Friday, November 21, 2008

चुनवाली - जगदीश प्रसाद मण्डल



नीन्न टुटितहि मखनी मोथीक बिछान समेटि ओसारक उत्तर-पूब कोनमे ठाढ़ कऽ निच्चाँ उतड़ए लागलि आकि सीढ़ीपर पिछड़ि गेलि। पाएर पिछड़ितहि हाथसँ ओसार पकड़ए चाहलक। मुदा जाबे सरिया कऽ ओसार पकड़ै-पकड़ै ताबे ओलतीमे खसि पड़लि। झलफल रहने कियो दोसर उठल नहि। थोड़बे पहिने एकटा छोटकी अछार भेल। घरक चारसँ ठोपे-ठोप पानि चुबतहि। सीढ़ीपरसँ खसितहि मखनीक दहिना ठेहुनक जोड़ छिटकि गेलै। तत्काल छिटकब नहि बुझलक। एतबे बुझलक जे ठेहुन कट दऽ उठलहेँ। मनमे एलै जे कियो देखलक तँ नहि तेँ हाँइ-हाँइ उठए लागलि। जोशमे उठि तँ गेलि मुदा ठेहुनक कचकबसँ फेर ओसार पकड़ि सीढ़ियेपर बैसि गेलि। बैसितहि मनमे बिचार उठए लागलै- कोना मटकुरियाक बेटाक परबरिस चलतै....ढेरबा बेटी छै बिआह कन्ना करत.... अपना कमाइक कोनो लुरि नहि छैक.... बहुओ धमधुसरिये छै.... अपना खेत-पथार नहि छै.... गामक लोको तेहेन अछि जे ककरो कियो नीक नहि करैत.... हे भगवान कोन बिपत्ति दऽ देलह?
कने काल गुम्म रहि बेटाकेँ जोरसँ सोर पाड़ि कहलक- ‘मटकुरिया, रौ मटकुरिया?
दुनू परानियो आ दुनू धियो-पूतो निन्ने भेर। तेँ ने मटकुरिया उठल आ ने कियो दोसर। पुनः दोहरा कऽ मखनी जोरसँ बाजलि- ‘रौ बौआ, बौआ रौ। हम पिछड़ि कऽ खसि पड़लौं से उठिये ने होइए।’
धड़फड़ा कऽ उठैत मटकुरिया बाजल- ‘माए-माए, अबै छी।’
ताधरि फुलियो, कबुतरियो आ बेटोक नीन टुटल। कहि केवाड़ खोलि मटकुरिया दौगल माए लग आबि पुछलक- ‘कोना कऽ खसलैं ?’
पाछुसँ स्त्रियो आ बेटो-बेटी पहुँचल। बेटा तँ पाँचे बर्खक मुदा तैयो माए-बापक देखा-देखी करैत दादीकेँ पकड़लक। चारु गोटे उठा मखनीकेँ ओसारपर लऽ गेल। बिछान बिछा सुता देलक। कनी-कनी ठेहुन फुलए लगल। फुलब देखि फुलिया पतिकेँ कहलक- ‘अहाँ पहिने डाकडर बजा लाउ। हम ताबे कड़ू तेलसँ ससारि दै छिअनि। बुच्ची घरसँ तेलक शीशी नेने आ।’
मटकुरिया डाॅक्टर ऐठाम बिदा भेल। तेलक शीशी अानए कबुतरी घर गेलि। तहि बीच मंगनिया दादीकेँ कहए लगल- ‘आँइ गै बुढ़िया, एतने उपर से....।’
बेटाक मुँहपर फुलिया हाथ दऽ आगू बाजब रोकि देलक। मुदा पोताक बातसँ मखनीकेँ एक्को मिसिया दुख नहि भेलि। मुस्की दैत बाजलि- ‘बिलाइ खसा देलक।’
