Tuesday, December 6, 2011

विदेह गोष्ठी: लघुकथा, दीर्घ कथा, उपन्यास आ मैथिली विहनि कथापर परिचर्चा

विदेह गोष्ठी:  (९ आ ३० अक्टूबर २०११ आ  ०५ आ ०६ नवम्बर २०११ केँ  कथा, दीर्घ कथा, उपन्यास आ विहनि कथापर परिचर्चा आ तकर सन्दर्भमे विहनि  कथा गोष्ठी निर्मली, जिला सुपौलमे भेल। ओतए ढेर रास विहनि कथाकार, साहित्यप्रेमी उपस्थित रहथि। तकर बाद किछु आलेख आ रचना डाक आ ई मेलसँ सेहो आएल। तकर संक्षिप्त विवरण नीचाँ देल जा रहल अछि।)


देवशंकर नवीन
लघुकथा लेखनमे अवरोधक तत्व

लघुकथा साहित्य-पदार्थक एहन परमाणु अछि, जाहिमे ओकर सभटा भौतिक आ रासायनिक गुण उपस्थित रहैत छै, आ परमाण्विक स्थितिमे ओकर रासायनिक प्रभाव तीक्ष्णतर भऽ जाइत छै। लघुकथा जादूक एहन औँठी अछि जे पाठकक मानस-पटलसँ टक्कर लैत देरी ओकर निश्चेष्ट मानसिकताकेँ क्रियाशील कऽ दैत अछि, भोथर सम्वेदनाकेँ सक्रिय बना दैत अछि। लघुकथा चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, कथानक सन पूर्णाहारक बदलामे विटामिनक गोली अछि, जे सम्पूर्ण ऊर्जासँ युक्त होइत अछि।
वास्तविकतामे शब्द स्वयं महत्वपूर्ण नै होइत अछि, महत्वपूर्ण अछि ओकर प्रयोग-प्रक्रिया। प्रयोगक आधारपर शब्द अपन अर्थ-ग्रहण करैत अछि। लघुकथा मूल रूपसँ व्यंग्य ध्वनित करैत अछि। अस्तु एकर वाक्यमे शब्दक प्रतीकात्मक प्रयोग विशिष्ट अस्मिता रखैत अछि। एहि अर्थमे एहिमे शब्द-विधान अहम् भऽ जाइत अछि, मुदा तकर कोनो मानक सीमा नै छै। रचनाकारक शब्द-विधाने एकर मानक सीमा अछि। ताहि द्वारे हम कहि सकै छी जे लघुकथा, कथाक अपेक्षा कवितासँ बेसी लग अछि। आकारमे लघु भेलाक बादो एकर व्यंजना विराट होइत अछि।
गानल-गूथल शब्दमे जीवनक सभटा विद्रूपताक एहन प्रस्तुति लघुकथा अछि जकर रंग शीसापर सेहो जमल बिना नै रहि सकैत अछि। व्याकरण जौँ भाषा आ साहित्यक आचार-संहिता अछि, तँ लघुकथाक आचार-संहिता खाली ‘शब्द’ अछि। शब्दक सहयोगसँ रचल जीवनक विद्रूपताक प्रतीक चित्र, सएह लघुकथा अछि।
लघुकथामे मूल रूपसँ ‘कथ्य’ आ ‘शब्द’ क बड़ महत्ता होइत अछि। एकर संहितामे भाषा-विधान लेल कोनो विशेष स्थान सुरक्षित नै छै।
शास्त्र-पुराणादिमे एकर उत्स स्पष्ट देखाइत अछि मुदा तकर बादो लघुकथाक वर्तमान तेवर, विशुद्ध रूपसँ आधुनिक सभ्यता-संस्कृति आ बदलैत साहित्यिक प्रतिमानक प्रतिफल अछि। ओना तँ स्रोत ताकी तँ विष्णु शर्मा विरचित पंचतन्त्र वा फेर गुणाढ्यक बड्डकहा आकि आर पाछू जाइ तँ वेदमे वर्णित उपदेशपरक उपकथामे एकर सूत्र बड्ड सरलतासँ भेटैत अछि। काव्य-विषयक प्राचीनतम विधानमे एकरा लेल अलगसँ कोनो स्थान नै राखल गेल छल। ताहि कारणसँ ओहि सभ पारम्पारिक काव्य निकषपर एकर परीक्षण नै भऽ सकैत अछि, एकरा लेल नव समीक्षा शास्त्रक निर्माण अपेक्षित अछि।
लघुकथा-लेखन एकटा खतरनाक वृत्ति अछि। ‘सतर्कता गेल आ दुर्घटना भेल’ क फार्मूला एहिपर पूर्णतः लागू होइत अछि। दुर्घटना माने असफलता आकि उत्थरपना। एकर बाद संयोजनमे सेहो पर्याप्त कलात्मकताक आवश्यकता होइत अछि। एहि कलात्मकताक कमजोरीसँ एकर प्रभावोत्पादकता चल जाइत अछि आ फेर लघुकथा अपन मूल उद्देश्यसँ भटकि जाइत अछि।
लघुकथा-लेखनकेँ बहुत रास लोक द्वारा सिनेमामे आओल फैशनक रूपमे अपनाओल गेल अछि। औकाति होअए वा नै, जे ई युगक फैशन भऽ गेल अछि से लोक हास्य-कणिका लिखि कऽ सेहो ओकरा लघुकथा कहि दै छथि। आ से एहि अत्याधुनिक मुदा खतरनापूर्ण विधा लेल बड्ड मोश्किलक गप अछि। एकरासँ बचबाक बड्ड जरूरति अछि। लिखबाक कला नै होअए तँ ई काज नै करबाक चाही। नकलची लेखकसँ लघुकथाकेँ भयंकर नोकसान ई भेल जे ढेर रास लोक आइ हास्य-कणिका आ लुघकथामे अन्तर नै कऽ पबैत छथि। एत्ते धरि जे बहुत रास पाठक सेहो एहने सन मनःस्थिति बना लेने छथि, से लघुकथाक स्वर किछु रूपमे भटकि-सन गेल अछि। तैयो बहुत-रास नीक-नीक लघुकथा आबि रहल अछि। साओनक बेंग सन टर्रा कऽ बिलाइत लोकक संख्या कोनो विधामे कखनो कम नै रहल, से जौँ लघुकथा-लेखनमे सेहो एहने भऽ रहल अछि तँ कोनो आश्चर्य नै। नीक लघुकथाक पाठकीयता आ सम्प्रेषणीयता समएक संग गहींर होइत जाएत।
साहित्यक कोनो अंशक मान्यता आ स्थापना ओकर ‘प्रकाशन’ आ ‘समीक्षा’ पर निर्भर अछि। लघुकथाक प्रकाशन तँ क्रमसँ खूब भऽ रहल अछि, मुदा एहिपर आलोचनाक साहित्यक अत्यन्त अभाव अछि। ओना तँ किछु साहित्यिक ठेकेदार एहिपर आलोचनाक कऽ अत्याचार सेहो केने छथि। एहन आलोचना लघुकथाक विस्तार लेल स्वास्थ्यकर नै अछि।
मिला-जुला कऽ लघुकथाक सम्भावना, स्वरूप आ विस्तारसँ आश्वस्त भेल जा सकैत अछि। ई विधा क्रमसँ जड़ि धेने जा रहल अछि। बेंग सभक आ शौकिया आलोचकक संग एकर उपेक्षा सेहो आस्ते-आस्ते मेटाइत जाएत। निश्चयेन एहिपर नीक-नीक आलोचना सेहो लिखल जाएत। लघुकथा लेखन बीजगणितक हिसाब नै अछि जे हल कएल एकटा उदाहरण देखि कऽ दोसर सवाल बनि जाएत।




मानेश्वर मनुज
मानसरोवरक भूमिकाक प्रासंगिकता
ओना तँ प्रेमचन्द सेहो अप्पन गुरु बंगलाक महान कथाकार शरतचन्द्रकेँ मानलन्हि, मुदा बंगलाक विभिन्न पत्र-पत्रिका कथा-चेतनाक हिसाबे प्रेमचन्दकेँ सर्वोपरि मानैत छथि। एहि बातमे कोनो संदेह नहि जे प्रेमचन्दक कथा साहित्य विश्वसाहित्यमे अप्पन समुचित स्थान रखैत अछि।
गाँधीजी रवीन्द्रनाथ टैगोरक समक्ष नतमस्तक भऽ जखन हुनका गुरु कहलकन्हि तखन रवीन्द्रनाथ टैगोर सेहो आह्लादपूर्वक हुनका बापू कहलकन्हि। प्रेमचन्द जे सम्मान बंगला साहित्यकेँ< देलन्हि ताहिसँ कनिको कम सम्मान बंगलाक साहित्यकार प्रेमचन्दकेँ नहि दऽ रहल छथि।

