Saturday, November 8, 2008

ठेलाबला - जगदीश प्रसाद मण्डल



टाबरक घड़ीमे बारह बजेक घंटी बजितहि भोलाक निन्न टूटि गेलनि। ओछाइन परसँ उठि सड़कपर आबि हियासए लगला तँ देखलनि जे डंडी-तराजू माथसँ कनिये पछिम झुकल अछि। मेघनक दुआरे सतभैयाँ झँपाएल। जेम्‍हर साफ मेघ रहए ओम्हुरका तरेगण हँसैत मुदा जेम्‍हर मेघोन रहए ओम्हुरका मलिन। गाड़ी-सबारीसँ सड़क सुनसान। मुदा बिजलीक इजोत पसरल। गस्तीक सिपाही टहलैत। सड़क परसँ भोला आबि ओछाइनपर पड़ि रहला। मुदा मन उचला-चाल करैत रहनि। सिनेमाक रील जेकाँ पैछला जिनगी मनमे नचैत। जहिना चुल्हिपर चढ़ल बरतनक पानि तरसँ उपर अबैत तहिना भोलोक मनक खुशी हृदएसँ निकलि चिड़ै जेकाँ अकासमे उड़ैत। किएक नहि खुशी अओतैक? हराएल वस्तु जे भेटि गेलैक। मन गेलनि परसुका पत्रपर। जे गामसँ दुनू बेटा पठौने रहनि। असंभव काज बुझि विश्वासे नहि होइत रहनि। पत्र तँ नहि पढ़ल होइत रहनि मुदा पढ़बै काल जे पाँती सभ सुनने रहथि, ओहिना आँखिक आगू नचैत रहनि। पत्र उघारि आँखि गड़ा देखए लगलथि। ‘‘बाबू, पाँच तारीखकेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करए जाएब। इच्छा अछि जे घरसँ विदा हेबा काल अहाँकेँ गोर लागि घरसँ निकली। तेँ पाँच तारीखकेँ दस बजेसँ पहिनहि अपने गाम पहुँचि जाइ।’’ पत्रक बात मनमे अबितहि भोला गाम आ शहरक बीचक सीमापर लसकि गेलाह। मनमे ऐलनि, समाजसँ निकलि छातीपर ठेला घीचि, दूटा शिक्षक समाजकेँ देलिऐक, की ओहि समाजक आरो ऋण बाकी छैक? जँ नहि तँ किएक ने छाती लगाओताह। जहिसँ मनमे खुशी उपकलनि जे जहिना गामसँ धोती गोल-गोला आ दू टाका लऽ कऽ निकलल छलहुँ, तहिना देहक कपड़ा,  सनेस,  चाह-पानक खर्च छोड़ि किछु नहि एहिठाम लऽ जाएब। चिड़ै टाँहि देलकै, फेर ओछाइन परसँ उठि निकललाह, तँ देखलखिन जे बाँस भरि ऊपर भुरुकबा आबि गेल अछि। चोट्टे घुरि कऽ आबि संगी-साथीकेँ उठा अपन सभ किछु बाँटि देलखिन, अपनाले खाली टिकटक खर्च,  सनेस आ पाँकेट खर्च मिला सए रुपैआ राखि, कपड़ा पहीरि,  धर्मशालाकेँ गोड़ लागि हँसैत निकलि गेलाह।
जखन आठे बर्खक भोला रहथि तखनहि माए मरि गेलखिन। तीनिये मासक पछाति पिता रघुनी चुमाओन कऽ लेलखिन। ओना पहिलुको पत्नीसँ चारि सन्तान भेल रहनि। मुदा खाली भोलेटा जीवित रहल। सत्माएकेँ परिवारमे ऐने भोलाकेँ सुखे भेलनि। ओना गामक जनिजातियो आ पुरुखोकेँ होइत जे सत्माए भोलाकेँ अलबा-दोलबा कऽ घरसँ भगा देतैक, नहि तँ परिवारमे भिनौज जरुर कराइये देतीह। मुदा सबहक अनुमान गलत भेलनि। भोला घरसँ सोलहन्नी फ्री भऽ गेलाह। फ्री सिर्फ काजे टामे भेला,  मान-दान बढ़िये गेलनि। दुनू साँझ भानस होइतहि माए फुटा कऽ भोलाले सीकपर थारी साँठि कऽ राखि दैत छलीह। भलेहीं भोला दिनुका खेनाइ साँझमे आ रौतुका खेनाइ भोरमे किएक ने खाथि।
