Friday, January 9, 2009

पछताबा - जगदीश प्रसाद मण्डल



इंजीनियरिंगक रिजल्ट निकलितहि रघुनाथ संगी-साथीक संग नोकरी करए अमेरिका जेबाक तैयारी कऽ नेने छल। सासुरसँ गाम आबि पिताकेँ कहलनि- ‘‘बाबू, आइये रौतुका गाड़ी पकड़ि चलि जाएब। परसू दस बजे, सुभाषचन्द्र एयरपोर्टसँ जहाज फ्लाइ करत।’’
  जहिना पाकल आम तोड़ै लेल कियो गाछपर चढ़ैत अछि आ आम तोड़ैसँ पहिनहि खसि पड़ैत अछि, तहिना शिवनाथोकेँ भेलनि। अचंभित होइत कहलखिन- ‘‘किए? तोरा जोकर काज अपना ऐठाम नहि छै?’’
  पिताक बात सुनि कनेकाल गुम्म भऽ रघुनाथ बाजल- ‘‘ओहिठाम अधिक दरमाहा दैत अछि। संगहि अपना ऐठामक रुपैआसँ ओतुका रुपैइयो महग छैक।’’
  अमेरिकाक संबंधमे शिवनाथ किछु नहि जनैत खाली एतबे जनैत जे ओहो एकटा देश छी। किछु काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘‘तइसँ की? हम ओहि वंशक छी जे देशक गुलामी मेटबए लेल गोली खाए स्वतंत्र देशक उपहार-भार देलनि। तोरा सन-सन पढ़ल-लिखल जँ देशसँ चलि जाएत तँ तोहर सनक काज के करत, कोना हएत?’’
  पिताक बातकेँ अनसून करैत गोर लागि, बैग लऽ ओ चुपचाप विदा भऽ गेल। शिवनाथ दुनू परानीक नजरि ताधरि रघुनाथक पीठपर रहलनि जाधरि ओ गाछीक अढ़ नहि भऽ गेल। अढ़ होइतहि दुनूक मन एहि रुपे चूर-चूर भऽ गेलनि जहिना अएनापर पाथरक लोढ़ी खसलासँ होइत अछि। अखन धरि दुनूक मनमे पैघ-पैघ अरमान पैघ-पैघ सपना छलनि जे एकाएक फुटल बैलूनक हवा जेकाँ वायुमंडलमे मिलि गेलनि। बाढ़िक पानिमे डूबल खेतमे जहिना पानि सुखितहि नव-नव पौधाक अंकुर उगए लगैत अछि  तहिना शिवनाथोक मनमे नव-नव विचार उगए लगलनि। अखन दुनियाँ भलेहीं गामे-घरक रुपमे कि‍एक नहि बुझि पडै़त हुअए मुदा बापो बेटाक दूरी हजारो कोस हटि रहल अछि। की हम सभ फेर गुलामीक रस्ता पकड़ि रहल छी आकि आजादीक रस्ता धऽ चलि रहल छी। एक दिशि‍ मातृभूमिक लेल पिताक तियाग आ दोसर दिसि बेटाक भटकल रस्ता अछि। भलहीं बेटाक आशा हुअए मुदा एहनो लोक तँ छथि जनिका बेटा नहि छन्हि। मन पड़लनि पिताक ओ बात जे मृत्युसँ चौबीस घंटा पहिने मृत्यु-सय्यापर कहने रहथिन - ‘‘बाउ, हमर खून वीरक खून छी जे भारतमाताकेँ चढ़ौलिएनि। भलेहीं अखन लड़ाइक दौड़ अछि मुदा ओ खून स्वतंत्रता लइएकेँ छोड़त। तोँ सभ स्वतंत्र देशक स्वतंत्र मनुष्य हेबह। तेँ अपन देशकेँ परिवार बुझि सभकेँ भाए-बहीनि जेकाँ इमानदारीसँ सेवा करैत रहिहऽ। जाहिसँ हमर आत्मा अनबरत प्रसन्न रहत। सेवाक मतलब खाली एतबे नहि होइत जे देशक सीमाक रक्षा करैत अछि बल्कि ईहो होइत जे माथपर ईंटा उघि सड़क बनबैत आ हर-कोदारिसँ अन्न उपजबैत अछि।’’
  पिताक बात मन पड़ितहि शिवनाथक हृदय तरल पानिसँ ठोस पाथर बनए लगलनि। नव-नव विचार मनमे जागए लगलनि। पत्नीक खसल मन देखि कहलखिन- ‘‘अहाँ, एते सोगाएल किए छी?’’