प्रेमचन्दक जे कथा सभ पाठ्यपुस्तकमे लागल अछि ताहिसँ हिन्दी आ मैथिली जगत पूर्णतः वाकिफ अछि, तकर अलावे समए-समएपर हिन्दीक पत्रिका सभ प्रेमचन्दक आनो कथा सभ प्रकाशित करैत रहैत अछि। एतेक सभ भेलाक बादो हिन्दी आ मैथिलीक आम पाठक की लेखको प्रेमचन्दसँ अनभिज्ञ भऽ रहल छथि, जाहि कारणेँ मैथिली की हिन्दियो साहित्य एको डेग आगाँ नहि बढ़ि रहल अछि।मानसरोवरक प्राकथनमे प्रेमचन्द भारतीय कथा साहित्यक गुढ़केँ कतेक गदिया कऽ पकड़ने छथि- देखल जा सकैत अछि आ हमरा लोकनि लीकसँ कतेक हटि गेल छी तकरो अनुमान कएल जा सकैत अछि। हिन्दीक कतेको पत्र अप्पन सम्पादकीयमे कहैत छल जे मैथिली पहिने अप्पन साहित्यकेँ मजगूत कऽ लिअए तखन सम्वैधानिक मान्यताक बात करए, मुदा मैथिलीक साहित्यकार लोकनि अपना हठपर अड़ल रहलथि।
रोजगारक नामपर दर-दर भटकैत मैथिलजन सभतरि अपमानित भऽ रहल छथि तकर किनको चिन्ता नहि मुदा अप्पन हठ कायम रखताह। साहित्य वा राजनीति एहन हल्लुक चीज नहि जे सत्यसँ अलग पैर राखि आडम्बरक बलपर सफलता प्राप्त कऽ लिअए। सौ चोर मसियौत अइ तँ सौ साधु सहोदर, ई परम सत्य अइ।
कथा साहित्य पाठकक सुन्दर भावनाक स्पर्श- मानसरोवरक प्राकक्थन-प्रेमचन्द- मैथिली रूपान्तर- मानेश्वर मनुज
एक आलोचक लिखलन्हि अछि जे इतिहासमे सभ किछु यथार्थ होइतो ओ असत्य अछि आ कथा साहित्यमे सभ किछु काल्पनिक होइतो ओ सत्य अछि। अइ कथनक आशय एकर सिवाय आओर की भऽ सकैत अछि जे इतिहास आदिसँ अन्त धरि हत्या, संग्राम आ धोखाक प्रदर्शन करैत अछि जे असुन्दर अछि तैँ असत्य अछि, लोभक क्रूरसँ क्रूर अहंकारक नीचसँ नीच, ईर्ष्याक अधमसँ अधम घटना सभ अहाँकेँ ओतऽ भेटत आ अहाँ सोचऽ लागब जे मनुष्य एतेक अमानुषिक अछि, थोड़ स्वार्थक लेल भाए-भाएक हत्या करऽ पर लागल अछि। बेटा बापक हत्या कऽ दैत अछि आ राजा असंख्य प्रजाक हत्या कऽ दैत अछि। एकरा पढ़ि कऽ मोनमे ग्लानि होइत अछि आनन्द नहि। आ जे आनन्द प्रदान नहि कऽ सकैत अछि ओ सुन्दर नहि भऽ सकैत अछि आ ओ सत्य सेहो नहि भऽ सकैत अछि।
जतऽ आनन्द अछि ओतै सत्य अछि। साहित्य काल्पनिक बस्तु अछि मुदा एकर प्रधान गुण अछि आनन्द प्रदान करब, आ एहि हेतु ओ सत्य अछि। मनुष्य जगतमे जे किछु सत्य आ सुन्दर पओलक अछि आ पाबि रहल अछि ओकरे साहित्य कहैत छैक आ गल्प सेहो साहित्यक एक भाग अछि।
मनुष्य जाति लेल मनुष्ये सभसँ विकट पहेली अछि। ओ स्वयं अपना समझमे नहि अबैत अछि। कोनो ने कोनो रूपमे ओ अपने आलोचना करैत रहैत अछि, अपने मनोरहस्य खोलल करैत अछि। मानव संस्कृतिक विकासे एहि लेल भेल अछि कि मनुष्य अपनाकेँ समझाबय आध्यात्म आ दर्शन जकाँ साहित्यो एहि खोजमे लागल अछि, अन्तर एतनी अछि कि ओ अइ उद्योगमे रसक मिश्रण कऽ ओकरा आनन्दप्रद बना दैत अछि, एहि लेल आध्यात्म आ दर्शन सिर्फ ज्ञानी लोकनिक लेल अछि, साहित्य मनुष्य मात्र लेल।
जेना हम ऊपर कहि गेल छी, गल्प आ आख्यायिका साहित्यक एक प्रधान अंग अछि। आइसँ नहि, आदिये कालसँ। हँ, आइ-काल्हुक आख्यायिका आ प्राचीनकालक आख्यायिकामे समयक गति आ रुचिक परिवर्तनसँ बहुत किछु अन्तर भेल अछि। प्राचीन आख्यायिका कुउतुहल प्रधान होइत छल आ आध्यात्म विषयक। उपनिषद आ महाभारतमे आध्यात्मिक रहस्यकेँ समझाबक लेल आख्यायिका सभक आश्रय लेल गेल अछि। “जातक”सेहो आख्यायिकाक सिवाय आओर की अछि? बाइबिलमे सेहो दृष्टान्त सभ आ आख्यायिका सभक द्वारे धर्म तत्व समझाएल गेल अछि। सत्य अइ रूपमे आबि कऽ साकार भऽ जाइत अछि आ तखने जनता ओकरा समझैत अछि आ ओकर व्यवहार करैत अछि। वर्तमान आख्यायिका मनोवैज्ञानिक-विश्लेषण आ जीवनक यथार्थ स्वभाविक चित्रणकेँ अप्पन ध्येय समझैत अछि। एहिमे कल्पनाक मात्रा कम, अनुभूतिक मात्रा अधिक होइत अछि, बल्कि अनुभूतिये रचनाशील भावनासँ अनुरंजित भऽ कऽ कथा बनि जाइत अछि, मगर ई समझब भूल होएत कि कथा जीवनक यथार्थ चित्र अछि। जीवनक चित्र तँ मनुष्य स्वयं भऽ सकैत अछि, मगर कथाक पात्र सभक सुख-दुःखसँ हम जतेक प्रभावित होइत छी ओतेक यथार्थ जीवनसँ नहि होइत छी, जावत तक ओ निजत्वक परिधिमे ने आबि जाए। कथा सभक पात्र सभमे हमरा एक्के-दू मिनटक परिचयमे निजत्व भऽ जाइत अछि आ हम ओकरा संग हँसऽ आ कानऽ लगैत छी, ओकर हर्ष आ विषाद हमर अप्पन हर्ष आ विषाद भऽ जाइत अछि, बल्कि कहानी पढ़ि कऽ ओ लोको कानैत आ हँसैत देखल जाइत अछि, जकरापर साधारणतः सुख-दुःखक कोनो असरि नहि पड़ैत अछि, जकर आँखि श्मशानमे या कब्रिस्तानमे सेहो सजग नहि होइत अछि, ओ लोक सेहो उपन्यासक मर्मस्पर्शी स्थल सभपर पहुँचि कऽ कानऽ लगैत अछि।
शाइत एकर ईहो कारण होइक कि स्थूल प्राणी सूक्ष्म मनक ओतेक लग नहि पहुँच सकैत अछि जतेक कि कथाक सूक्ष्म चरित्रक। कथाक चरित्र सभ आ मनक बीचमे जड़ताक ई पर्दा नहि होइत अछि, जे एक मनुष्यक हृदयकेँ दोसर मनुष्यक हृदयसँ दूर रखैत अछि। आ अगर हम यथार्थकेँ हूबहू खीच कऽ राखि दी तँ ओहिमे कला कहाँ अछि। कला केवल यथार्थक नकलक नाम नहि अछि। कला देखाइत तँ यथार्थ अछि मुदा यथार्थ होइत नहि अछि। ओकर खूबी ई अछि कि ओ यथार्थ नहि होइतो यथार्थ लगैत अछिउ। एकर मापदण्ड सेहो जीवनक मापदण्डसँ अलग अछि, जीवनमे बहुधा हमर अंत ओही समय भऽ जाइत अछि जखन ओ वांछनीय नहि होइत अछि। जीवन ककरो दायी नहि अछि। ओकर सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरणमे कोनो क्रम कोनो सम्बन्ध ज्ञात नहि होइत अछि।
कमसँ कम मनुष्यक लेल ई अज्ञेय अछि, लेकिन कला-साहित्य मनुष्यक रचल जगत अछि आ परिमिति हेबाक कारण सम्पूर्णतः हमरा सामने आबि जाइत अछि आ जहाँ ओ हमर मानवो-न्याय-बुद्धि आ अनुभूतिक अतिक्रमण करैत पाओल जाइत अछि, हम ओकरा दण्ड देबाक लेल तैयार भऽ जाइत छी। कथामे अगर ककरो सुख प्राप्त होइत छैक तँ एकर कारण बतवक हेतैक। दुःखो भेटैत छैक तँ ओकर कारण बतवक हेतैक। एतऽ कोनो चरित्र मरि नहि सकैत छैक जाबत तक मानव-न्याय-बुद्धि ओकर मौत ने मांगैक। सृष्टाकँ् जनताक अदालतमे अप्पन हर एक कृतिक लेल जवाब देबऽ पड़तैक। कलाक रहस्य भ्रान्ति अछि, मुदा ओ भ्रान्ति जाहिपर यथार्थक आवरण पड़ल हो।
हमरा सभकेँ ई स्वीकार कऽ लेबऽ मे संकोच नहि हेबाक चाही कि उपन्यासोक जकाँ आख्यायिकाक कलो हम पश्चिमसँ लेल अछि। कमसँ कम एकर आइ-काल्हुक विकसित रूप तँ पश्चिमेक अछि। अनेक कारण सभसँ जीवनक अन्य धारा सभक तरहे साहित्योमे हमर प्रगति रुकि गेल आ हम प्राचीनसँ एको-रत्ती एम्हर-ओम्हर हटबो निषिद्ध बुझि लेलहुँ। साहित्यक लेल प्राचीन लोक सभ जे मर्यादा बाँधि देने छलथि, ओकर उल्लंघन करब वर्जित छल। अतएव काव्य, नाटक, कथा कथूमे हम अप्पन कदम बढ़ा नहि सकलहुँ। कोनो बस्तु बहुत सुन्दर भेलोपर अरुचिकर भऽ जाइत अछि, जावत तक ओइमे किछु नवीनता ने आनल जाए। एक्के तरहक नाटक, एक्के तरहक काव्य पढ़ैत-पढ़ैत आदमी ऊबि जाइत अछि आ ओ किछु नव चीज चाहैत अछि, चाहे ओ ओतेक सुन्दर आ उत्कृष्ट नहि हो। हमरा ओतऽ तँ ई इच्छा उठबे ने कएल या हम सभ एतेक सकुचएलहुँ कि ओ जड़ीभूत भऽ गेल। पश्चिम प्रगति करैत रहल, ओकरा नवीनताक भूख छलैक मर्यादाक बेड़ी सभसँ चिढ़। जीवनक हर एक विभागमे ओकर एहि अस्थिरताक, असंतोषक बेड़ी सभसँ मुक्त भऽ जेबाक छाप लागल अछि। साहित्यमे सेहो ओ क्रान्ति मचा देलक।