शीशीक मुन्ना खोलितहि कवुतरी आएल। दुनू माए-धी तरहत्थीपर तेल लऽ लऽ दुनू हाथमे मिला, दहिना पाएर-जाँघ सहित- मे ओंसइ लागलि। मखनीक ठेहुनक दर्द बढ़िते जाइत। जाहिसँ दुनू गोटेकेँ ससारब छोड़ि दै लेल कहलक। ताबत डाॅक्टरक संग मटकुरियो पहुँचल। मखनीक ठेहुन देखितहि डाॅक्टर कहलखिन- ‘हिनका ठेहुनक जोड़ छिटकि गेल छन्हि। पलस्तर करबए पड़त। ताबत दर्द कम होइ ले इन्जेक्शन दऽ दै छिअनि। पलस्तरक समान सभ मंगबए पड़त।’
एक्के-दुइये गामक जनिजाति पहुँचए लागलि। जनिजातिक संग धियो-पूता। लोकसँ मटकुरियाक आंगन भरि गेल। पलस्तरक समान मंगा डाॅक्टर पलस्तर करैत कहलखिन- ‘चिन्ता करैक बात नहि अछि। पनरह दिनमे ठीक भऽ जेतनि।’ कहि अपन फीस लऽ चलि गेलाह। मुदा लोकक आबा-जाही लगले। रंग-विरंगक गपसँ अंगना गनगनाइत।
भरि दिन सभ तुर मटकुरिया भुखले रहि गेल। ने भानसपर ध्यान गेलै आ ने ककरो भूखे बुझि पड़लै। घरमे चूड़ा रहए। जे मंगनिया खेलक। बेर झुकैत-झुकैत अंगना खाली भेलै। खाली अपने पाँचो गोटे अंगनामे रहल। सबहक मनो असथिर भेलै। सभ -मटकुरियो, फुलियो आ कबुतरियो- अपना-अपना ढ़ंगसँ सोचए लगल। ओना कहियो-काल, सासुकेँ मन खराब भेने वा कतौ गाम-गमाइत गेने, फुलिये चून बेचए जाइत। सभ काज बुझले तेँ मनमे बेसी चिन्ता नहि। चिन्ता खाली एतबे जे कहुना सासु माने माएक परान बचि जाइन। मुदा खुशी बेसी। सोलह बर्खसँ सासुर बसै छी मुदा अखन धरि घरक गारजन नहि बनलहुँ। लोककेँ देखै छिऐ जे सासुर अबितहि अपन जुइत लगबए लगैत अछि। भगवान हमरो दहिन भेलाह। आब हमहूँ गार्जन बनब। घरक गारजन तँ वएह ने होइत जे कमाइत अछि। जे उपारजने नै करत ओ घरक जुतिये-भाँति की लगौत। अगर जँ लगेबो करत तँ चलतै कोना? छुछ हाथ थोड़े मुँहमे जाइत छैक। काजक अपन रस्ता होइत अछि। जे केनिहारे बुझैत। बिनु केनिहार जँ जुतिये लगौत तँ ओ या तँ दुरि हेतै वा गरे ने लगतै। ओना अखन फुलियाक घरोबला आ सासुओ जीविते, तेँ गारजनियो हाथमे आएब कठिन। मुदा तैयो आशा। अखन धरि सिन्नुरो-टिकुली लेल खुशामदे करै छलि, से आब नहि करै पड़तै। तेँ खुशी।
कबुतरीक मनमे एहि दुआरे खुशी होइत जे जते लूरि दादीकेँ अछि ओते लूरि गाममे ककरो नहि अछि। मुदा कमाइक तेहेन भुत लगि गेल छै जे जइ दिन मरत तही दिन छोड़तै। सभ लूरि संगे चलि जेतै। तेँ नीक भेलै जे अवाह भऽ गेल, आब तँ अंगनामे रहत। जखने अंगनामे रहए लगत तखने एका-एकी सभ लूरि सीखए लगब। मुदा दादीएकेँ की दोख देबै। भरि दिन दस सेरक छिट्टा माथपर नेने बुलैत अछि तँ देह-हाथ दुखेबे करतै। साँझखिन कऽ थाकल-ठहिआएल अबैए असुआकेँ पड़ि रहैए। से आब नञि हेतै। निचेनसँ पावनियो-तिहारक विधि-विधान आ गीतो-नाद सीखब। एत्तेटा भऽ गेलौंहेँ, ने अखैन तक एक्कोटा गीत अबैए आ ने विआह-दुरागमनक अड़िपन बनौल होइ अए। कइए दिन मनमे अबैए जे मालतिये जेकाँ हमहूँ अपन गोसाँइ घरक ओसारमे पुरैनिक लत्ती, कदमक गाछ लिखी। से लुरियो रहत तब ने। साँझू पहरकेँ जते खान जतै छिऐ तते खान समयो भेटैए ते नहिये होइए। किएक तँ बिछानपर पड़िते ओंघा जाइए। जँ पुछबो करै छिऐ तँ अइ गीतक पाँति ओइ गीतमे आ अोइ गीतक भास अइ गीतमे कहए लगैत अछि। जाहिसँ किछु सीखि नहि पबैत छी।
मटुकलालकेँ एहि दुआरे खुशी होइत जे बेटा-पुतोहूक रहैत बूढ़ि माए एते खटए से उचित नहि। मुदा कहबो ककरा करबै। हमरा कोनो मोजर दइए। दूटा धिया-पूता भेल। बेटिओ विआह करै जोकर भऽ गेलि मुदा हमरा बच्चे बुझैए। हम की करु। तेँ भगवान जे करै छथिन से नीके करै छथिन। भने आब भारी काज करै जोकर नहि रहलि। जे अपनो बुझत आ मनाही करबै तँ मानियो जाएत। मरैक डर ककरा नै होइ छै। तहूमे बूढ़-बुढ़ानुसकेँ। तेँ मने-मन खुश। लोक हमरा तड़िपीबा बुझि बुड़िबक बुझए। तेँ की हम बुड़िबक छी। कियो बुझैए तँ बुझऽ। जहिया बाबू मुइलाह तहिया जते भार कपारपर आएल, से कियो आन सम्हारि दइए। की अपने करै छी। पसिखन्ने जाइ छी तँ की लुच्चा-लम्पटक संग बैसि पीबै छी जे चोरी-छिनरपन्नी सीखब। या तँ असकरे बैसि कऽ पीबै छी या बड़का लोक लग बैसि कऽ पीबै छी। बड़का लोेकक मुँहमे सदिखन अमृत रहैत छैक। रमानन्द बाबूसँ गियनगर लोक अइ इलाकामे दोसर के अछि। तिनकासँ हमरा दोस्ती अछि। हुनकर ओ बात हम गिरह बान्हि नेने छी जे जहिना कियो जनमैए, बढ़िकेँ जुआन होइए। जुआनसँ बूढ़ भऽ मरि जाइत अछि। ई तँ दुनियाँक नियमे छिऐ। सभकेँ होएत। जे नहि बुझत ओ नहि बुझह। मुदा हम तँ ओएह मानै छी। फेर माए दिशि नजरि घुरलै। मने-मन सोचए लगल जे माइयक पाएर टुटब कोनो अनहोनी थोड़े भेलै। ई तँ भगवानक लीले छिअनि। भगवान कखनो अपना सिर अजस लेताह। कोनो ने कोनो कारण भइये जाइत छैक। तइले हमरा दुखे किए हएत। जहिना एते दिन बीतल तहिना आगुओ बीतत। एते दिन जहिना माएकेँ, बेचि कऽ घुमैत काल, आगूसँ पथिया आनि दै छलिऐ तहिना आब घरोवालीकेँ आनि देबै। कियो हमरा देखा दिअ तँ जे एक्को दिन हमरा काजमे नागा भेल। गोसाँइ डूबै बेर, कतौ रही, कतवो पीबि कऽ बुत्त रही मुदा तेँ की अपन काज कहियो छोड़ैत छी।