  आँचरक खूँटसँ दुनू आँखिक नोर पोछि रुक्मिणी कपैत अबाजमे बजलीह- ‘‘की सपना मनमे रहए आकि देखि रहल छी। जँ से बुझितिऐक तँ एत्ते देहकेँ किए धौजनि करितहुँ। नढ़िया-कुकुड़ जेकाँ अनेर छोड़ि दैतिऐक।’’
  पत्नीक व्यथा सुनि शिवनाथक हृदय पसीज गेलनि। मुदा अपन व्यथाकेँ मनमे दबैत मुस्कुराइत कहलखिन- ‘‘अखन धरिक जे जिनगी रहल ओ कर्तव्यनिष्ठ रहल। अपन कर्तव्य इमानदारीसँ निमाहलहुँ। सभकेँ अपना-अपना आशापर अपन जिनगी ठाढ़ कऽ जीबाक चाही। जहिना बरखाक एक-एक बुन्न रस्ता धए चलैत-चलैत अथाह समुद्रमे पहुँच जाइत अछि तहिना अपनो सभ अपन काजकेँ परिवारसँ आगू बढ़ा समाज रुपी समुद्रमे फेटि दी। बेटा अछि तेँ बेटापर अपन भार देमए चाहैत छलहुँ  मुदा जनिका अपना बेटा नहि छन्हि ओ ककरापर अपन भार देथिन। तेँ अपनो सभ वएह बुझू! बाबूजी एते अरजि कऽ दऽ गेलथि जे इज्जतक संग हँसैत-खेलैत जिनगी जीबैत रहब।’’
सन् १९४२क असहयोग आन्दोलनसँ सुनगति-सुनगति सौँसे देश पजरि गेल। जइमे मिथिलांचलोक योगदान ककरोसँ कम नहि अछि। दसकोसी लोकक मन एत्ते उत्साहित भऽ गेलनि जे चान-सूर्जमे आजादीक झंडा फहराइत देखथि। सुतली रातिमे ओछाइनपर सँ चहा कऽ उठि नारा लगबैत सड़कपर आबि जाइत छलाह। जे मिथिला याज्ञवल्क्य, गौतम, नारद सन-सन ऋषि पैदा केलक ओ पंचानन झा आ पुरन मंडल सन वीर अभिमन्यु सेहो पैदा केने अछि। दसकोसीक वीर सिपाही माथमे कफन बान्हि, लाठीमे झंडा फहरा झंझारपुर सर्कल, रेलवे स्टेशन आ पोस्ट आफिसमे आगि लगबैक संग-संग रेल-लाइन तौड़ै लेल सर्कलक मैदानमे एकत्रित भेलाह। अंग्रेज पलटनक केन्द्र सर्कल छलैक। आन्दोलनकारीकेँ एकत्रित होइत देखि ओहो सभ अपन बन्दूकमे गोली भरि-भरि तैयार भऽ गेल। आन्दोलनकारी भारत माताक नारा जगबैत आगू बढ़ल। अनधुन गोली पलटन सभ चलौलक। एक नहि अनेक गोली पंचानन आ पुरनक छातीमे लगलनि। दुनू गोटे नारा लगबैत दम तोड़ि देलनि। सिर्फ दुइये टा गोटेकेँ गोली नहि लागल छलनि, अनेको गोटे गोलीसँ घाएल भेलाह। ओहि घाएलमे शिवनाथक पिता देवनाथो छलाह। दहिना जाँघमे गोली लागल छलनि। गोली तँ जांघक माँस, चमराकेँ कटैत हड्डी तोड़ैत निकलि गेलनि। मुदा घाइल भऽ ओहो खसि पड़लाह। पितिऔत भाए हुनकर लटकल जांघक माँसकेँ तौनीसँ बान्हि, पीठपर उठा घरपर अनलकनि। चिकित्साक समुचित व्यवस्था नहि, ताहिपर गामे-गाम सिपाही दमन शुरु केलक। गामक-गाम आगि लगौलक। मर्द-औरतकेँ पकड़ि-पकड़ि बन्दूकक कुन्दा आ पएरक बूटसँ मारि-मारि बेहोश केलकनि। ओछाइनपर पड़ल देवनाथक हृदयमे आगि धधकैत रहनि मुदा किछु करैक तँ शक्ति नहि रहि गेलनि। जीवन-मृत्युक बीच लटकल रहथि। तीसम दिन प्राण छूटि गेलनि।