शेक्सपियरक नाटक अनुपम अछि मुदा आइ ओइ नाटक सभक जनताक जीवनसँ कोनो सम्बन्ध नहि। आजुक नाटकक उद्देश्य किछु आओर अछि, आदर्श किछु आओर अछि, विषय किछु आओर अछि, शैली किछु आओर अछि। कथा-साहित्यमे सेहो विकास भेल आ ओकर विषयमे चाहे ओतेक पैघ परिवर्तन नहि भेलैक मुदा शैली तँ बिल्कुले बदलि गेलैक। अलिफलैला ओहि समयक आदर्श छलै, जाहिमे बहुरूपता छलै, वैचित्र्य छलै, कुतुहल छलै, रोमांस छलै, मुदा ओइमे जीवनक समस्या नहि छलै, मनोविज्ञानक रहस्य नहि छलै, अनुभूति सभक एतेक प्रचुरता नहि छलै, जीवन आ सत्य रूपमे ओतेक स्पष्टता नहि छलै। ओकर रूपान्तर भेलैक आ उपन्यासक उदय भेलैक जे कथा आ ड्रामाक बीचक बस्तु अछि। पुरान दृष्टान्त सभ रूपान्तरित भऽ गल्प बनि गेल।
मुदा सए वर्ष पहिले यूरोप सेहो एहि कलासँ अनभिज्ञ छल। पैघ-पैघ, उच्च कोटिक दार्शनिक तथा ऐतिहासिक आ सामाजिक उपन्यास लिखल जाइत छल, लेकिन छोट-छोट कथा सभक दिस ककरो ध्यान नहि जाइत छलैक। हँ परी सभक आ भूत सभक कथा लिखल जाइत छल, किन्तु एहि एक शताब्दीक अन्दर या ओहूसँ कम बुझी छोट-कथा साहित्यक आन सभ अंगपर विजय प्राप्त कऽ लेलक अछि, आ ई गलत नहि होएत कि जेना कोनो जमानामे कविते साहित्यिक अभिव्यक्तिक व्यापक रूप छल ओहिना आइ कथा अछि। आ ओकरा ई गौरव प्राप्त भेलैक अछि यूरोपक कतेको महान कलाकारक प्रतिभासँ, जाहिमे बालजाँक, मोपासाँ, चेखब, टॉलस्टाय, मैक्सिम गोर्की आदि मुख्य अछि। हिन्दीमे पचीस-तीस साल पूर्व तक गल्पक जन्म नहि भेल छल। आइ तँ कोनो एहन पत्रिका नहि जाहिमे दू-चारि “कथा” नहि होअए, एतऽ तक कि कतेको पत्रिकामे केवल “कथे”देल जाइत अछि।
कथाक एहि प्राबल्यक मुख्य कारण आजुक जीवन संग्राम आ समयाभाव अछि, आब ओ जमाना नहि रहल कि हम “बोस्ताने खयाल” लऽ कऽ बैस जाइ आ पूरा दिन ओकरे कुँजमे विचरैत रही। आब तँ हम संग्राममे एतेक तन्मय भऽ गेल छी कि हमरा मनोरंजनक लेल समय नहि भेटैत अछि, अगर किछु मनोरंजन स्वास्थ्यक लेल अनिवार्य नहि होइत आ हम विक्षिप्त भेले बिना अट्ठारह घंटा काज कऽ सकितहुँ तँ शाइत हम मनोरंजनक नाम तक नहि लितहुँ, मुदा प्रकृति हमरा विवश कऽ देलक अछि तैँ हम चाहैत छी कि थोड़सँ थोड़ समयमे अधिकसँ अधिक मनोरंजन भऽ जाए, तैँ सिनेमा घरक संख्या दिनो-दिन बढ़ैत जाइत अछि। जाहि उपन्यासकेँ पढ़ऽमे महीना लगैत ओकर आनन्द हम दू घंटामे उठा लैत छी। कथाक लेल पन्द्रह-बीसे मिनट काफी अछि। अतएब हम कथा एहन चाहैत छी कि ओ थोड़सँ थोड़ शब्दमे कहल जाए, ओहिमे एक वाक्य कि एक शब्दो अनावश्यक नहि आबि पाबए, ओकर पहिले वाक्य मनकेँ आकर्षित कऽ लिअए आ अन्त तक ओकरा मुग्ध कएने रहए, ओकरामे किछु छटपटाहट होइक, किछु ताजगी होइक, किछु विकास होइक आ ओकर संग किछु तत्वो होइक। तत्वहीन कथासँ चाहे मनोरंजन भऽ जाए मानसिक तृप्ति नहि होइत छैक। ई सत्य अछि जे हम कथामे उपदेश नहि चाहैत छी, मुदा विचारकेँ उत्तेजित करक लेल, मनक सुन्दर भावकेँ जागृत करक लेल किछु ने किछु अवश्य चाहैत छी। वैह कथा सफल होइत अछि जाहिमे अइ दुनूमे सँ मनोरंजन आ मानसिक तृप्तिमे सँ एक अवश्य उपलब्ध अछि।
सभसँ उत्तम कथा ओ होइत अछि जकर आधार कोनो मनोवैज्ञानिक सत्यपर होइक। साधु पिताक अप्पन कुव्यसनी पुत्रक दशासँ दुखी होएब मनोवैज्ञानिक सत्य अछि। एहि आवेगमे पिताक मनोवेगकेँ चित्रित करब आ तदनुकूल ओकर व्यवहारकेँ प्रदर्शित करब कथाकेँ आकर्षक बना सकैत अछि। अधलाह लोक सेहो बिल्कुल अधलाह नह होइत अछि, ओकरोमे कतौ ने कतौ देवता अवश्य छिपल होइत छैक, ई मनोवैज्ञानिक सत्य अछि। ओइ देवताकेँ खोलि कऽ देखाए देब सफल आख्यायिकाक काज अछि। विपत्तिपर विपत्ति पड़लासँ मनुष्य कतेक दिलेर भऽ जाइत अछि एते तक कि ओ पैघसँ पैघ संकटक सामना करक लेल टाल-ठोकि कऽ तैयार भऽ जाइत अछि। ओकर सभ दुर्वासना भागि जाइत छैक। ओकरा हृदयक कोनो गुप्त स्थानमे छिपल जौहर निकलि अबैत छैक आ हमरा चकित कऽ दैत अछि, मनोवैज्ञानिक सत्य अछि।
एक्के घटना वा दुर्घटना भिन्न-भिन्न प्रकृतक मनुष्यकेँ भिन्न-भिन्न रूपसँ प्रभावित करैत अछि। हम कथामे एकरा सफलताक संग देखा सकी तँ कथा अवश्य आकर्षक होएत। कोनो समस्याक समावेश कथाकेँ आकर्षक बनबाक सभसँ बड़का साधन अछि। जीवनमे एहन समस्या नित्ये उपस्थित होइत अछि आ ओहिमे पैदा होबऽबला द्वन्द्व आख्यायिकाकेँ चमका दैत अछि। सत्यवादी पिताकेँ पता चलैत छैक कि ओकर पुत्र हत्या केलक अछि ओ ओकरा न्यायक वेदीपर बलिदान कऽ दिअए वा अप्पन जीवन सिद्धान्तक हत्या कऽ दिअए? कतेक भीषण द्वन्द्व अछि! पश्चाताप एहन द्वन्द्वक अखण्ड श्रोत अछि। एक भाए दोसर भाएक सम्पत्ति छल-कपटसँ अपहरण कऽ लेलक अछि, ओकरा भिक्षा मांगैत देख कऽ की छली भाएकेँ कनिको पश्चाताप नहि हेतैक। अगर एना नहि होइक तँ ओ मनुष्य नहि अछि।
उपन्यासेक जकाँ कथा सेहो किछु घटना प्रधान होइत अछि, किछु चरित्र प्रधान। चरित्र प्रधान कथाक पद उच्च बुझल जाइत अछि, मुदा कथामे बहुत विस्तृत विश्लेषणक गुंजाइश नहि होइत अछि। एतऽ हमर उद्देश्य सम्पूर्ण मनुष्यकेँ चित्रित करब नहि, बल्कि ओकर चरित्रक एक अंग देखाएब अछि। ई परमावश्यक अछि कि हमरा कथासँ जे परिणाम वा तत्व निकलए ओ सर्वमान्य होबए आ ओइमे किछु बारीकी होबए। ई एक साधारण निअम अछि कि हमरा ओही बातेक आनन्द अबैत अछि जाहिसँ हमर किछु सम्बन्ध होबए। जुआ खेलऽबलाकेँ जे उन्माद आ उल्लास होइत छैक ओ दर्शककेँ कदापि नहि भऽ सकैत अछि। जखन हमर चरित्र एतेक सजीव आ आकर्षक अछि कि पाठक स्वयंकेँ ओकरा स्थानपर समझि लैत अछ तखने ओकरा कथाक आनन्द प्राप्त होइत छैक। अगर लेखक अपना पात्रक प्रति पाठकमे ई सहानुभूति नहि उत्पन्न कऽ देलक तँ ओ अपना उद्देश्यमे असफल अछि।
पाठकसँ ई कहक जरूरति नहि अछि कि अइ थोड़ दिनमे हिन्दी गल्पकला कतेक प्रौढ़ता प्राप्त कऽ लेलक अछि। पहिने हमरा सामने बंगला कथाक नमूना छल। आब हम संसारक सभ प्रमुख गल्प लेखकक रचना पढ़ैत छी, ओहिपर विचार अ बहस करैत छी, ओकर गुण-दोष निकालैत छी आ ओहिसँ प्रभावित भेने बिना नहि रहि सकैत छी। आब हिन्दीक गल्प लेखक सभमे विषय, दृष्टिकोण आ शैलीक अलग-अलग विकास होबऽ लागल अछि। कथा जीवनक बहुत निकट आबि गेल अछि। ओकर जमीन आब ओतेक लम्बा-चौड़ा नहि अछि। ओहिमे कतेक रस, कतेक चरित्र आ कतेक घटनाक लेल स्थान नहि रहल। आब ओ केवल एक प्रसंगक, आत्माक एक झलकक सजीव ह्रूदयस्पर्शी चित्रण अछि। ई एक तथ्यता, ओहिमे प्रभाव, आकस्मिकता आ तीव्रता भरि दी। आब ओहिमे व्याक्याक अंश कम संवेदनाक अंश बेसी रहैत अछि। एकर शैलियो आब प्रभावमय भऽ गेल अछि। लेखककेँ जे किछु कहक अछि ओ कमसँ कम शब्दमे कहि देबऽ चाहैत अछि। ओ अप्पन चरित्रक मनोभावनाक व्याख्या करैत नहि बैसैत अछि, केवल ओकरा दिस इशारा कऽ दैत अछि। कखनो-कखनो तँ संभाषणमे एक दू-शब्देसँ काज निकालि लैत अछि। एहन कतेको अवसर होइत अछि, जखन पात्रक मुँहसँ एक शब्द सुनि कऽ हम ओकर मनोभावक पूरा अनुमान कऽ लैत छी। पूरा वाक्यक जरूरतिये नहि रहैत अछि। आब हम कथाक मूल्य ओकर घटना विन्याससँ नहि लगबैत छी। हम चाहैत छी पात्रक मनोगति स्वयं घटनाक सृष्टि कराबए। घतनाक स्वतन्त्र कोनो महत्वे नहि रहल, ओकर महत्व कवल पात्रक मनोभावकेँ व्यक्त करबाक दृष्टिएसँ अछि- ओहिना जेना शालिग्राम स्वतन्त्र रूपस कवल पत्थरक एक गोल टुकड़ा छ्हथि, लेकिन उपासकक श्रद्धासँ प्रतिष्ठित भऽ कऽ देवता बनि जाइत छथि। खुलासा ई कि गल्पक आधार आब घटना नहि, मनोवैज्ञानिक अनुभूति अछि। आइ लेखक कोनो रोचक दृश्य देख कऽ कथा लिखऽ नहि बैस जाइत अछि। ओकर उद्देश्य स्थूल सौन्दर्य नहि। ओ तँ कोनो एहन प्रेरणा चाहैत अछि, जाहिमे सौन्दर्यक झलक होइक आ ओकरा द्वारा ओ पाठकक सुन्दर भावनाक स्पर्श कऽ सकए।




