,कुणाल, आदित्यनाथ झा आदि।कलकत्ताक स्थिति क्रमशः एहन भए गेल छलैक जे उल्लेखनीय कोनो कार्यक्रम नहि तैं भेँट-घाँट सेहो दुर्लभ। एहने स्थितिमे संपर्कक स्थापना भेल जाहिसँ मासमे एकहु दिन (मासक दोसर रवि) मैथिली-प्रेमी लोकनि बैसथि आ कुशल-समाचारक आदान-प्रदानक संगहि-संग मिथिला-मैथिलीक चर्च हो।पश्चात एहिमे रचनापाठक प्रक्रिया सेहो प्रारंभ भेल जाहिमे स्वरचित नव रचना पाठक प्रावधान कएल गेल आ ओइ रचनापर विचार-विमर्श सेहो होइछ। प्रकाशनक असुविधाक कारणे नव रचनाकारकेँ प्रोत्साहित केनाइ एकर प्रधान उद्येश्य छैक। सफलता आ असफलताक बात रचनाकारे कहता, तखन ई जे एक नव प्रयोग थिक तकरा अस्वीकार नहि कएल जा सकैए। ओना हमर एहि प्रयोग चरम राँचीमे देखाइत अछि जतए ई संपर्क नामक संस्था कलकत्ताक बाद शुरु भेल मुदा रचनापाठक संगे-संग पोथीकेर प्रकाशन सेहो केलक। एकर विशेषता छैक जे एकर केओ स्थायी अध्यक्ष वा सचिव नहि छथि। प्रति बैसारक अध्यक्ष मनोनीत होइत छथि जे सभाक संचालन करैत छथि।

प्रश्न-- अपनेक संपूर्ण सफलताक श्रेय ककर ? जकर प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रूपें प्रभाव पड़ल।
उत्तर---हम जे किछु कएलहुँ वा कए रहल छी तकर श्रेय कलकत्ताकेँ छैक जे वास्तवमे मैथिलक हेतु तीर्थस्थान थिक। पोथी-पत्रिकाक प्रकाशन हो वा आंदोलन वा रंगमंच सभ क्षेत्रमे कलकत्ताक योगदान अविस्मरणीय। नाट्य विषयक आ काव्य विषयक पत्रिका कलकत्तहिसँ सर्वप्रथम प्रकाशित भेल अछि आ जँ सत्य कही तँ----- नाट्य मंचक शुभारंभ सेहो एतहिसँ भेल अछि। वर्णरत्नाकर, पदावली एवं चर्यापद जँ कलकत्ता नहि छपने रहैत तँ हमरा लोकनिकेँ से चेत-सामर्थय कहाँ अछि?

प्रश्न-- अपन विभूति जिनका प्रति असीम श्रद्धा हो आ नव-पीढ़ीकेँ सेहो स्मरण रखबाक वास्ते अपन संदेशमे की कहए चाहबैक ?
उत्तर--- हम मैट्रिक पास केला उपरान्त कलकत्ता आएल रही। १९६९ इ.मे सरकारी नौकरी भेटलाक पश्चात रात्रिकालीन कौलेजमे नामांकन करबौने रही आ मैथिली रखने रही। हमरा बूझल छल जे मैथिलीक विद्यार्थी नहि होइत छैक भविष्यहुँमे
होएबाक संभावना नहि तथापि मैथिली विभूति ब्रजमोहन बाबूक प्रति ई श्रद्धांजलि, आत्मतुष्टियेक लेल कएक नहि हो, छल। जँ प्रातःस्मर्णीय ब्रजमोहन ठाकुरक प्रयासेँ आ आशुतोष बाबूक सदासयतासँ कलकत्ता विश्ववद्यालयकेँ द्वारा मैथिलीकेँ मान्यता प्राप्त नहि भेल रहितैक तँ आइ मैथिली संविधान धरि जा पबैत ताहूमे संदेह।
 
(साभार विदेह : www.videha.co.in )

3 comments:

  1. neek prastuti, sarbatha anbhigya chhalahu Shree Thakur ji sau !

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  2. Neek prastuti ! Sarbatha anbhigya chhalahu Shree Thakur ji sau ! Dhanyabad !

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