दस बर्खक शिवनाथ १५ अगस्त १९४७ ई. केँ आजादीक समए पनरह बर्खक भऽ गेल। पतिक मुइने शिवनाथक माए राधाक मन टुटलनि नहि बल्कि आगिमे तपल सोना जेकाँ आरो चमकए लगलनि। पाकल आमक आंठी जेकाँ करेज आरो सक्कत भऽ गेलनि। गुलामीसँ मिझाइल दीपकेँ आजादीक नव तेल-बत्ती भेटलैक, जाहिसँ नव-ज्योति प्रज्वलित भेल। अखन धरिक अव्यवस्थित परिवारकेँ दुनू माए-बेटा मिलि सुढ़िअबए लगलथि, व्यवस्थित बनबए लगलथि। अढ़ाइ बीघा खेतकेँ अपन दुनियाँ आ कर्मक्षेत्र बुझि दुनू माए-बेटा जी-जानसँ मेहनत करए लगलथि, जहिपर परिवार नीक नहाँति ठाढ़ भऽ गेलनि। ओना शिवनाथक बिआह बच्चेमे भऽ गेल छलैक मुदा दुरागमन पछुआएल रहैक। परिवारक बढ़ैत काज देखि बेटाक दुरागमन माए करा लेलनि।
देश आजाद होइतहि गामे-गाम स्कूल बनए लगल। ओना पढ़लो-लिखल लोक कम छलाह मुदा जतबे छलाह ओ ओहि रुपे विद्या-दानमे भीड़ि गेलाह, जाहिसँ सभ गाममे तँ नहि मुदा अधिकांश गाममे लोअर प्राइमरी स्कूल ठाढ़ भऽ गेल। कतौ-कतौ मिड्लो स्कूल आ हाइयो स्कूल बनल। कतौ-कतौ कओलेजो ठाढ़ भऽ गेल। अखन धरि जे स्कूल ठाढ़ भेल ओ सामाजिके स्तरपर, सरकारी स्तरपर  बहुत कम बनल। स्कूल खोलैक पाछू लोकक मनमे धर्मस्थानक बुझब छलैक। गुरुओजी ओहने रहथि जे मात्र भोजनपर सेवा करैत रहथि। शनीचरा मात्र जीविकाक आधार छलनि। पाइ लऽ कऽ पढ़ाएब पाप बुझल जाइत छलैक। ओना मिड्ल स्कूल, हाइ स्कूल आ कओलेजमे महिनवारी फीस लगैत छल, जे संस्थागत सहयोग छल। स्कूल-कओलेज खुजने विद्याक ज्योति प्रज्वलित भेल मुदा अंडी तेलमे जरैत डिबियाक इजोत जेकाँ, जखनकि जरुरी अछि हजार वोल्ट बौलक इजोत जेकाँ। ओना ठाम-ठीम संस्कृत विद्यालय सेहो अछि, मुदा.....।
दुरागमनक तीन साल बाद शिवनाथकेँ बेटा भेलनि। रघुनाथक जन्म होइतहि राधाक हृदय खुशीसँ सूप सन भऽ गेलनि। मनमे नचए लगलनि बाँसक ओ बीट जाहिमे दिनानुदिन बेसी बाँसोक जन्म होइत आ नमगर, मोटगर सुन्दर-सुडौलौ होइत। मनक खुशीसँ दुनियाँ फुलवारी सदृश्य  बुझि पड़ए लगलनि। बाधक-बाध धानक फूल, गाछीक-गाछी आमक मंजर, जामुन, लताम इत्यादिक फूलसँ सजल ई दुनियाँ सोहनगर लगए लगलनि। मुदा जहिना आसिन मास अकाशकेँ करिया मेघ झँपने रहैत अछि आ कतौ-कतौ मेघक फाटसँ सूर्यक इजोत निकलैत अछि आ सेहो गाछे-बिरीछपर अटकि जाइत अछि, तहिना। धरती-जमीन ओहिनाक ओहिना अन्हार रहि जाइत अछि।