मुन्नाजी


सामाजिक सरोकारकेँ छुबैत मैथिली लघुकथा

जिनगीमे उठैत उकस-पाकसकेँ सम्वेदनापूर्ण मानवताक संग सरियबैत रचनाकार पत्र-पत्रिकासँ समाज आ पाठकक मोनमे बैसि गेलाग अछि। रेशम आ सूतीक बीच फाँक भेल जिनगीकेँ स्पष्ट करैत, आरामदायक आ सुखद अनुभवकेँ सोझाँ आनब आब रचनाकार अपन रचनाधर्म बुझि गेलाह अछि। तेँ आजुक समस्त रचनामे जिनगीक उतार-चढ़ाव, खसैत-उठैत सम्बन्ध सुखाइत सन सिनेह सभकेँ अपना हृदएमे बसा रचना रचैत छथि लेखक। एहि युगक रचनाकारकेँ आब गरीब भाभनबला किताबी खिस्सा आ राजा-रानीबला पिहानीसँ ऊपर उठि अपन सामाजिक समरसताक निस्सन निशानीक बोध भऽ गेल बुझाइत अछि। तेँ रचना सेहो लोकक जिनगीक गहींरता नपैत ओकर सुख-दुखक फाँटक बीचसँ निकलि ओहि फाँटकेँ भरैत ओकर एक-एक अंश धरि जुड़ि जिनगीक दर्शन करबैत सोझाँ आबि रहल अछि मैथिली लघुकथा सभ।

मोम आ पाथर पहिने एक दोसराक विपरीत जिनगीकेँ आरेखित करैत रहल। मुदा आब नै, आब तँ एक्कै हिदएमे क्षणक बदलैत गतिक संग मोम आ पाथर दुनूक समन्वयक बनि जिनगीक सभ अन्तरंगताकेँ छुबैत उद्वेलित कऽ बेरा-बेरी मुदा एक्कै ठाम केन्द्रित भऽ देखार भऽ उठैत अछि। आजुक मानवक संवेदना एतेक परिवर्तनीय भऽ गेल अछि जे एक्के संग अहाँक चरित्रमे मोम आ पाथर दुनूक रूप दृष्टिगोचर होइत, रचनाकार सोझाँ आनि ओकर सत्यकेँ साबित कऽ रहलाह अछि। सत्य! एकटा काल्पनिक विजय मात्र नै थिक, सत्य कतौसँ अनायास नै टपकि पड़ैए। सत्य पूर्णतः मानव जीवनक यथार्थ थिक। सत्य मानवकेँ अनुचित कार्यसँ रोकबाक वा विधर्मी हेबासँ बचेबाक श्रीयंत्र जकाँ अछि, जकरा आजुक रचनाकार अपना रचनाधर्मितासँ लोकक हृदए धरि छुआ ओकर यथार्थ बोध करौलनि अछि।

पहिनुक लघुकथा सभ दहेजक दानवकेँ उघार कऽ, दहेज पीड़िताक मर्मकेँ वा दहेजसँ भेल परिणामकेँ अपन केन्द्रमे आनि सम्वेदित करैत छल। ओहिसँ इतर चुटुक्का वा हास्य-कणिका लऽ तत्कालीन नेता सबहक विपटावादी चरित्रकेँ उजागर कऽ अपन रचनाक इतिश्री बुझैत छला। एहेन नै छलै जे तहियाक रचनाकारक सोच संकुचित छल। ओहो सभ दूर धरि सोचैत छला, गमै छला आ तखन ओकरा सोझाँ अनै छला। मुदा ई परिवेशक दोष सेहो कहल जा सकैए जे तहियाक रचनाकार सभ विषए-बैस्तुकेँ संकुचित कऽ मैथिली लघुकथाकेँ सेहो संकुचित कऽ देलनि। २०म सदीक छट्ठम-सातम दशकमे प्रायः ओहने परिवेश संरचित छल। जकर परिणामे लघुकथा मात्र नै वरन् आनो विधा यथा कथा/ नाटक/ उपन्यास आदिमे वएह दहेज आ खिस्सा आ नेताजीक करनीकेँ सोझाँ आनल जाइत रहल छल।