  परोपट्टामे जालिम सिंह आ उत्तम चन्दक नाच जोर पकड़ने। सभ गाममे तँ नाच पार्टी नहि मुदा एक गाममे नाच भेने चारि कोसक लोक देखए अबैत।
  भोलाक गामक विशौलक नाच पार्टी सभसँ सुन्दर अछि। जेहने नगेड़ा बजौनिहार तेहने बिपटा। जाहिसँ पार्टीक प्रतिष्ठा दिनानुदिन बढ़ितहि जाइत। घरसँ फ्री भेने भोला नाचक परमानेंट देखिनिहार भऽ गेलाह। नाचो भरि रौतुका, नहि कि एक घंटा, दू घंटा, तीन घंटाक। जेहने देखिनिहार जिद्दी, तेहने नचिनिहारो। गामक बूढ़-बुढ़ानुससँ लऽ कऽ छौँड़ा-मारड़ि भरि मन मनोरंजन करैत। मनोरंजनो सस्ता। ने नाच पार्टीकेँ रुपैआ दिअ पड़ैत आ ने खाइ-पीबैक कोनो झंझट। ओना गामक बारह-चौदह आना लोकक हालतो रद्दिये। मुदा जे किसान परिवार छल ओ अपना ऐठाम मासमे एक-दू दिन जरुर नाच करबैत छलाह। ओ नटुआकेँ खाइयोले दैत छलथि आ कोनो-कोनो समानो कीनिकेँ दैत छलखिन। भोलो नाच पार्टीक अंग बनि गेल, डिग्री सेदैक जिम्मा भेटि गेलैक। डिग्री सेदैक जिम्मा भेटितहि काजो बढ़ि गेलैक। घूरक लेल जारनोक ओरियान करए पड़ैत छलै। अपना काजमे भोला मस्त रहए लगल। मुदा एतबेसँ ओकर मन शान्त नहि भेलैक। काजक सृजन ओ अपनोहु करए लगल। स्टेजक आगूमे जे छोटका धिया-पूता बैसि पी-पाह करैत,  ओकरो सभपर निगरानी करए लगल। आब ओ चुपचाप एकठाम नहि बैसैत। घूमि-घूमि कऽ महफिलोक निगरानी करए लगल। आरो काज बढ़ैलक। नटुआ सभकेँ बीड़ी सेहो लगबए लगल। बीड़ी सुनगबैत-सुनगबैत अपनो बीड़ी पीब सीखि लेलक। किछुए दिनक पछाति भोला बीड़ीक नमहर पियाक भऽ गेल। किएक तँ एक्के-दू दम जँ पीबए तैयो भरि रातिमे तीस-पैंतीस दम भऽ जाइत छलैक। जहिसँ भरि राति मूड बनल रहैत छलैक।
बीड़ीक कसगर चहटि भोलाकेँ लागि गेलै। रातिमे तँ नटुऐ सभसँ काज चलि जाइत छलैक मुदा दिनमे जखन अमलक तलक जोर करैत तँ मन छटपटाए लगैत छलैक। मूडे भंगठि जाइत छलैक। मूड बनबैक दुआरे भोला बापक राखल बीड़ी चोरा-चोरा पीबए लगल। जहिक चलैत सभ दिन किछु नहि किछु बापक हाथे मारि खाइत। एक दिन एक्केटा बीड़ी रघुनीकेँ रहनि। भोला चोरा कऽ पीबि लेलक। कोदारि पाड़ि रघुनी गामपर अएलाह तँ बीड़ी पीबैक मन भेलनि। खोलिया परसँ अानए गेलाह तँ बीड़ी नहि देखलनि। चोटपर भोला पकड़ा गेलै। सभ तामस रघुनी भोलापर उताड़ि देलखिन। मारि खाए भोला कनैत उत्तर मुँहेक रास्ता पकड़लक। कनिये आगू बढ़ल आकि करिया काकाक नजरि पड़लनि। भोलाक कानब सुनि ओ बुझि गेलखिन जे भीतरिया मारि लागल छै। पुचुकारिकेँ पुछलखिन- ‘‘की भेलौ रौ भोला?’’