  छबे मासक रघुनाथकेँ राधा अपन मुँह चमका-चमका दा-दा-दा सिखबए लगलीह। दादामे देवनाथक ओ रुप देखैत छलीह जे माथपर वीरक मुरेठा बान्हि, हरोथिया लाठीमे लाल झंडा टांगि, हँसैत गोली खेने रहथि।
चारि बर्ख टपितहि शिवनाथ रघुनाथक नाओ गामक स्कूलमे लिखा देलखिन साले-साल टपैत रघुनाथ गामक स्कूल टपि गेल। मिड्ल स्कूल टपि साइंस राखि रघुनाथ केजरीवाल हाइ स्कूल झंझारपुरमे नाओ लिखौलक। जहिना विज्ञान विषए पढ़ैमे नीक लगै तहिना अंग्रेजिओ। जाहिसँ ठाकुर बाबू आ लत्ती बाबू बेसी मानथिन। चारि बर्खक बाद प्रथम श्रेणीमे मेट्रिक पास केलक। बाढ़ि-रौदिक द्वारे उपजो-बाड़ी नीक नहि होइ जाहिसँ परिवारो लड़खड़ाइते चलैत। बाहर जा कऽ आगू पढ़ब असंभव जेकाँ रहैक। मुदा संजोग नीक रहलैक जे जनतो कओलेजमे साइंसक पढ़ाइ शुरु भेलैक। रघुनाथो कओलेजमे नाओ लिखौलक।
  रघुनाथकेँ कओलेजमे नाओ लिखेलाक सालभरि उत्तर राधा -दादी- मरि गेलीह। पिताक श्राद्ध तँ शिवनाथ केनहि नहि रहथि मुदा माएक श्राद्ध नीक जेकाँ केलनि। जाहिसँ पाँच कट्ठा खेतो बिका गेलनि। ताहि लेल मन मलिन नहि भेलनि। किएक तँ भोजमे खूब जस भेलनि। दू सालक बाद रघुनाथ फस्ट डिविजनसँ आइ.एस.सी. पास केलक। सत्तरि प्रतिशतसँ उपरे नम्बर रहैक। आइ.एस.सी.क रिजल्ट सुनि शिवनाथकेँ बेटाक पढ़बैक उत्साह बढ़लनि। खेत बेचब अधलाह नहि बुझेलनि। मनमे अएलनि जे रघुनाथ पढ़ि कऽ नोकरी करत आकि खेती करत। तखन खेतक जरुरते की रहतैक। संगहि हमहूँ समाजकेँ एकटा सक्षम मनुष्य देबैक।
  इंजीनियरिंग, डॉक्टरी पढ़बैमे केहेन खर्च होइत छैक से तँ नीक जेकाँ बुझथि नहि। मनमे होइन जे पाँच-दस कट्ठा जमीन बेचि बेटाकेँ पढ़ा देबैक। मनमे उत्साह रहबे करनि तेँ महग बुझि घरारियेमे सँ दू कट्ठा बेचि इंजीनियरिंग कओलेजमे बेटाक नाओ लिखा देलनि। नाओ लिखौलाक डेढ़ बर्ख बीतैत-बीतैत अदहा जमीन बिका गेलनि। आगूक अढ़ाइ बर्ख बाकी देखि चिन्ता घेरए लगलनि। मन मानि गेलनि जे सभ खेत बेचनहुँ पार नहि लागत। सोचैत-बिचारैत तँइ केलनि जे पढ़ैक खर्चपर रघुनाथक बिआह करा देबै। बिआह