Wednesday, November 9, 2011

साहित्य मनीषी मायानन्द मिश्रसँ साक्षात्कारडॉ शिव प्रसाद यादव द्वारा

साहित्य मनीषी मायानन्द मिश्रसँ साक्षात्कार -डॉ शिव प्रसाद यादव द्वारा।
डॉ. श्री शिवप्रसाद यादव, मारवाड़ी महाविद्यालय भागलपुरमे मैथिली विभागाध्यक्ष छथि। भागलपुरक नामी-गामी विशाल सरोवर ’भैरवा तालाब’। जे परोपट्टामे रोहु माछक लेल प्रसिद्ध अछि। कारण एहि पोख्रिक माँछ बड़ स्वादिष्ट। किएक ने! चौगामाक गाय-महींसक एक मात्र चारागाह आर स्नानागार भैरबा पोखड़िक महाड़। दक्षिणबड़िया महाड़ पर मारवाड़ी महाविद्यालय छात्रावास। छात्रावासक प्रांगणमे हमर (अधीक्षक) निवास। आवासक प्रवेश द्वार पर लुक-खुक करैत साँझमे बुलारोक धाप। हॉर्नक ध्वनि सुनि दौड़ि कए घरसँ बहार भेलहुँ। दर्शन देलनि मिथिलाक त्रिपूर्ति, महान विभूति- दिव्य रूप। सौम्य ललाट। ताहि पर चाननक ठोप, भव्य परिधान। ताहि पर मिथिलाक पाग देखितहि मोन भेल बाग-बाग। नहुँ-नहुँ उतरलनि- साहित्य मनीषी मायानन्द, महेन्द्र ओऽ धीरेन्द्र। गुरुवर लोकनिक शुभागमनसँ घर-आँगन सोहावन भए गेल। हृदय उमंग आऽ उल्लाससँ भरि गेल। मोन प्रसन्न ओऽ प्रमुदित भए उठल। गुरुवर आसन ग्रहण कएलनि, यथा साध्य स्वागत भेलनि। तदुपरान्त भेंटवार्ताक क्रम आरम्भ भए गेल। प्रस्तुत अछि हुनक समस्त साहित्य-संसारमे समाहित भेंटवार्ताक ई अंश:-


प्र. ’मिथि-मालिनी’ केँ अपने आद्योपान्त पढ़ल। एकर समृद्धिक लेल किछु सुझाव?                                            उ. ’मिथि मालिनी’ स्वयं सुविचारित रूपें चलि रहल अछि। स्थानीय पत्रिका-प्रसंग हमर सभ दिनसँ विचार रहल अछि जे एहिमे स्थापित लेखकक संगहि स्थानीय लेखक-मंडलकेँ सेहो अधिकाधिक प्रोत्साहन भेटक चाही। एहिमे स्थानीय उपभाषाक रचनाक सेहो प्रकाशन होमक चाही। एहिसँ पारस्परिक संगठनात्मक भावनाक विकास होयत।                                                                                                                          


प्र. ’मिथिला परिषद’ द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व समारोहमे अपनेकेँ सम्मानित कएल गेल। प्रतिक्रिया?                                                                                                                                                    
उ. हम तँ सभ दिनसँ मैथिलीक सिपाही रहलहुँ अछि। सम्मान तँ सेनापतिक होइत छैक, तथापि हमरा सन सामान्यक प्रति अपने लोकनिक स्नेह-भाव हमरा लेल गौरवक वस्तु भेल आऽ मिथिला परिषदक महानताक सूचक। हमरा प्रसन्न्ता अछि। 
                                                                                                                
प्र. अपने साहित्य सृजन दिशि कहियासँ उन्मुख भेलहुँ?
उ. तत्कालीन भागलपुर जिलाक सुपौलमे सन् ४४-४५ मे अक्षर पुरुष पं रामकृष्ण झा ’किसुन’ द्वारा मिथिला पुस्तकालयक स्थापना भेल छल तकर हम सातम-आठम वर्गसँ मैट्रिक धरि अर्थात् ४६-४७ ई सँ ४९-५० ई.धरि नियमित पाठक रही। एहि अध्ययनसँ लेखनक प्रेरणा भेटल तथा सन् ४९ ई. सँ मैथिलीमे लेख लिखऽ लगलहुँ जे कालान्तरमे भाङक लोटाक नामे प्रकाशितो भेल सन् ५१ ई. मे। हम तकर बादे मंच सभपर कविता पढ़ऽ लगलहुँ।
                                                                                                                                                 
प्र. अपने हिन्दी एवं मैथिली दुनू विषयसँ एम.ए. कएल। पहिल एम.ए. कोन विषयमे भेल?                              उ. मैट्रिकमे मैथिली छल किन्तु सन् ५० ई. मे सी.एम. कॉलेज दरभंगामे नाम लिखेबा काल कहल गेल जे मैथिलीक प्रावधान नहि अछि। तैँ हिन्दी रखलहुँ। तैँ रेडियो, पटनामे काज करैत, सन् ६० ई. मे पहिने हिन्दीमे, तखन सन् ६१ ई. मे मैथिलीमे एम. ए. कएलहुँ।          
                                                                                  
प्र. हिन्दी साहित्यमे प्रथम रचना की थीक आऽ कहिया प्रकाशित भेल।                                                             उ. हिन्दीक हमर पहिल रचना थिक, ’माटी के लोक: सोने की नया’ जे कोसीक विभीषिका पर आधारित उपन्यास थिक आऽ जे सन् ६७ ई. मे राजकमल प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेल।  

प्र.अपनेक हिन्दी साहित्यमे १. प्रथम शैल पुत्री च २. मंत्रपुत्र ३. पुरोहित ४. स्त्रीधन ५. माटी के लोक सोने की नैया, पाँच गोट उपन्यास प्रकाशित अछि। एहिमे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपन्यास कोन अछि आओर किएक?     उ. अपन रचनाक प्रसंग स्वयं लेखक की मंतव्य दऽ सकैत अछि? ई काज तँ थिक पाठक आऽ समीक्षक लोकनिक। एना, हिन्दी जगतमे हमर सभ ऐतिहासिक उपन्यास चर्चित रहल अछि। अधिक हिन्दी समीक्षक प्रशंसे कएने छथि। गत वर्षसँ हिन्दीक सम्राट प्रो. नामवर सिंह जी हिन्दीक श्रेष्ठ उपन्यास पर एकटा विशिष्ट कार्य कऽ रहल छथि, जाहिमे हमर प्रथम शैल-पुत्री नामक प्रगैतिहासिक कालीन उपन्यास सेहो संकलित भऽ रहल अछि। एहि उपन्यास पर विस्तृत समीक्षा लिखने छथि जयपुर युनिवर्सिटीक डॉ शंभु गुप्त तथा हम स्वयं लिखने छी एहि उपन्यासक प्रसंग अपन मंतव्य। ई पुस्तक राजकमल प्रकाशनसँ छपि रहल अछि। असलमे प्रथम शैलपुत्री’ मे अछि भारतीय आदिम मानव सभ्यताक विकासक कथाक्रम- जे कालान्तरमे हड़प्पा अथवा सैंधव सभ्यताक निर्माण करैत अछि जकर क्रमशः अंत होइत अछि। हम स्वयं एकरा अपन सफल रचना मानैत छी, समीक्षको मानि रहलाह अछि। एना, पुरोहित अपना नीक लगैत अछि। ’स्त्रीधन’ मिथिलाक इतिहास पर अछि।
                                                                                                                                    
प्र. मैथिली साहित्यमे प्रथम प्रकाशित पोथी कोन अछि आऽ कतएसँ प्रकाशित भेल?                                        उ. हमर मैथिलीक प्रथम प्रकाशित पोथी थिक ’भाङक लोटा’ जे हास्य रसक कथा-संग्रह थिक। जकर प्रकाशन सन् ५१ ई. मे दरभंगाक वैदेही प्रकाशनक दिससँ भेल छल। ई सामान्य कोटिक रचना थिक, मुदा पहिल थिक।


