Wednesday, January 7, 2009

जितेन्द्र झा अपने घरमे उपेक्षित मिथिला चित्रकला

जितेन्द्र झा
अपने घरमे उपेक्षित मिथिला चित्रकला



मिथिलाञ्चलक घरक भितमे बनाओल जाएबला मिथिला लोकचित्रकला विश्वभरि ख्याति कमओने अछि । मुदा एखत अपने भूमिमे एकरा पहिचान खोजबाक स्थिति छैक । मिथिला चित्रकलाके सरकार बेवास्ता कएने अछि, तें ई व्यवसायिक रुप नहि लऽ सकल अछि । एकर व्यावसायिक प्रबद्र्धन नहि भऽ सकल अछि ।
ग्रामीण क्षेत्रक महिलाके जीवनस्तर सुधार करबाक लेल बडका साधन भऽ सकैत अछि ई चित्रकला । कियाक त खासकऽ मैथिल ललनेक हाथमे नुकाएल रहैत अछि ई चित्रकलाक जादुगरी । आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक समृद्धिक अथाह सम्भावना अछि मिथिला चित्रकलामे । लोकचित्रकलाके व्यवसायिक स्वरुप देलासं आर्थिक आ सांस्कृतिक दुनू लाभ उठाओल जा सकैत अछि । परम्परागत मिथिला चित्रकला जीवनक अंग अछि मिथिलामे । लोकचित्रकला संस्कारक द्योतक सेहो अछि ।


मुदा बढैत आधुनिकताक कारणे विस्तार प्रभावित भेल छैक । राज्य मिथिला चित्रकलाके एखनधरि चिन्ह नई सकल आरोप चित्रकारसभक छन्हि । नेपाल सरकार कलाके बढावा देबालेल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठान खोलने अछि । जत्तऽके प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास सम्बद्ध एक्कहु गोटे नहि अछि । ई एकटा प्रमाण मात्र अछि, आन बहुतो ठाम मिथिला चित्रकलासंग सौतिनिञा व्यवहार होइत आएल छैक । एना ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कुलपति किरण मानन्धर कहैत छथि जे मिथिला चित्रकलाके विशेष स्थान देने छी । मिथिला चित्रकलामे विशेष दखल भेनिहारि महिलाके स्थान देल जाएत से कुलपतिक कहब छन्हि । हिनक कथनी आ करनीमे कतेक समानता अछि, आबऽ बला दिने बताओत ।
जत्तऽ समग्र कलाक उन्नतिक बात होइक ओत्तऽ मिथिला पेन्टिङक चित्रकार नईं अछि, एकरा विडम्बने कहबाक चाही ।

मिथिला चित्रकलासं सम्बद्ध चित्रकारके उचित अवसर भेटबाक चाही । नेपाल पर्यटन वर्ष २०११ मना रहल अछि, एहनमे मिथिला चित्रकलाक मादे सेहो पर्यटकके आकर्षक कएल जा सकैत अछि । एहिबीच काठमाण्डूक बबरमहलस्थित सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे एस. सी. सुमनक मिथिला चित्रकला प्रदर्शनी मिथिला कसमस हालहि सम्पन्न भेल अछि । एहि प्रदर्शनीमे कलाप्रेमी मिथिला चित्रकलाक आधुनिक आयामसभसं परिचित भेलथि । सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे हुनक ११ म् प्रदर्शनी छल ई । मिथिला क्षेत्रक जीवनशैलीक झल्काबऽ बला चित्रकलासभ देखलासं ग्यालरी मिथिलामय भऽ गेल छल । एस. सी. सुमन मिथिला चित्रकला क्षेत्रमे परिचित नाम छथि । हिनक चित्रकलासभ बेस प्रशंसा पओलक । मिथिला चित्रकला सम्बन्धमे अध्ययन अनुसन्धानक सेहो बहुत खगता छैक । मिथिला लोक चित्रकलाक कुनो खास नियम वा सिद्धान्त नहि होइत अछि । तें ई स्वच्छन्दताक पर्याय सेहो अछि । मिथिलाक समृद्ध संस्कृतिक परिचायक सेहो अछि ।