भेनहुँ ओकरा पढ़ैमे बाधा थोड़े हेतैक, पाँच बर्खक बादे दुरागमन कराएब। समस्याक समाधान होइत देखि मनमे खुशी अएलनि। फेर मोनमे उठलनि जे समयो बदलि रहल अछि। पहिने माए-बाप बेटा-बेटीक बिआहकेँ अपन कर्तव्य बुझैत छलाह तेँ पुछब जरुरी नहि बुझैत छलाह। मुदा आब पूछब जरुरी भऽ गेल अछि। परिस्थिति देखि रघुनाथो बिआह करब मानि लेलक मुदा शर्त एकटा लगौलकनि जे लड़की रंग-रुपमे सुन्दर हुअए। जँ गुणवानक शर्त रहितनि तहन तँ ओझरा जएतथि। मुदा से नहि भेलनि। बिआहक चर्चा शिवनाथ चला देलखिन।
  इंजीनियर वर तेँ कथकियाक ढबाहि लागि गेलनि। मुदा कोनो गाम अधलाह बुझि पड़नि तँ कोनो परिवारक कुल-गोत्र। कतहु लड़की दब तँ कतौ उमरगर लड़की भाँज लगनि। होइत-हबाइत एकठाम कथा पटि गेलनि। गाम तँ नीक नहि मुदा लड़कीयो गोर आ पढ़ैक खर्चो गछि लेलकनि। विआह भऽ गेलैक। विआहक बाद दुनू समधि बिचारि लेलनि जे सालो भरि जे भार-दौरक फेरीमे पड़ब से नीक नहि। तेँ भार-दौरक बेबहार छोड़िए दियौक। दुनू गोटे सएह केलनि।
इंजीनियरिंगक अंतिम परीक्षा दऽ रघुनाथ सभ सामान लऽ सासुर आबि गेल। ओना दुरागमन बाकिये मुदा सासुर तँ सासुरे छी, तेँ चलि आएल। रिजल्ट निकलैमे तीन मास लागत। काजो तँ अखन किछु नहिए अछि, तेँ निश्चिन्तसँ सासुरमे रहैक विचार रघुनाथ कऽ लेलक। दसे दिनक बाद विदेशमे इंजीनियरक भेकेन्सी खूब भेलैक। सभसँ बेसी अमेरिकामे भेलैक। नव टेकनोलौजी अएने नव युगक आगमन भेल। नव मशीन नव इंजीनियरकेँ जन्म देलक। मुदा पुरना तकनीको आ इंजीनियरो, अछैते औरदे, फाँसीपर लटकए लगलाह। जहिना गामक-गाम हैजासँ मरैत अछि तहिना इंजीनियरक जमात पटपटाए लगलाह। मुदा दवाइक करखन्ने नहि जे दवाइ बनाओत।
परीक्षाक पेपर रघुनाथक नीक भेल तेँ फेल करैक अन्देशे नहि रहैक। हाइये स्कूलसँ अमेरिकाक उन्नतिक, सुख-मौजक संबंधमे किताबो-पत्रिकामे पढ़ने आ लोकोक मुँहे सुनने रहए। तेँ मनमे गुदगुदी लगैत रहै। ई भिन्न बात जे आठ मासमे अस्सीटा बैंक अमेरिकामे दिवालिया भेल।
  रघुनाथ फस्ट डिवीजनसँ पास केलक। एक तँ फस्ट डिवीजन रिजल्ट, ताहिपर अमेरिकाक नौकरी। खुशीसँ रघुनाथक मन उड़िया गेलै। आवेदन केलाक आठे दिन पछाति चिट्ठी भेटलैक। स्त्रीक गहना बेचि ओ दुनू परानीक टिकट बनबौलक। ससुर पढै़ धरिक खर्चा गछने रहनि तेँ टिकटक खर्च दैसँ इन्कार केलकनि।