 प्र. मैथिलीमे अपनेक लेल विशेष रुचिगर विधा कोन अछि आऽ किएक?  
                                             
 उ. मैथिलीमे गीत, कविता, ओऽ गीतल लिखलहुँ आऽ ओऽ सभ मंचपर प्रशंसितो भेल। सन् साठि ई.मे मैथिलीमे नवीन काव्यांदोलनकेँ प्रोत्साहित करबाक लेल ’अभिव्यंजना’ नामक पत्रिकाक संपादन प्रकाशन सेहो कयल, स्वयं सन् ५९ ई.सँ एहि प्रकारक काव्यक रचना सेहो कयल। किन्तु हमर प्रिय ओ मनोनुकूल विधा रहल कथा साहित्य ओ उपन्यास, जाहिमे मानवीय संवेदनाक संगहि अन्तर्मनक सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करबाक लक्ष्य रहैत छल। तैँ हमर कथा-संग्रह ओ उपन्यास बेसी प्रकाशित भेल।           


प्र. मैथिलीमे अपनेक ११ गोट प्रकाशित पोथी उपलब्ध अछि, एहिमे सर्वाधिक संतुष्टि कोन पोथीसँ भेटल?        उ. लेखककेँ अपन रचनासँ पूर्ण संतोष नहि होइत अछि, तैँ ओऽ नरन्तर लिखैत जाइत अछि, लिखबाक इच्छा निरन्तर बनल रहैत अछि। ओकर श्रेष्ठताक निर्णय तँ पाठक ओ समीक्षक होइत छथि। हमरा लगैत अछि जे हमर चरित्र कथा संग्रह जे एखन धरि अप्रकाशित अछि, हमर प्रिय रचना होयत। एना- एखन धरिक प्रकाशनमे ’चन्द्र बिन्दु’ कथा-संग्रह ओ ’मंत्रपुत्र’ उपन्यास अपेक्षाकृत अधिक संतोष दैत अछि।        

प्र. अपनेक पहिल उपन्यास कहिया आऽ कतएसँ प्रकाशित भेल?                                                                     उ. हमर पहिल मैथिली उपन्यास थिक, “बिहाड़ि, पात आऽ पाथर” जकरा हम सन् ५४ ई.मे लिखलहुँ, आऽ जे सन् साठि ई.मे कलकत्ताक मिथिला दर्शनक मैथिली समितिक दिसिसँ प्रकाशित भेल। मैथिली समिति अन्य अनेक महत्वपूर्ण कृति सभक प्रकाशन केलक जे एकटा इतिहास बनि गेल।


प्र. मंत्रपुत्रपर साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल। की एकर पूर्वानुमान छल?                                                     उ. लेखक पुरस्कारक लेल नहि लिखैत अछि, ओऽ लिखैत अछि, ओऽ लिखैत अछि स्वान्तः सुखाय, अपन आत्म संतोष लेल। किन्तु काव्यक उद्देश्यसँ ’यशे अर्थकृते ...’ कहल गेल अछि। वस्तुतः हम पुरस्कारक लेल कहियो उत्सुक नहि भेलहुँ आऽ ने कोनो तकर चेष्टो कयलहुँ। तखन लोकसभ चर्च करैत रहैत छलाह, से सुनबामे अबैत रहैत छल, से फूसि कोना कहू, नीके लगैत छल।

                                                                    
प्र. सुनैत छी जे पुरस्कार हेतु पोथी चयनमे गोलेशी चलैत अछि, कतए धरि अपने सहमत छी?                       उ. हौ! शिवप्रसाद! ई बात हमरहुँ सुनबामे अबैत अछि, एकाध बेर अखबारोमे ई बात देखबामे आयल अछि। बस, हमरहुँ एहि प्रसंग कोनो आधिकारिक ज्ञान नहि अछि, आऽ ने हम एहि सभमे समये दऽ पबैत छी। तैँ जहिना तोँ सुनैत छह, तहिना हमहूँ सुनि लैत छी।