मटकुरिया परिवारक खानदानी जीविका चूनक। महिला प्रधान रोजगार। किएक तँ चूनक बिक्री अंगने-अंगने होइत। शुद्ध गमैआ व्यवसाय। ने चून बनबैक समान बाहरसँ अनै पड़ैत आ ने बेचैक असुविधा। गामक अधिकांश परिवारमे चूनक खर्च। कियो पान खाइत तँ कियो तमाकुल। दुनूमे चूनक जरुरत। चून बनाएबो कठिन नहि। डोका जरा कऽ बनैत। अन्नेक कोठी जेकाँ डोको जरबैक कोठी होइत। मुदा अन्नक कोठीमे उपर छोट मुँह, अन्न ढ़ारैक लेल बनाओल जाइत, जखैनकि चूनक कोठीक उपरका भाग खुलल रहैत। निच्चाँक मुँह दुनूक एक्के रंग। कच्चो मालक कमी नहिये। किएक तँ गरीब-गुरबा लोक डोकाक मांस खाइत। मांसो पवित्र। किएक तँ डोका माटि खा जीवन-बसर करैत। डोकेक उपरका भागसँ चून बनैत।
चूनक बजारो गामे-घर। बिरले गोटे घरमे चूनक खर्च नहि होइत, नहि तँ सबहक घरमे होइत। पहिने मटकुरियाक दादी-परदादी चून बेचैत छलि, मुइलाक पछाति माए बेचए लागलि। सात दिनक सप्ताहमे पाँच दिन मखनी भौरी गामे-गामे करैत। एक-एक गाममे एक-एक दिनक पार बनौने। आठ दिन खर्चक हिसाबसँ सभ कियो चून कीनैत। सभ काज अन्दाजेसँ। अन्दाजेसँ चूनो दैत आ अन्दाजेसँ -धान-मड़ुआ- बेचो लैत। कोनो हरहर-खटखट नहि। किएक तँ मनक उड़ान छोट। ने कोठा-कोठीक इच्छा, ने सुख-भोगक। बान्हल मन तेँ मात्र मनुक्ख बनि जीबै टाक इच्छा।
बजारोक प्रतियोगिता नहि। कारोबारमे छीना-झपटी नहि। किएक रहतै। जहिना जातिक शासन तहिना समाजक दंडात्मक रुखि। समाजमे निश्चित जाति निश्चित काजसँ बान्हल। एकक काज दोसर नहि करैत, तेँ लक्कड़-झक्कड़ कम। जेना डोम, नौआ, धोबि, बरही कुम्हार इत्यादिक अपन-अपन जीविकाक धंघा। जे कड़ाइसँ पालन होइत। दुनू बिन्दुपर। कराओलो जाइत आ करबो करैत। सीमित क्षेत्रक बीच कारोबार। कियो अतिक्रमण नहि करैत। जँ कहीं-कतौ अतिक्रमण होइत तँ जातिक बीच ओकर फरिछौट होइत। तेँ सभ अपन-अपन सीमाक भीतर रहैत। हँ, ई बात जरुर होइत जे सीमाक भीतर भैयारीक बँटबारासँ विभाजित होइत। मुदा मटकुरियाक परिवार एक पुरिखियाह, तेँ एहेन प्रश्ने नहि। रोजगारोक लेल तहिना। सभक अपन-अपन सीमित क्षेत्र। एक क्षेत्रमे दोसरक प्रवेश बर्जित। मुदा बेर-बेगरतामे एक-दोसराकेँ भार दऽ समाजक काजमे बाधा उपस्थिति नहि हुअए दैत।