  मिशिगन राज्यक राजधानीक शहर लानसिंग। ठंढ़ इलाका। ने अपना सभ जेकाँ छह ऋतुक मौसम बनैत आ ने ओकर हास-परिहास होइत। ने रंग-बिरंगक गाछ-बिरीछ अपना सभ जेकाँ होइत। लानसिंगक सत्तरह तल्लाक छोट-छोट तीन कोठरीक आंगन। जहिमे ने सभ दिन सूर्यक रोशनी अबैत अछि आ ने भोरे कौआ आबि ओसारपर बैसि सारि-सरहोजिक समाचार सुनबैत अछि। रहैत-रहैत दुनू परानी रघुनाथकेँ पनरह बर्ख बीति गेलनि। जवानीक सभ सपना मने-मन गुमसड़ि रहल छलनि।
रघुनाथकेँ अमेरिका गेने शिवनाथक जिनगीक गाछ मौलायल नहि, चतरि कऽ पाखरिक गाछ जेकाँ झमटगर भऽ गेलनि। दुनू बेकतियोक विचार सुधरलनि। वंशगत संबंध क्षीण होइत-होइत सुखि गेलनि,  सामाजिक संबंध मोटा कऽ जुआएल गाछक सील जेकाँ बनि गेलनि। जहिना कोनो समांगकेँ मुइलापर परिवारक लोक आस्ते-आस्ते बिसरि जाइत अछि, तहिना रघुनाथोकेँ दुनू प्राणी शिवनाथ सोलहन्नी बिसरि गेलाह। साल भरिक छाया आ सैएक-सए बरिसक बरखी करैक खगते नहि रहलनि। वंश अंत हएत सदः आँखिसँ शिवनाथ देखैत छलाह। स्वतंत्र देशक गुलाम बुद्धि । कोना नहि बिसरितथि? ने कहियो एक्कोटा पत्र लिखि मन राखए चाहलनि आ ने कोनो मनोरथ मनमे संयोगि कऽ रखने रहथि। पढ़ल-लिखल तँ शिवनाथ नहि मुदा ‘हरिवंश पुराण’क कथा, गप-सप्‍पक क्रममे बेसी काल दोसराक मुँहे सुनैत छलाह।
स्वतंत्रताक उपरान्त विकासपुरक लोकोक विचार सुधरलनि। कोना नहि सुधरितनि? बूढ़-बच्चा छोड़ि गामक सभ लाठी-झंडा लऽ झंझारपुर सर्कल आगि लगबए जे गेल रहथि। आँखिसँ सभ किछु देखने रहथि। ओना हजार बीघा रकबाक गाम विकासपुर, जाहिमे साढ़े चारि सए परिवार हँसी-खुशीसँ कताक पुस्तसँ एकठाम रहैत आएल छलाह। स्वतंत्राक पूर्व मलिकाना -जमीनदारक- गाम रहए। मालगुजारीक लेन-देनमे सबहक जमीन निलाम भऽ जमीनदारक हाथमे चलि गेल छलैक। कियो अपन खेतक दखल तँ हुनका नहि देलकनि मुदा बटेदार बनि उपजा बाँटि-बाँटि दिअए लगलनि। जागल गामक लोक देखि जतबे-तेतबे दाम लए मालिक खेत घुमा देलकनि। अपन खेतकेँ स्थायी पूँजी बुझि श्रमक पूँजी जोड़ि जिनगीकेँ ठाढ़ करए लगलथि। बाढ़ि-रौदीक प्रकोप सालो-साल होइतहि रहैत छलैक मुदा विचार आ कर्म बदलने ओहो अभिशाप नहि वरदान बनि गेलैक। बाढ़ि देखि माथपर हाथ लऽ नहि बैसि, ओकर प्रतिकार करैक रस्ता अपनौलनि। तहिना रौदियोक प्रति केलनि। जाहिसँ बाढ़ि-रौदीसँ बचैक उपाए कऽ लेलनि। सबहक एहन धारणा बनि गेलनि। जे