प्र. अपनेक अनुसारेँ मैथिली जगतमे की एहन कोनो साहित्यकार छथि? जे अहर्ता रहितहुँ साहित्य अकादमी पुरस्कार पएबासँ वंचित छथि?                                                                                                                    उ. विशिष्ट साहित्यकारकेँ तँ ध्यानमे राखले जाइत अछि, किन्तु पुरस्कार तँ कृति विशेषपर भेटैत अछि, जकर प्रकाशनक निश्चित अवधि निर्धारित रहैत अछि। कृति चयनक सेहो एकटा निश्चित निअम अछि।


प्र. बिहार सरकारक ग्रियर्सन पुरस्कार कहिया भेटल आऽ कोन पुस्तक पर?                                                   उ. ई पुरस्कार हमरा ’मंत्रपुत्र’ नामक ऋगवैदिक कालीन उपन्यासपर सन् १९८८-८९ ई.मे भेटल छल। एहि उपन्यासमे आर्यावर्तक जनभाषाक संगहि आर्य अनार्यक संस्कृतिक मिलनक कथा अछि। एहिमे राष्ट्रीय एकता ओ भावात्मक एकताक सङहि विश्व शांतिक प्रसंग सेहो प्रासंगिक चर्च भेल अछि।


प्र. मैथिली जगतमे बिहार सरकारक ग्रियर्सन पुरस्कार आओर किनका भेटल अछि?                                     उ. पुरस्कार प्रसंग हम बहुत उत्सुक नहि रहैत छी, तैँ ई बात हमरा ज्ञात नहि अछि।


प्र. १९६० ई. मे अपनेक सम्पादकत्वमे ’अभिव्यंजना’ पटना-सहरसासँ पत्रिका प्रकाशित भेल। चारि पाँचटा अंकक बाद बंद भए गेल। किएक?                                                                                                                  . हौ शिव प्रसाद। मिथि मालिनीक सम्पादन प्रकाशन तँ तोहूँ कऽ रहल छह, ग्राहक संख्या भेटबामे कतेक असुविधा होइत छैक ज्ञाते हेतह। ताहूमे तखन, जखन तोरा पीठपर एकटा अति उत्साहित ओ सुसंचालित मिथिला परिषद सन् संस्थाक हाथ छह। हमहूँ ग्राहक संख्या नहि बढ़ा सकलहुँ तैँ बन्द भऽ गेल। प्रायः यैह स्थिति मैथिली-पत्रकारिताक रहल अछि, तैँ अधिक पत्र-पत्रिका अल्पकालिके रहल।


प्र. ’अभिव्यंजनवाद’ सँ की अभिप्राय अछि?                                                                                                 उ. सन् साठि ई. मे ’अभिव्यंजना’ प्रकाशन-योजनाक पाछू हमर उद्देश्य छल मैथिलीमे नवीन काव्यान्दोलनकेँ गति ओ प्रोत्साहित करब। एहि प्रकारक काव्यकेँ मैथिलीक किछु विद्वान्, ’नव कविता’ अथवा प्रयोगवादी कविता कहऽ लागल छलाह, जे वाद-परम्परा हिन्दीमे चलि रहल छल। हम हिन्दीक अनुकरणक विरोधी रही वा छी। तैँ मैथिलीक एहि प्रकारक नवीन काव्यकेँ हम अभिव्यजनावादी काव्य कहलहुँ आऽ लिखलहुँ। एहि प्रसंग हम अभिव्यंजनाक सम्पादकीय ओ दिशान्तर भूमिकामे विस्तारसँ लिखनहुँ छी। संक्षेपमे एतबहि जे हमर अभिव्यंजनावादक संबंधमे क्रोचेक अभिव्यंजनासँ अछि आऽ ने अभिनवगुप्तक अभिव्यंजनावादसँ अछि। मैथिलीक एहि प्रकारक नवीन काव्यमे अभिव्यक्ति-शिल्प विशेषता रहैत अछि आऽ से अभिव्यंजना पत्रिका द्वारा प्रोत्साहित कएल गेल, तैँ अभिव्यंजनावाद।