आब परिवेश बदललै, दृष्ज्टिगत फरिछता एलै, सामाजिक समरसता पसरलै। तहन समाजक छुआछूत मात्रक अवलोकन होइत छलै। मुदा आइ ओहि छुआछूतसँ भेल परिणाम, जाति-पातिमे बान्हल लोकक दृष्टि-परिवर्तन, आर्थिक सम्पन्नता, पैघक संग सभ बिन्दु। विषय वा स्थानपर ओहो अछोप सन, निंघेष बनल लोकक सहचर बनब, सभकेँ देखाओल जाए लागल आजुक लोककथामे। आब विषय विस्तार स्वतः सभ तरहक घटनाकेँ छुबैत कागचपर आबऽ लागल अछि। आबक परिवेशमे दहेजक पसार भऽ गेल अछि। एहेन पसार जकरा आब विशेष मुद्दा नै बना, बल्कि ओकरा जीवनक सामान्य क्रियाकलाप बुझि, परम्पराकेँ उघबाक प्रक्रियाकेँ दर्शाओल जाए लागल अछि। तहिया दहेज दानव जकाँ छलै। जे रचनाकारक लेल प्रमुख विषए छल। आइ दहेज दानव मात्र नै महादानव बनि ठाढ़ अछि मुदा परिवेश बदलल छै, माने कि आब तहियाक अपेक्षा आर्थिक सम्पन्नता बढ़ि गेलैए तेँ लोककेँ ई महादानव अपन जीवनक एकटा अंग बनि गेल अछि, कोनो बड्ड पैघ समस्या नै। आब तँ ओइसँ पैघ-पैघ समस्या रचनाकारकेँ उद्वेलित करैत अछि। यथा बिआहक खुजल रस्ता, कियो कोनो जाति-धर्मसँ बिआह कऽ सकैए आ ओकरा न्यायालय प्रमाणित तँ करिते अछि। सरकारी संरक्षण सेहो भेटै छै। ओहिसँ ऊपर दहेज उन्मूलनक दिशामे समलिंगी बिआह समाजकेँ जतऽ डेरा रहल अछि, ओतै रचनाकारकेँ एकटा नव दृश्यांकनक अवसर दऽ रहल अछि।
पहिने लोकक विपन्नता सेहो दृष्टि संकुचनक पर्याय छल। ई स्वाभाविक छै जे पेट भरल रहतै तखने लोकक सोच ओइसँ दूर धरि जेतै। नै तँ सभटा सोच भूखसँ उत्पन्न भेल आकुलतामे समाहित भऽ रहि जाएत। आब स्थिति उनटल अछि। आर्थिक उदारीकरण आ वैश्वीकरणक आएल चलनसारिमे आब लोक आर्थिक रूपेँ सम्पन्न भेल अछि। आर्थिक सम्पन्नता आब पेटक भूखसँ इतर आन-आन भूख जगेलक अछि। जाहि कारणेँ चोरि, हत्या आ बलात्कारक सेहो बढ़ावा भेल अछि जे ओकरे रूप/ प्रतिरूप बदलि गेल अछि। तँ आजुक लेखककेँ कलम चलेबा लेल आ बदलल प्रतिरूप हथियारक रूपमे भेटि गेल आ रचनाकार सभ ऐ सभ अपराधक अपन कलमक माध्यमे नवीनीकरण कऽ सोझाँ आनि रहल छथि। सम्प्रति रचनाकार सभ पदयात्रासँ ऊपर उठि मंगलग्रह यात्रापर जा रचनारत छथि। पहिलका जमानामे लोक शुद्ध दूध ग्रहण करैत छल, आब दूध तँ दूर पानिक समस्या लोककेँ घेरने जा रहल छै। कतौ पानिक कमीसँ हाहाकार मचैए तँ कतौ लोक बाढ़िक कोप भाजन बनि भूखे बिलबिलाइत नाङट भेल छतविहीन लोकक असरा तकैए। आ लेखक ऐ सभपर अपन दृष्टिए नजरि गरा कागचपर अनै छथि।

भारतमे सम्विधान सम्मत पितृसत्तात्मक परिवारकेँ उघबाक निमित्ते पुत्रक पैदाइशकेँ बढ़ावा देल जाइत रहल अछि। ओना तँ आइयो लोक बेटाक लिलसामे बेटीक हत्या (भ्रूण हत्या) कऽ रहल अछि जे दुनू अवस्था मैथिली लघुकथा लेखकक कलमक धारकेँ पिजौलक अछि। मुदा ऐ सबहक बावजूद जे मुद्दा लेखककेँ मसाला देलक ओ अछि नारी सशक्तिकरण। पहिने मौगीक मूँह जाबि कऽ ओकर सुरैतकेँ घोघमे नुकाएल रखबाक परिपाटी छल। मुदा आइ पुरुष सभ अपन कमाइकेँ द्वितीयक आ मौगीक नोकरीकेँ प्राथमिकता दऽ रहल अछि। शहरक कोन जे गाम देहातक मौगी सभ आब सरकारी नोकरी राजनीतिमे आगाँ बढ़ि कऽ आबि रहल अछि आ घरबला सभ पिछलगुआ बनि जीवन बिता रहल छथि, जकरा मैथिली लघुकथाकार सभ अपन कलमक माध्यमे भजा रहल छथि। महिलाकेँ आरक्षण दऽ एक दिस सरकार अप्पन कुर्सी बचबैए तँ दोसर दिस पुरुष सभ अपन घर बचेबा लेल संघर्षरत देखाइत छथि। जाहि सभ क्रियाकलापपर कलमकारक वक्र दृष्टि अछि।

उपरोक्त बदलावक अतिरिक्त सभसँ पैघ परिवर्तन देखल जा रहल अछि तकनीकी चलनसारि। आइ मोबाइल इन्टरनेट डिश टी.वी./ एल.सी.डी. आ लेड टी.वी. लोकक जीवनकेँ एगदमसँ चलायमान बना देलक अछि। तेँ लोक धरतीक भीड़ आ भार कम करबाक लेल चान दिस नजरि दऽ रहल अछि। आजुक मैथिली लघुकथाकार सेहो उपरोक्त सभ बिन्दुकेँ छुबैत अपन रचनाक एक-एक सूक्ष्म गतिविधिक सुन्दर वर्णन करैत देखार भऽ रहलाह अछि। ऐ मे सभसँ ऊपर नाम अछि श्री अनमोल झा जीक जे अपना रचनामे अपन सर-समाज आ गामक जिनगीक दैनिक व्यवहारक प्रत्येक बिन्दुपर दृष्टिगत होइत कलम चला रहलाह अछि। लोकक एक-एक क्षणक बदलैत परिस्थितिक जमीनसँ ऊपर उठि हवामे उधियाइत मन मस्तिष्कक। समाजक लोकक प्रत्येक सरोकारक चित्रण अपन लघुकथामे केलनि अछि। तहिना मिथिलेश झा/ गजेन्द्र ठाकुरजी अपन सूक्ष्म दृष्टिएँ समाजमे होइत उत्थान-पतन/ नैतिक क्षीणता/ सामाजिक दायित्व, विछोह आदिकेँ जतऽ तक लोककेँ छूबि संशित वा क्षोभित करैए सभ मैथिली लघुकथाकार ओकरा कलमबद्न कऽ लोकक बन्न नजरिकेँ खोलबाक वा नवपथ दर्शन देबाक सुन्नर प्रयास कऽ रहल छथि। ऐ सभसँ ऊपर एक नाम अछि श्री सत्येन्द्र कुमार झा जीक जे अपन दृष्टिएँ भौतिकवादी मुदा मौलिक नैतिक क्षरणकेँ एकटा फराक दृष्टिएँ सबहक सोझाँ अनबाक प्रयास च्केलनि अछि। हिनको कलम विषय विविधतापर नजरि राखि सभ कोनमे दौगि रहल अछि। अए सभसँ फराक गामक वा गमैय्या जिनगी मात्रक अवलोकन ओकर परिस्थितिवश बदलैत जीवनक प्रत्येक अंशकेँ शुद्ध गमैये सोचे दृष्टिगत कऽ सोझाँ आनाऽबला तीन प्रमुख नाम अछि- जगदीश प्रसाद मंडल, उमेश मंडल आ रघुनाथ मुखिया जीक।
ऐ तरहेँ समाजक बदलैत घटनाक्रमक प्रत्येक बिन्दुपर चाहे ओ सामाजिक समरसता हो , परिस्थितिगत बदलैत परिवेश हो, तकनीकी चलनक प्रभाव हो, आर्थिक सम्पन्नता- वैश्वीकरण- वा कोनो अन्यान्य खाँहिसँ जनमल कोनो समस्या। आजुक मैथिली लघुकथाकार ओइ प्रत्येक बिन्दुकेँ अपन कलमसँ उठा कागचपर आनि सोझाँ अनैत छथि। जाहिसँ सामाजिक सरोकारसँ जुड़ल एक घटना मैथिली लघुकथाक विषत बनि लोकक सोझाँ आबि रहल अछि। ऐ सँ ई स्पष्ट होइछ जे पहिनुका मैथिली लघुकथा वा लघुकथाकारक एकटा सीमामे बान्हल सोचसँ आगू बढ़ि आजुक रचनाकार मैथिली लघुकथा भण्डारकेँ एना भरि रहलाह अछि जाहिसँ कोनो उमेरक कोनो लोकक कोनो सोचक खाहिसँ पूरा भऽ सकए। तेँ समाजक सभ प्रकारक गतिविधिकेँ समेटकऽ चलि रहल छथि मैथिली लघुकथाकार।