बाढ़िक उपद्रव मात्र साओनसँ कातिक चारि मास होइत अछि बाकी बारह मासक सालमे आठ मास तँ बचैत अछि। जे आठ मास जमि कऽ मेहनत कएल जाए तँ बारहो मास हँसी-खुशीसँ गुजर चलि सकैत अछि। ततबे नहि, पानियो तँ आगि नहि छी जे सभ किछुकेँ जरा देत। पानियो तँ उत्पादित पूँजी छी, तेँ जरुरत अछि ओकर उपयोग करैक। तहिना रौदियोक संबंधमे धारणा बनौने रहथि। खेतमे रंग-बिरंगक अन्न, फल, तरकारी अछि। ने सभ अन्नेक लेल एक रंग पानिक जरुरत होइत अछि आ ने फले-तरकारीक लेल। अधिक वर्षा भेने अधिक पनिसहू फसल होइत अछि आ कम वर्षा भेने कम पनिसहू हएत। ताहिपर थोड़ेक सुविधा सरकारो देलक। नब्बे प्रतिशत अनुदानमे बोरिंग आ पचास प्रतिशत अनुदानमे पम्पसेट देलक। जाहिसँ पर्याप्त बोरिंग-पम्पसेट गाममे भऽ गेलैक। किसानक हाथमे पानि चलि आएल। समाजक किसानक कान्हमे कान्ह मिला शिवनाथो चलए लगलाह। कम खेत रहितहुँ हुनका अन्न-पानि उगरिये जाइत छन्हि।
छह बजे भोरे रघुनाथ धीपल-सराएल पानि मिला अधा-छिधा नहा, कपड़ा पहीरि, चाह-बिस्कुट खा ड्यूटी चलि जाथि। असकरे श्यामा डेरामे रहि जाइत छलीह। ने अंग्रेजी भाषाक बोध छन्हि जे दोकानो-दौरीक काज कऽ सकितथि आ दोसरोसँ गप-सप्‍प करैत समए बितबितथि। ओना बगलेक फ्लेटमे आरो-ओरो भारतीय -इंडियन- सभ रहैत अछि। मुदा ओहो कियो केरलक तँ कियो मद्रासक छथि। भाषाक दूरी देखि श्यामा मने-मन सोचए लगलीह जे मनुष्यसँ नीक पशु होइत अछि जे अपन स्वभावसँ एक-दोसरासँ मेलो रखैत अछि। मनुक्ख तँ मनुक्खे छी जे बोलेसँ राजा बनि जाइत अछि। जहिना पिजराक सुग्गा अकासमे उड़ैत सुग्गा देखि कनैत अछि तहिना कोठरीमे बैसलि श्यामा मने-मन कुही होइत छलीह। मनमे होइत छलनि कोन जनमक पाप कएल अछि जे एहन गति भऽ गेल अछि। नैहरसँ सासुर धरिक सभ किछु हेरा गेल।
  भिनसरे डेरासँ निकलि रघुनाथ कार्यालय पहुँचि जाइत छथि। कार्यालयेमे खाइ-पीबैक व्यवस्था सेहो छैक। मशीनेक संग-संग रघुनाथ बारह घंटा बितबैत छथि। बुद्धिसँ लऽ कऽ हाथ धरि मशीनेक संग भरि दिन रहैत-रहैत मशीन बनि गेलनि। संवेदनशून्य मनुष्य। जाहिमे दया, श्रद्धा, प्रेमक कतौ जगह नहि। मुदा आइ रघुनाथकेँ कार्यालय पहुँचतहि मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेलनि। काजक दिसि एको-मिसिया ध्याने नहि जाइत छलनि। छुट्टीक दरखास्त दऽ कार्यालयसँ डेरा बिदा