प्र. “दिशान्तर” आऽ “अवान्तर” कविता-संग्रहसँ की ध्वनित होइत अछि?                                                         . सन् साठि ई.क आसपास अनुभव भेल जे प्रचलित काव्य-लेखन-परम्परामे एकटा दिशा परिवर्तन भऽ रहल अछि, जे नवीनताक लेल ओ युगधर्मक लेल अनुकूल अछि तैँ दिशान्तर। पाछू अनुभव भेल जे अंततोगत्वा काव्यमे काव्यात्मकता तथा ओकर गीति-तत्व अति अनिवार्य तत्व थिक तैँ पुनः अवान्तर। आऽ तैँ ई दुनू संग्रह प्रकाशित कएल। अवान्तरमे हम गजलकेँ गीतल कहल अछि जे उर्दू ओ मैथिली भाषा संस्कारपर आधारित अछि। ई बात हम अपन अवान्तरक भूमिकामे विस्तारसँ लिखने छी।                                          


प्र. साहित्यिक रचना स्वान्तः सुखायक लेल करैत छी अथवा समाजक लेल?                                                  उ. साहित्यिक रचना “स्वान्तः सुखाय” क लेल होइत अछि, किन्तु अंततोगत्वा ओकर उद्देश्य भऽ जाइत अछि समाजे। साहित्य, समाजेक परिणाम थिक आऽ तैँ ओ समाजेक हित चिन्तनकेँ अपन लक्ष्यो मानैत अछि।      




प्र. कोशी अंचलमे जन्म भेल। कोशीक उत्थान-पतन देखल, कोशीक विनाश-लीला देखल, मुदा लिखल नहि?  उ. लिखलहुँ नहि कोना? मैथिलीमे सन् ५९-६० ई.मे “माटिक लोक” नामक उपन्यास लिखलहुँ जे प्रकाशन-व्यवस्थाक अभावमे छपि नहि सकल, आब तँ ओकर पाण्डुलिपियो नष्ट भऽ गेल। पुनः ओकर हिन्दीमे पुनर्लेखन कयल “माटी के लोक: सोने की नैया” क नामसँ जे राजकमल प्रकाशन दिल्लीसँ प्रकाशित भेल आऽ व्यापक स्तरपर हिन्दीमे चर्चितो भेल।                                                                                                      



प्र. आकाशवाणी, पटनामे कतेक दिन सेवा कएल?                                                                                          उ. पटनाक आकाशवाणीमे हम सन् ५७ ई. सँ ६१ ई.क १४ नवम्बर धरि रहलहुँ। लगभग पाँच वर्ष।                




प्र. किछु मैथिली पत्रिकामे अश्लीलताक चित्रण भए रहल अछि। तकर की प्रतिफल?                                        उ. साहित्यमे अश्लील चित्रण सर्वथा अवांछनीय।एहिसँ अप-संस्कृतिकेँ प्रोत्साहन भेटैत अछि, से ने काम्य आऽ ने क्षम्य। साहित्यक उद्देश्ये थिक सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। जहाँ धरि पत्रिका सभक प्रश्न अछि ओहिमे आरो सतर्कताक प्रयोजन अछि। कारण, पुस्तकक अपेक्षा पत्रिका सभ जनजीवनमे अधिक प्रवेश करैत अछि, विशेषतः आजुक व्यस्त जीवन क्रममे। तैँ एहन साहित्यसँ अपसंस्कृतिये केँ प्रोत्साहन भेटत।                    



प्र. भावी लेखन-योजना की अछि?                                                                                                                 उ. किछु लेखन-योजना एखनहुँ अछि, मुदा वार्धक्य आब बाधा देबऽ लागल अछि, तखन देखा चाही भविष्यमे की कऽ पबैत छी। मैथिलीमे किछु अप्रकाशित पांडुलिपि अछि। पांडुलिपि प्रकाशित होइत जाइत छैक तँ लेखनमे सेहो गतिशीलता अबैत रहैत छैक।                                                                                          