चून बेचि मखनी सिर्फ परिवारे नहि चलबैत। महाजनियो करैत। किएक तँ सोलहो आना श्रमे पूँजी। मेहनत कऽ डोका एकत्रित करैत। डोका जरा कऽ चून बनबैत। आ अन्नसँ चून बदलैत। चूनक कीमतो अलग-अलग। जहिठाम गरीब लोक चुनक कम कीमत दैत तहिठाम सुभ्यस्त किछु बेशिये दैत। पाँचे गोटेक परिवार मखनीक। कते खाएत। तेँ फजिलाहा अन्न सवाइपर लगबैत। सेहो बिना लिखा-पढ़ीक। मुँह जवानी। जहिसँ किछु उपरो होइत किछु बुड़ियो जाइत। पाँच गाममे मखनीक कारोबार। अगर जँ एहिसँ आगू कारोबार बढ़बए चाहत तँ सम्हारले ने होइत। किएक तँ डोका जमा करैसँ चून बनबै धरि, दू दिन समए लगि जाइत। आठे दिनपर बिक्रीक बीट घुमैत। तेँ पाँच गामसँ बेशी गाम सम्हारब कठिन।
टाँग अवाह होइतहि मखनी चून बेचब छोड़ि देलक। मुदा परिवारक रोजगार बन्न नहि भेलै। आब फुलिया बेचए लागलि। चिन्हार गाम चिन्हार गहिकी। तेँ कतौ बाधा नहि। मुदा मखनीक महाजनी बुड़ि गेल। किएक तँ पाँचो गाममे पाँच गोटे ऐठाम अपन धान-मड़ुआ रखैत छलि, ओहि ठामसँ ओहि गाममे सवाइ लगबैत छलि। अपन आवाजाही बन्न भेने बिसरि गेलि। लेनिहारो बिसरि गेल। मुदा तइ लेल मखनीक मनमे दुख नहि भेलै। खुशिये भेलै। खुशी एहि दुआरे भेलै जे जावत देहमे ताकत छलै ताबत अपनो, परिवारो आ दोसरोकेँ खुऔलौं। जिनगीक सार्थकता अइसँ बेशी की हएत। यएह ने धर्म छी। धर्ममय जिनगी बना बुढ़ाढ़ी धरि जीवि लेब, अइसँ बेशी की चाही। तेँ मने-मन खुशी।
समए आगू बढ़ल। कारोबारक रुपो बदलल। कोना नहि बदलैत? समयोक तँ कोनो ठेकान नहि। कोनो साल अधिक बरखा होइत तँ कोनो साल रौदी। अधिक वर्षा भेने तँ अधिक डोकाक वृद्धि होइत। मुदा रौदीमे कमि जाइत। बिसबासु कारोबारक लेल वस्तुक उपलब्धि अनिवार्य। जे आब नहि भऽ पबैत। मुदा समयो तँ पाछु मुहे नहि आगू मुँहे ससरत। पत्थर-चून बजारमे आबि गेल। पर्याप्त वस्तुक उपलब्धि भऽ गेल। बाजारो बढ़ल। जहिठाम उमरदार लोक तमाकुल-पान सेवन करैत छलाह तहिठाम आब स्कूल-कओलेजक विद्यार्थी सेहो करै लगल। ततबे नहि बाल-श्रमिक सेहो करए लगल। गामे-गाम चौक-चौराहा बनि गेल। जाहिसँ चाह-पान खेनिहारो बढ़ल। ओना तमाकुल-पानक अतिरिक्त पान-पराग, शिखर, रंग-विरंगक गुटका सेहो बढ़ि गेल। तेकर अतिरिक्त सार्वजनिक उत्सब सेहो बढ़ल। परिवारक मांगलिक काज विआह, मूड़न, सराध, सेहो नमहर भेल। जहिसँ पान-तमाकुलक खर्च बढ़ल। तेँ चुनोक खर्च कते गुणा बढ़ि गेल।