पहिल मैथिली लघुकथा गोष्ठीक आयोजन:- २० फरवरी १९९५ ई. केँ चित्रगुप्त प्राङ्गन हटाढ़ रुपौली (मधुबनी)मे भेल छल। संयोजकद्वय मुन्नाजी आ मलयनाथ मण्डन।
अध्यक्षता- श्री भवनाथ भवन
मंच संचालन- कुमार राहुल
उपस्थित- १९ गोट लघुकथाकारक २६ गोट लघुकथा पाठ भेल। उपस्थित जनमे- पं.मतिनाथ मिश्र, पं. यन्त्रनाथ मिश्र, श्री श्यामानन्द ठाकुर, उमाशंकर पाठक, ललन प्रसाद, सचिदानन्द सच्चू, मुन्नाजी, कुमार राहुल, अतुल ठाकुर, प्रेमचन्द्र पंकज, मलयनाथ मण्डन, मीरा भारती कर्ण एवं सुनील कर्ण अपन रचना पाठ केलनि।



गजेन्द्र ठाकुर


गद्य साहित्य मध्य लघुकथाक स्थान आ लघुकथाक समीक्षाशास्त्र
गद्यक विभिन्न विधा जेना प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, कथा-गल्प, उपन्यास, पत्रात्मक साहित्य, यात्रा-संस्मरण, रिपोर्ताज आदिक मध्य कथा-गल्प, आख्यान आ उपन्यास अनुभव मिश्रित कल्पनापर विशेष रूपसँ आधारित अछि। जकरा हम सभ खिस्सा-पिहानी कहै छिऐ ताहिसँ ई सभ लग अछि। मध्य कथा-गल्प, आख्यान आ उपन्यास आ किछु दूर धरि नाटक आ एकांकी मनोरंजनक लेल सुनल-सुनाओल-पढ़ल जाइत अछि वा मंचित कएल जाइत अछि। ई उद्देश्यपूर्ण भऽ सकैत अछि वा एहिमे निरुद्देश्यता-एबसडिटी सेहो रहि सकै छै- कारण जिनगीक भागदौड़मे निरुद्देश्यपूर्ण साहित्य सेहो मनोरंजन प्रदान करैत अछि।

लघुकथा कहने एकटा एहेन विधा बनि सोझाँ आएल अछि जे पहिने कथा थिक फेर लघुकथा। लघुकथा, कथा, दीर्घ कथा, उपन्यास, नाटक आ एकांकी एकटा अनुभव मिश्रित कल्पनापर आधारित अछि। अंग्रेजीमे सेहो लम्बाइक आधारपर शॉर्ट-स्टोरी/ नोवेलेट/ नोवेला/ नोवेल क विभाजन कएल जाइत अछि जे क्रमसँ लघुकथा, कथा, दीर्घ कथा आ उपन्यास लेल प्रयुक्त कएल जा सकैत अछि। मैथिलीमे सभ विधामे शब्द संख्याक घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी अंग्रेजी वा दोसर यूरोपियन भाषासँ बेशी होइत अछि, ओना अंग्रेजी वा दोसर यूरोपियन भाषामे सेहो सभ विधामे लेखकक व्यक्तिगत रुचि आ कथ्यक आवश्यकताक अनुसार घटोत्तरी-बढ़ोत्तरी होइते अछि। तहिना वन-एक्ट प्ले भेल एकांकी आ प्ले भेल नाटक।

से लघुकथा कथा तँ छीहे।

अहाँक अनुभवमिश्रित कल्पना अहाँसँ किछु कहबा लेल कहैत अछि। आ ई कथ्य हास्य-कणिका वा अहास्य-कणिका बनि सकैत अछि। लोक अहाँकेँ कहि सकै छथि जे अहाँकेँ गप्प बड्ड फुराइए, अहाँ हाजिर जवाब छी। आ तकर बाद अहाँक हिम्मत बढ़ैत अछि आ अहाँ ओहि कथ्यकेँ शिल्पक साँचामे ढलैय्या कऽ लघुकथा बना दै छी।

हास्य-कणिकाक संग सभसँ मुख्य अवरोध छै जे अहाँक सुनाओल हास्य-कणिका घूमि-फिरि अहीं लग आबि जाएत, माने मौलिकता कतौ हेरा जाएत। हास्य-कणिका सेहो एक-दू पाँतीसँ आध-एक पृष्ठ धरिक होइत अछि। कथा-उपन्यासमे एकर समावेश कएल जा सकैत अछि मुदा लघुकथा एकर पलखति नै दैत अछि। मुदा कथा-उपन्यासमे जेना कएल जाइत अछि जे एकरा कोनो पात्रक मुँहसँ कहाबी वा कोनो आन प्रसंगसँ जोड़ि सार्थक बनाबी तँ से अहाँ लघुकथामे सेहो कऽ सकै छी। गल्प आख्यानसँ होइत अछि आ नैतिक शिक्षा, प्रेरक कथा आ मिस्टिक टेल्स सेहो लघुसँ दीर्घ रूप धरि होइत अछि। एकर लघु रूप लघुकथा नै भेल सेहो नै।
लघुकथामे जे त्वरित विचारक उपस्थापन देखल जाइत अछि से कथा-गल्प आ उपन्यासमे सेहो रहैत अछि। मुदा जे त्वरित विचारक उपस्थापन नै रहलासँ ओ लघुकथा नै रहत सेहो गप नै। उनटे जखन लघुकथाक समीक्षा करए लागब तखन समीक्षकक ध्यान स्थायी तत्व दिस होएबाक चाही नै कि त्वरित उपस्थापन दिस। त्वरित विचारक उपस्थापनक प्रति बेसी झुकाव ओकरा अहास्य-कणिका बना दैत अछि, ओ लघुकथा तँ रहत मुदा श्रेष्ठ लघुकथा नै रहत। लघुकथा झमारि देत तँ ओ लघुकथा वा श्रेष्ठ लघुकथा भेल आ जे ओ झमारि नै सकत तँ ओ लघुकथा भेबे नै कएल- ई गप नै छै। कोनो त्वरित विचार आएल, ओकरा कागचपर लिखि लेलहुँ, एहि डरसँ जे कतौ बिसरा ने जाए- एतऽ धरि तँ ठीक अछि। मुदा हरबड़ा कऽ एकरा लघुकथा बना देबासँ पहिने विचारकेँ सीझऽ दिऔ। ओहिमे की मिज्झर करब तँ ओहिमे स्थायी तत्व आबि सकत ताहिपर मनन करू। ओना बिना सिझने जे झमारैबला लघुकथा लिखि देलहुँ तँ ओ लघुकथा तँ भेल मुदा श्रेष्ठ लघुकथा ओ सेहो भऽ सकत तकर सम्भावना कम। ई ओहिना अछि जेना कोनो झमकौआ गीत अपन प्रभाव बेसी दिन रखबे करत से निश्चित नै अछि तहिना कथाक ई स्वरूप ट्वेंटी-ट्वेंटी सन नै भऽ जाए ताहिपर विचार करए पड़त।

उपन्यास तँ एक उखड़ाहामे नै पढ़ल जा सकैए मुदा कथा एक उखड़ाहामे पढ़ल जा सकैत अछि। एक उखड़ाहामे अहाँ कएकटा लघुकथा पढ़ि सकै छी। उपन्यासमे लेखक वातावरणक, प्लॉटक, व्यक्तिक जाहि विशदतासँ वर्णन कऽ सकैए से कथामे सम्भव नै। ओ एकटा पक्षपर/ जौँ कही तँ एकटा घटनापर केन्द्रित रहैए आ एहि क्रममे वातावरण आ व्यक्तिक जीवनक एकटा मोटामोटी विवरणात्मक स्केच मात्र खेंचि पबैए। लघुकथामे वातावरण आ व्यक्तिक जीवनक एकटा मोटामोटी विवरणात्मक स्केच सेहो नै खेंचि सकै छी, से पलखति लघुकथा अहाँकेँ नै देत, हँ तखन लघुकथा सेहो एकटा पक्षपर वा एकटा घटनापर केन्द्रित रहैए। आ ई पक्ष वा घटना तेहन रहत जे लेखककेँ ललचबइत रहत जे एकरा स्वतंत्र रूपसँ लिखू, एकरा कथा वा उपन्यासक भाग बना कऽ एकर स्वतंत्रता नष्ट नै करू।

तखन उपन्यासक प्लॉटसँ कथाक प्लॉट सरल होएत आ लघुकथाक लेल तँ एकर आवश्यकते नै अछि, पक्ष वा घटनाक वर्णन शिल्पक साँचामे ढलैय्या केलहुँ आ पूर्ण लघुकथा बनि कऽ तैयार।