सरकार कएलक सौतिनिञा व्यवहार
एस.सी सुमन
चित्रकार, मिथिला चित्रकला

मिथिला पेन्टिङ परम्परागत कला अछि, ई कला कोनो पाठशालामे नहि सिखाओल जाइत अछि । पीढीदर पीढी ई अपने आप सिखबाक काज होइत छैक । हमहु“ अपन दाइस“ सिखल“हु । कतउ सासुस“ पुतोहु सिखैत अछि त कखनो मायस“ बेटी । ताहि परिवेशमे हमहुं अपन दाइस“ मिथिला चित्रकला सिखल“हु ।
मिथिला पेन्टिङके अन्तर्राष्ट्रिय बजारमे बहुत माग अछि । ई त हट केक अछि । कलाकारके कलाकारितामे निर्भर करैत छैक ओकर मोल । जेना हमर पेन्टिङ १७ हजारस“ लऽकऽ ८० हजारधरिक अछि । जे सहजे बिका जाइत अछि ।
मिथिला पेन्टिङ व्यावसायिक रुप लेबा दिस उन्मुख अछि । कमर्सियल मार्केटमे देखी त सेरामिकमे, ब्यागमे कपडा आदिमे एकर प्रयोग भऽ रहल अछि । तें नीक बजार छैक एकर । ज“ अपन बात करी त जहन हम बजारमे अबैत छी त प्रदर्शनी लऽ कऽ हमरा कोनो दिक्कति नई होइत अछि ।
मिथिला चित्रकलाक विकासके जे आधारसभ अछि से किछु कमजोर भऽ रहल अछि जेना पहिने माटिक घर होइत छलै । भितके घरमे मिथिला चित्रकलाके नीक अभ्यास होइत छलै । माटिक घरक ठाममे आब क्रंक्रिटके जंगल अछि भऽ गेल । सामाजिक संस्कार आदिमे सेहो भितमे लिखबाक चलन छलै । मुदा आब बच्चा ज“ पेन्सिलस“ देबाल पर किछु लिखि दैत छैक त मायबाप डांटिदैत छैक । तें भितमे लिखबाक चलन प्रभावित भेल अछि । तैइयो तराईक मुसहर वस्ती, थारु आ झांगड जातिक वस्तीमे माटिक घरमे मिथिला चित्रकला देखल जा सकैत छैक ।
नेपाल सरकार एखनधरि किछु नई कऽ सकल अछि, मिथिला पेन्टिङके लेल । मिथिला पेन्टिङ जत्तऽ अछि अपने बुतापर, अपन स्थान अपने बनौने अछि । मिथिला चित्रकलामे लागल कलाकारसभ अपने मेहनतिस“ आगु बढल अछि । ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानके गठन करैत काल प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास“ सम्बद्ध एक्कहु गोटेके नहि राखल गेल । नामके लेल सभामे मिथिला पेन्टिङसं जुडल एकगोटेके जगह देल गेलै, बादमे विवाद भेलै आ ओहो पद छोडि देलनि । व्यक्तिगत रुपमे हमरा पुछी त राज्य मिथिला चित्रकलाक लेल ने किछु कएने अछि आ ने किछु कऽ सकैया । (सुमनकसंग कएल गेल बातचीतमे आधारित)



प्रगतिक पथपर मिथिला चित्रकला
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
साहित्यकार

गुणँत्मक दृष्टिकोणसं सेहो मिथिला पेन्टिङमे बहुत काज भऽ रहल अछि । परम्परा आ आधुनिकता दुनूके जोडिकऽ एच.सी सुमन मिथिला पेन्टिङके आगू बढा रहल छथि । मदनकला देवी कर्ण, श्यामसुन्दर यादवसहितके व्यक्तिसभ परिमाणात्मक आ गुणात्मक दुनू तरहें मिथिला पेन्टिंगके आगू बढा रहल छथि । सुमनक पेन्टिङ आधुनिकताक आकाशमे सेहो भरपुर उडान भरने अछि मुदा धर्ती बिन छोडने, जे एकदम महत्वपूर्ण बात अछि । मिथिला पेन्टिंगके साधनाके रुपमे लऽ कऽ आगु बढनिहार सभ अपने आप आगु बढि रहल छथि ।

राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके लेल कोनो खास काज नहि भऽ सकल अछि । राष्ट्रिय स्तरमे चित्रकारसभके मूल्यांकन करैत काल मिथिला पेन्टिङस“ जुडल व्यक्तित्वके जे स्थान आ सम्मान देल जएबाक चाही, से नहि भऽ सकल अछि । जनस्तर आ अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमे मिथिला पेन्टिङ नीक सम्मान पओने अछि ।
देशमे मिथिला पेन्टिङके स्थापित कएल जाए । खास कऽ महिला सभ एकरा जोगाकऽ रखने अछि । मैथिल महिलासभ किशोर अवस्थेसं अरिपन लिखब शुरु करैत अछि । तुसारी पावनि आदि सभ सेहो मिथिला पेन्टिङ सिखएबाक अवसर अछि । विविध पूजा–आजाक माध्यमे ओ सभ चित्रकलामे प्रवेश करैत छथि । राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके स्वीकार्यता बढाएब, व्यावसायीक सम्भावनाके खुला करब, एहिमे लगनिहारसभके सम्मानके वातावरण बनएबाक काज करबाक चाही । तहन ई राष्ट्रिय स्तरमे स्थापित भऽ सकत । एहिमे अन्तरनिहीत वैशिष्टय जे अछि ताहिस“ ई अपने अन्तर्राष्ट्रिय रुपमे स्थापित भ जाएत, व्यापक भऽ जाएत । ं(बातचीतमे आधारित)(www.videha.co.in साभार विदेह)

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