मखनीक जगह फुलिया लेलक। ओना घरक रोजगार तेँ फुलियोकेँ किछु सीखैक जरुरत नहि। सभ बुझले। सासुक रहितहुँ, कहियो-काल फुलियो बेचए जाइत छलि। किएक तँ जहि दिन मखनी नैहर जाइत तहि दिन फुलिये बेचैयो जाइत आ डोका आनि-आनि चूनो बनबैत। मुदा आब चून बनबैक रुपे बदलि गेल। लोको डोकाक चूनक बदला पत्थर-चून खाए लगल। ओना अखनो बुढ़-पुरान सभ पाथरक चूनकेँ घटिया बुझैत। जे तेजी डोकाक चूनमे होइत ओ पाथरक चूनमे नहि। मुदा हारल नटुआ की करत।
चून बेचैक रुपो बदलल। अखन धरि जे अंदाजसँ बिक्री होइत छल ओ आब तौल कऽ हुअए लगल। बेचक जगह पाइ लेलक। ओना अन्नोक चलनि सोलहन्नी समाप्त नहिये भेलहेँ। आब ओतबे अन्न पड़ैत जे आन ठाम रखैक जरुरत फुलियाकेँ नहि होइत। पाइ बौगलीमे रखैत आ अन्न पथियामे। ओना कर्जखौक सेहो कमल। किएक तँ समएक आगू बढ़ने खाइ-पीबैक उपाए सेहो लोककेँ भेल। बोइन सेहो सुधरल। पाइक आमदनी किसानोकेँ हुअए लगल। लोकक पीढ़ियो बदलल। जाहिसँ विचारोमे बदलाव आएल।
समएक आगू बढ़ने कारोबार असान भेल। जाहिसँ मटकुरियाक परिवार सेहो आगू मुँहे ससरल। मुदा मटकुरिया जहिनाक तहिना रहि गेल। पहिने जे मटकुरिया माएक संग डोका अनैत छल ओ आब एक्के ठाम बजारसँ चून कीनि कऽ लऽ अबैत अछि। सुखल चून। सुखल चूनकेँ गील बनबैमे सेहो अधिक फीरिसानी नहिये।
फागुन मास। शिवरातिक तीनि दिन पछाति। धुरझार लगन चलैत। मेला जेकाँ बरिआती चलैत। अंग्रेजीबाजा आ लाउडस्पीकरक अवाजसँ वायुमंडल दलमलित। आइ सबेरे -आन दिन चारि बजे- मटकुरिया पसिखाना विदा भेल। समइयो सोहनगर। झिहिर-झिहिर हवा चलैत। अकासमे जहिना चिड़ै गीत गबैत तहिना हवामे गाछ-बिरीछ नचैत। पसिखाना पहुँचते मटकुरियाकेँ पासी कहलक- ‘भैया, आइ निम्मन बसन्ती माल अछि, खजुरिया नहि ताड़क।’
पासीक बात सुनि मटकुरियाक मनमे खुशी उपकल। मने-मन सोचलक जे दू गिलास आरो बेसी चढ़ा देबै, बाजल- ‘तब तँ आइ जतरा नीक बनल अछि।’
पासी- ‘अहाँ तँ हमर पुरान अपेछित छी भैया, तेँ दू गिलास ओहिना मंगनिये पिआएब।’
दू गिलास मंगनी सुनि मटकुरिया सोचलक जे पहिल दिन छिऐ तेँ आन दिनसँ कम कोना लेब? यात्रा तँ पहिलुके दिन नीक होइ छै। बेचाराकेँ सगुन कोना दुरि करबै। मुस्की दैत कहलक- ‘बड़बढ़ियाँ। अपनो मिला कऽ नेने आबह।’