लघुकथाक समीक्षाशास्त्र
लघुकथाक समीक्षा कोना करी? दू-पाँतीसँ डेढ़-दू पन्ना धरिक (पाँच पन्ना धरि सेहो) अनुभवमिश्रित काल्पनिक खिस्सा लघुकथा कहएबाक अधिकारी अछि। लघु आकारक कथामे कोनो कथा पूर्ण रूपसँ कहल गेल तँ फेर ओ लघुकथा नै कहाओत। हँ जे ओहिमे एकटा घटनाक शृंखलाक वर्णन एकटा कथ्य कहक लेल आवश्यक अछि तँ शृंखला पूर्ण होएबाक चाही। एहि शृंखलाक कड़ी कनेक नमगर भऽ सकैए। त्वरित उपस्थापनाक हरबड़ी एहि शृंखलाकेँ कमजोर कऽ सकैए। सदिखन उल्टा धार बहाबी आ त्वरित उपस्थापना आनी- ई पद्धति किछु गणमान्य लघुकथा लेखकक फार्मूला बनि गेल अछि। एकाध-दूटा लघुकथामे ई सिनेमाक “आइटम गीत” सन सोहनगर लगैत अछि मुदा फेर समीक्षकक दृष्टि एकरा पकड़ि लैत अछि, कारण ई प्रो-एक्टिव होएबाक साती रिएक्टिव बनि जाइत अछि। स्थायी प्रभाव एहिसँ नै आबि पबै छै, लघुकथा लेखकक प्रतिभाक कमी एहिमे प्रतीत होइ छै। लघुकथा वएह श्रेष्ठ होएत जे एकटा घटनाक शृंखलाक निर्माण करत आ अपन निर्णय सुनेबाक लेल पाठककेँ छोड़ि देत। फरिछेबाक पलखति लघुकथाकेँ नै छै, मुदा तकर माने ई नै जे दू-चारि पाँतीमे बात कएल जाए। मुदा लेखक जौँ दू-चारि पाँतीक गपकेँ लघुकथा कहै छथि तँ समीक्षक ओकरा लघुकथा मानबा लेल बाध्य छथि मुदा ओ श्रेष्ठ लघुकथा होएत तकर सम्भावना घटि जाइत अछि।
लघुकथाक वर्ण्य विषय मात्र चलैत-फिरैत घटना नै अछि। लघुकथा-लेखककेँ बच्चाक लेल, नैतिक शिक्षाक लेल आ धार्मिक विषयपर सेहो लघुकथा लिखबाक चाही। ट्रेनमे बसमे जाइ छी, घरमे दलानपर घूरतर गप करै छी आ तकर अनुभव मात्र लघुकथामे आबि रहल अछि। सामाजिक आ आर्थिक समस्या सेहो एकर स्थायी वर्ण्य विषय भऽ सकैत अछि। राजनैतिक प्रश्न आ प्राकृतिक आपदाकेँ वर्ण्य विषय बनाओल जा सकैत अछि। लघुकथा समीक्षक समीक्षा करबा काल पौराणिक रूपमे शिव पुराणमे सभसँ पैघ शिव आ गरुड़ पुराणमे सभसँ पैघ गरुड़ एहि तरहक समीक्षा नै करथि। माने ई नै होमए लागए जे, जे अछि से लघुकथा। जेना उपन्यासमे लेखककेँ अपन पूर्ण प्रतिभा देखेबाक लेल पलखतिक अभाव नै रहै छै से कथामे नै रहै छै आ लघुकथामे तँ से आरो कम रहै छै। मुदा विषयक विस्तार कऽ पाठकक माँगकेँ पूर्ण कएल जा सकैत अछि। कथोपकथनक गुंजाइश कम राखि वा कोनो उपस्थापनासँ पहिने राखि लघुकथा आ कथाकेँ सशक्त बनाओल जा सकैत अछि, अन्यथा ओ एकांकी वा नाटक बनि जाएत। लघुकथाक समावेश कथा-उपन्यासमे भऽ सकैए मुदा लघुकथामे हास्य-कणिकाक समावेश नै हुअए तखने ओ समीक्षाक दृष्टिसँ होएत, कारण एक तँ कम जगह, ताहिमे जे कथोपकथन आ हास्य कणिका घोसियेलहुँ तखन ओकर प्रभाव दीर्घजीवी नै होएत।

नीक लघुकथा त्वरित उपस्थापनक आधारपर नै वरन ओहिमे तीक्ष्णतासँ उपस्थापित मानव-मूल्य, सामाजिक समरसताक तत्व आ समानता-न्याय आधारित सामाजिक मान्यताक सिद्धान्त आधार बनत। समाज ओहि आधारपर कोना आगू बढ़ए से संदेश तीक्ष्णतासँ आबैए वा नै से देखए पड़त। पाठकक मनसि बन्धनसँ मुक्त होइत अछि वा नै, ओहिमे दोसराक नेतृत्व करबाक क्षमता आ आत्मबल अबै छै वा नै, ओकर चारित्रिक निर्माणक आ श्रमक प्रति सम्मानक प्रति सन्देह दूर होइ छै वा नै- ई सभटा तथ्य लघुकथाक मानदंड बनत। कात-करोटमे रहनिहार तेहन काज कऽ जाथि जे सुविधासम्पन्न बुते नै सम्भव अछि, आ से कात-करोटमे रहनिहारक आत्मबल बढ़लेसँ होएत। हीन भावनासँ ग्रस्त साहित्य कल्याणकारी कोना भऽ सकत? बदलैत सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक समीकरणक परिप्रेक्ष्यमे एकभग्गू प्रस्तुतिक रेखांकन, कथाकार-कविक व्यक्तिगत जिनगीक अदृढ़ता, चाहे ओ वादक प्रति होअए वा जाति-धर्मक प्रति, साहित्यमे देखार भइए जाइत छैक, शोषक द्वारा शोषितपर कएल उपकार वा अपराधबोधक अन्तर्गत लिखल जाएबला कथामे जे पैघत्वक (जे हीन भावनाक एकटा रूप अछि) भावना होइ छै, तकरा चिन्हित कएल जाए। मेडियोक्रिटी चिन्हित करू- तकिया कलाम आ चालू ब्रेकिंग न्यूज- आधुनिकताक नामपर। युगक प्रमेयकेँ माटि देबाक विचार एहिमे नहि भेटत, आधुनिकीकरण, लोकतंत्रीकरण, राष्ट्र-राज्य संकल्पक कार्यान्वयन, प्रशासनिक-वैधानिक विकास, जन सहभागितामे वृद्धि, स्थायित्व आ क्रमबद्ध परिवर्तनक क्षमता, सत्ताक गतिशीलता, उद्योगीकरण, स्वतंत्रता प्राप्तिक बाद नवीन राज्य राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया, कखनो काल परस्पर विरोधी। सामुदायिकताक विकास, मनोवैज्ञानिक आ शैक्षिक प्रक्रिया। आदिवासी- सतार, गिदरमारा आदि विविधता आ विकासक स्तरकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि। प्रकृतिसँ लग, प्रकृति-पूजा, सरलता, निश्छलता, कृतज्ञता। व्यक्तिक प्रतिष्ठा स्थान-जाति आधारित। किछु प्रतिष्ठा आ विशेषाधिकार प्राप्त जाति। किछुकेँ तिरस्कार आ हुनकर जीवन कठिन। महिला आ बाल-विकास- महिलाकेँ अधिकार, शिक्षा-प्रणालीकेँ सक्रिय करब, पाठ्यक्रममे महिला अध्ययन, महिलाक व्यावसायिक आ तकनीकी शिक्षामे प्रतिशत बढ़ाओल जाए।स्त्री-स्वातंत्र्यवाद, महिला आन्दोलन।धर्मनिरपेक्ष- राजनैतिक संस्था संपूर्ण समुदायक आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित- धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित। विकास आर्थिकसँ पहिने जे शैक्षिक हुअए तँ जनसामान्य ओहि विकासमे साझी भऽ सकैए। एहिसँ सर्जन क्षमता बढ़ैत अछि आ लोकमे उत्तरदायित्वक बोध होइत अछि। विज्ञान आ प्रौद्योगिकी विकसित आ अविकसित राष्ट्रक बीचक अंतरक कारण मानवीय समस्या, बीमारी, अज्ञानता, असुरक्षाक समाधान- आकांक्षा, आशा सुविधाक असीमित विस्तार आ आधार। विधि-व्यवस्थाक निर्धन आ पिछड़ल वर्गकेँ न्याय दिअएबामे प्रयोग होएबाक चाही। नागरिक स्वतंत्रता- मानवक लोकतांत्रिक अधिकार, मानवक स्वतंत्र चिन्तन क्षमतापूर्ण समाजक सृष्टि, प्रतिबन्ध आ दबाबसँ मुक्ति। प्रेस- शासक आ शासितक ई कड़ी- सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक जीवनमे भूमिका, मुदा आब प्रभावशाली विज्ञापन एजेंसी जनमतकेँ प्रभावित कएनिहार। नव संस्थाक निर्माण वा वर्तमानमे सुधार, सामन्तवादी, जनजातीय, जातीय आ पंथगत निष्ठाक विरुद्ध, लोकतंत्र, उदारवाद, गणतंत्रवाद, संविधानवाद, समाजवाद, समतावाद, सांवैधानिक अधिकारक अस्तित्व, समएबद्ध जनप्रिय चुनाव, जन-संप्रभुता, संघीय शक्ति विभाजन, जनमतक महत्व, लोक-प्रशासनिक प्रक्रिया-अभिक्रम, दलीय हित-समूहीकरण, सर्वोच्च व्यवस्थापिका, उत्तरदायी कार्यपालिका आ स्वतंत्र न्यायपालिका। जल थल वायु आ आकाश- भौतिक रासायनिक जैविक गुणमे हानिकारक परिवर्तन कए प्रदूषण, प्रकृति असंतुलन। कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ? जगतक सौन्दर्यीकृत प्रस्तुति अछि कला। सौंदर्यक कला उपयोगिताक संग। कलापूर्णताक कलाक जीवन दर्शन- संप्रदाय संग। भावनात्मक वातावरण- सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, सुन्दर-मूर्त, अमूर्त। मानसिक क्रिया- मनुष्य़ सोचैबला प्राणी, मानसिक आ भौतिक दुनूक अनुभूति करएबला प्राणी। विरोधाभास वा छद्म आभास- अस्पष्टता। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि। उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित आ विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित रहि गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल। मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। आइ-काल्हिक “डिसकसन” वा द्वन्द जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल। से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि। अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि। साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत। कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि। जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि। जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बौद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि। मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि। आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि। फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि। उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टिकोण-विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका , सत्य-असत्य, सभक अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन , आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावनाक रहि-रहि खतम होएब, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि, सतही चिन्तन, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि , जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण , कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास, गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास, भूमंडलीकरणक कारणसँ मुख्यधारसँ अलग भेल कतेक समुदायक आ नारीक प्रश्नकेँ उत्तर आधुनिकता सोझाँ अनलक। विचारधारा आ सार्वभौमिक लक्ष्यक विरोध कएलक मुदा कोनो उत्तर नै दऽ सकल। तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी। आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास । प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि । विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल। प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि। अस्तित्ववादमे मनुष्य-अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)। हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग। क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप, अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि। तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि।जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब। लघुकथाक समक्ष ई सभ वैज्ञानिक आ दार्शनिक तथ्य चुनौतीक रूपमे आएल अछि। होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।पोस्टस्ट्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि।आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल । मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल। पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म।कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि, किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि, जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट !पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ, विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।