भेलाह। डेरा आबि, देहक कपड़ा आ जुत्ता बिनु खोलनहि पलंगपर, चारु नाल चीत भऽ ओंघरा गेला। जहिना जेठ मासक तबल धरतीपर बिहरिया बरखाक बुन्न खसितहि गरमी-सरदीक बीच घनघोर लड़ाइ शुरु भऽ जाइत अछि तहिना रघुनाथक मनमे वैचारिक संघर्ष हुअए लगलनि। एहन जोर वैचारिक बिहारि मनमे उठि गेलनि जे बुद्धि चहकए लगलनि। चहकैत बुद्धिसँ अनायास निकलए लगलनि- ‘‘हमरासँ सइओ गुना ओ नीक छथि जे अपना माथपर पानिक घैल उठा मातृभूमिक फुलवारीक फूलक गाछ सींचि रहल छथि। अपन माए-बाप, समाजक संग जिनगी बिता रहल छथि। आइ जे दुनियाँक रुप-रेखा बनि गेल अछि ओ किछु गनल-गूथल लोकक बनि गेल अछि। जिनगीक अंतिम पड़ावमे पहुँचि आइ बुझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुद्धि भेल आ ने गाम-समाजक। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर चुबि गालपर होइत पलंगपर खसए लगलनि।
शिवनाथ हँसैत ओछाइनपर सँ उठि पत्नीकेँ सोर केलखिन- ‘‘कत्तऽ छी, कने एम्हर आउ?’’
  मुस्की दैत लग आबि रुक्मिणी बजलीह- ‘‘भोरे-भोरे की रखने छी जे सोर पाड़लहुँ।’’
  ‘‘मनमे आबि रहल अछि जे अपन दुनू प्राणीक श्राद्ध कइये लइतहुँ। जँ हम पहिने मरि जाएब तँ अहाँक श्राद्ध हएत की नहि। नहि जँ पहिने अहीं मरि जाएब तँ हमर श्राद्ध हएत की नहि।’’
  ‘अखन हम थोड़े मरैबाली भेलहुँहेँ, जे मरब।’’
  ‘‘अपन बिआह बिसरि गेलिऐक? जखन अहाँ छह बर्खक रही आ हम सात बर्खक रही तहिये ने बिआह भेल रहए। मन अछि आकि नहि जे खरहीसँ नापि कऽ जोड़ा लगौल गेल रहए।’’
  किछु काल गुम्म रहि रुक्मिणी बजलीह- ‘‘अपन बिआह-दुरागमन आ माए-बाप जँ लोक बिसरि जाएत तँ ओहो कोनो लोके छी।’’
  मुस्की दैत शिवनाथ कहलखिन- ‘‘हमरा आँखिमे अहाँ वएह छी जे दुरागमन दिन झाँपल पालकीमे बैसि नैहरसँ सासुर आएल रही। अहीं कहू जे हमरा किए ने अहाँक चूड़ीक खनखनीक अबाजमे स्वर लहरी आ माथक सेन्नुरमे जिनगीक मधुर फल देखि पड़त। पचहत्तरि पार कऽ अस्सीक बर्खक बीच दुनू गोटे पहुँच चुकल छी तेँ खुशी अछि। आँखिक सोझमे देखैत छी जे विआहक पाँचे दिनक बाद चूड़ियो फूटि जाइत छैक आ माथो धुआ जाइत छैक। ताहि ठाम हम-अहाँ भाग्यशाली छी की नहि?’’
  पतिक बात सुनि रुक्मिणी मुस्कुराइत पतिक आँखिमे अपन आँखि गाड़ि पाछुसँ आगू धरिक जिनगी देखए लगलीह।

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