मायानन्द मिश्रक हिनक जन्म १७ अगस्त १९३४ ई. केँ सुपौल जिलाक बनैनियाँ गाममे भेलनि। तत्कालीन बनैनियाँ कोसीक प्रकोपसँ उजड़ि गेल। फलतः हिनक आरम्भिक शिक्षा अपन मामा स्व. रामकृष्ण झा “किसुन” क सान्निध्यमे सुपौलसँ भेलनि। उच्च शिक्षाक हेतु ई दरभंगा चलि गेलाह आऽ ओतएसँ बी.ए. कएल। पश्चात् बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुरसँ हिन्दी एवं मैथिलीमे एम.ए. कएलनि। १९५६ ई. मे आकाशवाणी पटनामे मैथिली कार्यक्रमक लेल नियुक्त भेलाह। एहि अवधिमे मायानन्द बाबू १० गोट रेडियो नाटक लिखलनि जे अत्यन्त प्रशंसनीय रहल। १९६१ ई.मे ओऽ व्याख्याता, मैथिली विभाग, सहरसा कॉलेज सहरसा, पदपर नियुक्त कएल गेलाह, जतए ई विश्वविद्यालय आचार्य एवं मैथिली विभागाध्यक्षक पदकेँ सुशोभित कएल तथा एक सफल शिक्षकक रूपमे अगस्त १९९४ मे एही विभागसँ अवकाश ग्रहण कएलनि। छात्रजीवनसँ हिनक सुकोमल गेय गीतक रचना- “नभ आंगनमे पवनक रथपर कारी कारी बादरि आयल। देखितहि धरणीक बिषम पियास, सजल-सजल भए गेल आकाश बिजुरी केर कोमल कोरामे डुबइत सुरुज किरण अलसायल। झिहरि-झिहरि सुनि गगनक गान, धरणि अधर पर मृदु मुसुकान आकुल कोमल दूबरि दूभिक मनमे नव-नव आशा उमड़ल।" मैथिली काव्य मंचक श्रोताक हृदयकेँ जीति चुकल छल। आचार्य रमानाथ झाक “कविता कुसुम” मे ई कविता स्थान पाबि विश्वविद्यालयक पाठ्यक्रममे अध्ययन-अध्यापनक हेतु स्वीकृत भेल। हिनक उद्घोषण-कला आऽ मंच-संचालन कौशलसँ मैथिलीक कोन मंच नहि लाभान्वित भेल होएत। तेँ हिनका मैथिली मंचक सम्राट कहल जाइत छल। १९६० ई.सँ २००० ई. धरि सफलतम मंच संचालन आऽ अपन चुम्बकीय वाणीसँ मैथिली जनमानसकेँ अपना दिस आकृष्ट कएलनि। भाषा आन्दोलनक सूत्रधारक रूपमे हिनक सहयोगकेँ मिथिला आऽ मैथिली सेहो सभदिन स्मरण राखत। पहिने मायानन्द जी कविता लिखलन्हि,पछाति जा कय हिनक प्रतिभा आलोचनात्मक निबंध, उपन्यास आ’ कथामे सेहो प्रकट भेलन्हि। भाङ्क लोटा, आगि मोम आ’ पाथर आओर चन्द्र-बिन्दु- हिनकर कथा संग्रह सभ छन्हि। बिहाड़ि पात पाथर , मंत्र-पुत्र ,खोता आ’ चिडै आ’ सूर्यास्त हिनकर उपन्यास सभ अछि॥ दिशांतर हिनकर कविता संग्रह अछि। एकर अतिरिक्त सोने की नैय्या माटी के लोग, प्रथमं शैल पुत्री च,मंत्रपुत्र, पुरोहित आ’ स्त्री-धन हिनकर हिन्दीक कृति अछि। मंत्रपुत्र हिन्दी आ’ मैथिली दुनू भाषामे प्रकाशित भेल आ’ एकर मैथिली संस्करणक हेतु हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेलन्हि। श्री मायानन्द मिश्र प्रबोध सम्मानसँ सेहो पुरस्कृत छथि। पहिने मायानन्द जी कोमल पदावलीक रचना करैत छलाह , पाछाँ जा’ कय प्रयोगवादी कविता सभ सेहो रचलन्हि।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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