लघुकथा एक पक्ष वा घटनाक वर्णन अछि आ ई आवश्यक नै जे ओकरा एक्के पृष्ठमे लिखल जाए। अहाँ ओहि घटनाकेँ ३-४ पृष्ठमे सेहो लिखि सकै छी आ ओ लघुकथा रहबे करत। जेम्स जॉयसक “डब्लाइनर” लघु-कथा संग्रहक सभ कथा एकटा घटनासँ अनचोके कोनो वस्तुक त्वरित ज्ञान दर्शबैत अछि। १५ टा शॉर्ट-स्टोरीक संग्रह जेम्स जॉयसक “डब्लाइनर” २०० पृष्ठक अछि आ मैथिली लघुकथाक सभ विशेषतासँ युक्त अछि। तहिना खलील-जिब्रान आ एंटन चेखवक ढेर रास शॉर्ट-स्टोरी नमगर रहितो लघुकथा अछि। अंग्रेजीमे वा यूरोपियन साहित्यमे शॉर्ट-स्टोरी आ स्टोरीक प्रयोग कखनो पर्यायवाचीक रूपमे होइत अछि। नॉवेल जकरा बांग्ला आ मैथिलीमे उपन्यास आ मराठीमे कादम्बरी कहै छिऐ-क विस्तार बेशी होइ छै। मैथिलीमे ५०-६० पृष्ठसँ उपन्यास शुरू भऽ जाइत छै जे अंग्रेजीक शॉर्ट-स्टोरी / नोवेलेट/ नोवेला/ एहि सभक ऊपरी सीमाक्षेत्रमे अबैत अछि। मुदा मैथिलीक स्थिति अंग्रेजीसँ फराक छै। एहिमे बालकथा कैक राति धरि चलैत अछि तँ पैघ लोकक कथा मिनटमे सेहो खतम भऽ जाइत अछि। मैथिलीक सन्दर्भमे ई तथ्य आब सोझाँ आबि गेल अछि जे लघुकथाक सीमा एक पृष्ठ, कथाक तीन-चारि पृष्ठ, दीर्घकथाक १५-२० पृष्ठ आ उपन्यासक ६०-५०० पृष्ठ अछि। एहिमे लघुकथाक पृष्ठ सीमा १-४ पृष्ठ धरि करबाक बेगरता हम बुझै छी।

विहनि कथा (गजेन्द्र ठाकुर- अपडेट ३१ मार्च २०१२)

०६ फरबरी १९९५ मे सहयात्री मंच, लोहना, मधुबनीक बैसारमे मुन्नाजी द्वारा विहनि कथाक शब्दावलीक अवधारणा प्रस्तुत कएल गेल जकर समर्थन श्री राज केलन्हि। एकर समर्थन सर्वश्री शैलेन्द्र आनन्द, भवनाथ भवन, प्रेमचन्द्र पंकज, ललन प्रसाद, प्रभु कुमार मण्डल, मलयनाथ मंडन, अतुलेश्वर, अखिलेश्वर, कुमार राहुल आ सच्चिदानन्द सच्चू केलन्हि।०६ फरबरी १९९५ मे सहयात्री मंच, लोहना, मधुबनीक बैसारमे मुन्नाजी द्वारा विहनि कथाक शब्दावलीक अवधारणा प्रस्तुत कएल गेल जकर समर्थन श्री राज केलन्हि। एकर समर्थन सर्वश्री शैलेन्द्र आनन्द, भवनाथ भवन, प्रेमचन्द्र पंकज, ललन प्रसाद, प्रभु कुमार मण्डल, मलयनाथ मंडन, अतुलेश्वर, अखिलेश्वर, कुमार राहुल आ सच्चिदानन्द सच्चू केलन्हि। पहिल विहनि कथा गोष्ठी २० फरबरी १९९५ केँ हटाढ़ रुपौलीमे भेल, जइमे विहनि कथाक स्वरूपपर चर्चा आ विहनि कथाक पाठ भेल। ऐ मे शैलेन्द्र आनन्द, श्रीराज, उमाशंकर पाठक, मुन्नाजी, यंत्रनाथ मिश्र, मतिनाथ मिश्र, श्यामानन्द ठाकुर, ललन प्रसाद, भवनाथ भवन, प्रेमचन्द्र पंकज, प्रभु कुमार मण्डल, मलयनाथ मंडन, कुमार राहुल, सच्चिदानन्द सच्चू, विजयानन्द हीरा, सुनील कर्ण, सुश्री मीरा कर्ण, करनजी, विजय शंकर मिश्र, कमलेश झा आदि भाग लेलनि। विदेहक विहनि कथा विशेषांकमे विहनि कथाक स्वरूप आ ओकर समीक्षाशास्त्रपर ढेर रास चर्चा भेल आ कथाक लम्बाइ आ विहनि कथापर विस्तृत चर्च भेल। किछु गोटेकेँ “विहनि कथा” शब्दावलीपर आपति अछि। ओ आध पन्नाक कथाक लेल लघुकथा शब्दक प्रयोग करबापर बिर्त छथि। मुदा तखन ३-४ पन्नाक कथा लेल कोन शब्द प्रयोग करब? लघुकथा तँ तइ लेल प्रयुक्त होइ छै। तँ की “अति लघु कथा” शब्दावली विहनि कथा लेल प्रयोग कएल जाए? ऐपर जे तर्क साहित्य अकादेमीक दिल्ली कथा गोष्ठीमे देल गेल से हास्यास्पद अछि। ओ लोकनि ३-४ पन्नाक कथा लेल “कथा”; आ “विहनि कथा” लेल “लघुकथा”; शब्दावलीक प्रयोग करबाक इच्छुक रहथि। मुदा कथा, खिस्सा, पिहानी तँ विहनि कथा, लघु कथा, दीर्घ कथा, उपन्यास सभ लेल प्रयुक्त एकटा शब्दावली अछि, महाकाव्यमे सेहो कथा होइ छै। ऐपर हमरा अपन स्कूल दिनक एकटा खिस्सा (ई विहनि कथा भऽ सकैए) मोन पड़ैत अछि- हिसाबक कक्षामे साइन थीटा बट्टा कौस थीटा बराबड़ की, ई कहलापर एकटा विद्यार्था उत्तर देलक; साइन बट्टा कॉस, कारण थीटा-थीटा कटि जेतै; से ओइ विद्यार्थीक कहब रहै। मास्टर साहैब तमसेलखिन्ह नै, कहलखिन्ह जे बारह बटा सत्रह बराबड़ दू बटा सात हेतै? विद्यार्थी कहलक नै। किए? एक-एक कटि गेलै तँ दू बटा सात भेलै ने।– मास्टर साहैब कहलखिन्ह। विद्यार्थी कहलकै- नै। बारह आ सत्रह तँ स्वतंत्र अस्तित्व बला अछि। तखन मास्टर साहैब कहलखिन्ह- तहिना साइन थीटा आ कौस थीटा स्वतंत्र अस्तित्व बला अछि। ऐ डिसकसनक बाद “विहनि कथा” शब्दावलीपर आपति करैबला लोकनि बात बुझि जेता से आशा अछि। विहनि कथाक अतिरिक्त आर सभ विधापर जे डिसकसन जरिआएल छल से विदेह गोष्ठी सभ द्वारा अन्तिम रूप देल जा चुकल अछि।


(साभार विदेह www.videha.co.in )

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