Saturday, December 31, 2011

पुरस्कारक बजार मे लागि रहल बोली (रिपोर्ट- नवेंदु कुमार झा)


पुरस्कारक बजार मे लागि रहल बोली
देशक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था साहित्य आकदमी अपन वार्षिक पुरस्कारक घोषणा कऽ देलक मुदा एहि वर्ष सेहो मैथिली भाषा पुरस्कारक घोषणा नहि भेल। एकर कारण ना तऽ परामर्शदात्री समितिक बैसक नहि होयब जनाओल गेल अछि जे किछु हद धरि सही सेहो अछि मुदा जे चर्चा अछि ओकर मोताबिक एहि बैसक मे संभावित नाम पर सहमति नहि बनि सकल तेॅ एखन एकरा टारि देल गेल अछि। दरअसल भारि-भरकम टाकापुरस्कार एहि भाषाक लेल बाधा बनल अछि। संभावित उम्मीदवार सभक नजरि तऽ एहि पर अछिए परामर्शी सभक नजरि सेहो एहि पर लागल रहैत अछि। साहित्यिक क्षेत्र मे भऽ रहल चर्चाक अनुसार मैथिली भाषाक साहित्यक अकादमी पुरस्कारक लेल बजार लागि गेल अछि आ एहि पर कब्जा करबाक लेल बोली लागि रहल अछि। साहित्यक एहि शेयर बाजार मे सूचकांक उतार चढ़ावक मध्य एखन धरि योग्य शेयर पर अपन मोहर लगैबाक प्रति परामर्शी अनिश्चयक स्थिति मे छथि।
अकादमीक प्रसादक लेल दरभंगा आ दरभंगा सॅ बारहक दू टा योग्य विद्वान मे होड़ लागल अछि। एक दिस लक्ष्मीक व्यागक बात भऽ रहल अछि तऽ दोसर दिस लक्ष्मी कऽ त्यागक संगहि कुबेरक आह्वान कयल जा रहल अछि। तऽ दोसर दिस पुरस्कारक लाइन मे ठाढ़ एकटा पोथीक मूल लेखक अपन लक्ष्मीक लेल गोहारि कऽ रहल छथि। आश्चर्य ई अछि जे जाहि पोथीक भूमिका लखबा सॅ दरभंगाक पैघ विद्वान ई कहि आपस कऽ देलनि जे ई पोथी लेखकक अपन लेखनी नहि अछि तथापि ओ ताल ठोकि दावेदारी कऽ लाइन मे अछि।
दरअसल मैथिलीक परामर्शी साहित्यक जौहरी छथि। हुनक चमत्कार स केओ साहित्यकार भऽ अकादमीक साहित्यिक यात्रा कऽ सकैत छथि। से पुरस्कारक दावेदार सभ सेहो जनैत छथि आ ते मैदान मे डटल छथि। मुदा मैदान मे दूटा डटर दावेदारक कारण हि बेर परामर्शी सेहो चित भेल छथि। ओ एखन अनिर्णयक स्थिति मे छथि। शायद हुनका एहि बातक आभास अछि जे ई दूनू दावेदार पुरस्कारक कुस्तीक मैदान मे शकि जयताह तऽ हुनक काज आसान भऽ जायत। तेॅ नाम के गोपनीय राशि पुरस्कारक बाजार खोलि कऽ रखने छथि। जहिना एकटा दाबेदार मैदान मे कमजोर पड़ला आ हुनक सूचकांक खसल कि परामर्शी पुरस्कारक घंटी बजा देताह। आब कर शेयर ओघरायल आ ककरा साहित्यक ताज भेटत एहि लेल मैथिली साहित्य प्रेमी के एखन धैर्य राख पड़त।
साहित्य अकादमी मे सम्मिलित सभ भाषाक पुरस्कारक लेल मापदंड आ ओकर प्रक्रिया तय अछि। वर्षक अंतिम सप्ताह मे प्रायः पुरस्कारक घोषणा कऽ देल जात अछि। एहि लेल पोथीक चयनकक प्रक्रिया वर्ष भरि चलैत अछि। सभ भाषा परामर्शदात्री समिति एहि प्रक्रिया के समय सीमाक भीतर पूरा करबा मे सक्षम अछि तऽ भला मैथिली परामर्शी सभके एहि मे विलम्ब होयबाक कारण नहि बुझि पड़ैत अछि। एकर कारण ई भऽ सकैत अछि जे या तऽ विद्वान परामर्शी सभक स्तरक पोथी पुरस्कारक लान मे नहि रहैत अछि अथवा जे पोथी पुरस्कारक लाइन मे रहैत अछि ओहि स्तरक विद्वान परामर्शी नहि छथि। ई दूनू कारण जँ नहि अछि तऽ भला समय सीमाक भीतर अंतिम निर्णय किएक नहि सोझा अबैत अछि। अकादमी प्रसाद येन-केन-प्रकारेन प्राप्तिक इच्छा मैथिली साहित्य के नोकसान पहूचा रहल अछि। मात्र प्रसादक प्राप्तिक वास्ते साहित्य सृजन करब कोनो भाषाक साहित्यक लेल लाभदायक नहि अछि। एहि सॅ साहित्यिक स्तर मे ह्रास होयत। साहित्य समाजक ना अछि। जँ स्तरहीन साहित्य सृजन के प्रश्रय देल गेल तऽ सामाजिक दशा-दिशा प्रभावित होयत। साहित्य संसार के पुरस्कारक बाजार बनायब किन्नहु उचित नहि अछि। पुरस्कार छोट होकि पैघ ओकर चयन प्रक्रियाक सीमाक पालन होयब आवश्यक अछि। अन्यथा कतेको आशंका के जन्म दऽ सकैत अछि। जेना एखन मैथिली साहित्य जगत मे व्याप्त अछि।
मैथिली साहित्य संसार मे कतेको विद्वान पुरस्कारक चिन्ता कयने बिनू अपनी लेखनीक छाप छोड़ि अपन अमर कृति दऽ विदा भऽ गेलाह। मुदा वर्तमान मैथिली साहित्य जेना पुरस्कारक जाल मे फँसि गेल अछि। हजर टकिया सॅ लखटकिया पुरस्कारक लेल साहित्य सृजनक होड़ लागल अछि। पुरस्कारक बजारवाद मैथिली साहित्य के नोकसान पहुँचा रहल अछि। तेॅ पुरस्कारक लालसा छोड़ि साहित्यक स्तर पर ध्यानदेब आवश्यक अछि। पुरस्कार देब विद्वान परामर्शी सभक काज अछि आ जँ हुनका फ्री हैण्ड छोड़ल गेल तऽ संभव अछि जे स्तरीय पोथी के सम्मान भेटि सकत। 

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