वसन्ती ताड़ी, पीबिते मटकुरियाकेँ रंग चढ़ए लगल। ताड़ी पीबि मटकुरिया सोझे, पसिखन्नेसँ, पत्नीकेँ माथ परक पथिया अानए दछिनमुँहे बिदा भेल। गामक दछिनवरिया सीमापर ठाढ़ भऽ आगू तकलक। जते दूर नजरि गेलै तहि बीच कतौ पत्नीकेँ अबैत नहि देखलक। कनी-काल पाखरिक गाछ लग ठाढ़ भऽ सोचए लगला जे आगू बढ़ी वा एतै रुकि जाइ। अंग्रेजी बाजा आ लाउडस्पीकरक फिल्मी गीत कानमे पैसि-पैसि मनकेँ डोलबैत। मन पड़लै अपन विआह। बिआह मन पड़िते फुलियाक रुप आगूमे ठाढ़ भऽ गेलै। गुनधुन करैत सोचलक जे ऐठाम ठाढ़ भऽ कऽ समए बिताएब, तहिसँ नीक जे आरो थोड़े बढ़ि जाइ। आगू बढ़ल। किछु दूर आगू बढ़लापर पत्नीकेँ अगिला गाम टपि अबैत देखलक। बाधो कोनो नमहर नहि। फुलियाक नजरि सेहो मटकुरियापर पड़ल। दुनूक डेग तेज भेल। तेज होइक दुनूक दू कारण। मटकुरियाक मनमे जे जते जल्दी लगमे पहुँचब तते जल्दी भार उतड़तै। जखैनकि पसीनासँ नहाएल फुलियाक मनमे शान्ति। शान्ति अबितहि पथिया हल्लुक लगए लगलै। दुनूक मनमे कतेको नव-नव विचार अाबए लगलै।
लग अबितहि मटकुरिया धोतीक ढ़ट्ठा सरिऔलक। किएक तँ माथपर भारी एलासँ डाँड़क धोती डाँड़मे बैसि जाइत। ढ़ट्ठा सरिया गमछाक मुरेठा बान्हि दुनू हाथसँ पकड़ि फुलियाक माथ परक पथिया अपना माथपर लेलक। माथपर लैते किछु कहैक मन मटकुरियाकेँ भेल। मुदा किछु बाजल नहि। किएक तँ फेर मनमे एलै जे बेचारी थाकल अछि, तेँ मन अगिआइल होएत। हो ने हो किछु करुआएल बात बाजि दिअए। जखैनकि एकाएक माथ परक भार उतड़लासँ फुलियाक मन हल्लुक भेल। मुदा ओहो किछु बाजलि‍ नहि, ओहिना देह कठिआएल। आगू-पाछू दुनू बेकती घर दिशि बिदा भेल। जते आगू बढ़ैत तते फुलियाक मन हल्लुक होइत आ मटकुरियाक मन भारी। पत्नीसँ किछु कहैक विचार मटकुरियामे कमए लगल। जना मुँह खोललासँ भारी बढ़त। मुदा जना-जना आगू बढ़ैत तना-तना फुलियाक देहो-हाथ सोझ होइत आ पतिकेँ किछु कहैक मन सेहो होइत। मुदा किछु बजैत नहि। किएक तँ पति-पत्नीक बीच गप्पक आनंद तखन होइत जखन दुनूक मन सम -ने बेसी सुख आ ने बेसी दुख- होइत। से अखन धरि दुनूक –-मटकुरिया आ फुलियाक- बीच नहि भेल। एते काल फुलियाक माथपर पथिया रहने मन पीताएल तँ आब मटकुरियाक हुअए लगल। ने फुलिया पतिकेँ किछु कहैत आ ने मटकुरिया पत्नीकेँ। मुदा बीच रस्ता बाध अबैत-अबैत दुनूक मुँहसँ हँसी निकलल। पथिया नेनहि मटकुरिया पाछु घुमि कऽ तकलक तँ देखलक जे फुलिया मुस्किया रहल अछि। फुलियोक नजरि मटकुरियाकेँ मुस्किआइत देखलक। एक टकसँ एक-दोसरपर आँखि गरौने अपन जिनगी देखए लगल।

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