  करिया काकाक बात सुनि भोला आरो हिचुकि-हिचुकि कानए लगल। हिचुकैत भोला कनिये जोरसँ काकाकेँ कहलकनि, जे कानबक अवाजमे हरा गेलैक। काका भोलाक बात नहि बुझलखिन। मुदा बिगड़लखिन नहि,  दहिना डेन पकड़ि रघुनीकेँ कहए बढ़लथि। काकाकेँ देखि रघुनियोक मन पघिल गेलैक। काका कहलखिन- ‘‘रघुनी,  भोला बच्चा अछि किऐक तँ विआह नञि भेलैए। तेँ नीक हेतह जे विआह करा दहक। अपन भार उतड़ि जेतह। परिवारक बोझ पड़तै अपने सुधरत। अखन मारने दोषी हेबह, समाज अबलट्ट जोड़तह जे बाप कुभेला करैत छैक। जनिजातिक मुँह रोकि सकबहक  ओ कहतह जे ‘‘माए मुइने बाप पित्ती।’’
करिया काकाक विचार रघुनीक करेजकेँ छेदि देलक। आँखिमे नोर आबि गेलैक। अखन धरि जे आँखि रघुनीक करिया काकापर छलैक ओ भोलाक गाल पड़क सुखल नोरक टघारपर पहुँचि अटकि गेलैक। मारिक चोट भोलाक देहमे निजाइये गेलैक जे संग-संग विआहक बात सुनि मनमे खुशियो उपकलै। बुद्धिक हिसाबसँ भलेहीं भोला बुड़िबक अछि मुदा नाचमे मेल-फीमेल गीत तँ  गबितहि अछि।
  पिताक हैसियतसँ रघुनी करिया काकाकेँ कहलखिन- ‘‘काका, हम तँ ओते छह-पाँच नहि बुझैत छिऐ, काल्हिये चलह कतौ लड़की ठेमा कऽ विआह कइये देबै।’’
  ‘‘बड़बढ़िया’’ कहि करियाकाका रास्ता घेलनि।
  भोलाक विआह भेला आठे दिन भेल छलैक कि पाँच गोटेक संग ससुर आबि रघुनीकेँ कहलकनि- ‘‘विआहसँ पहिने हम सभ नहि बुझलिऐक, परसू पता लागल जे लड़का नाच पार्टीमे रहैए। नटुआ-फटुआ लड़काक संग अपन बेटीकेँ हम नहि जाए देब। तेँ  ई संबंध नहि रहत। अपना सभमे तँ खुजले अछि। अहूँ अपन बेटाकेँ बियाहि लिअ आ हमहूँ अपना बेटीक दोसर विआह कऽ देब।’’  कहि पाँचो गोटे चलि गेलाह।
  ससुरक बात सुनि भोलाक बुद्धिये हरा गेलै। जहिना जोरगर बिरड़ो उठलापर सभ किछु अन्हरा जाइत छैक तहिना भोलोक मन अन्हरा गेल। दुनियाँ अन्हार लगए लगलैक। ओना तीन मास पहिनहि नाच पार्टी टुटि गेल छलैक। एकटा नटुआ एकटा लड़की लऽ कऽ पड़ा गेल छलैक, जाहिसँ गाम दू फाँक भऽ गेलैक। दू ग्रुपमे गाम बँटा गेलैक। सौँसे गाममे सनासनी चलै लगलैक। ताहि परसँ भोला आरो दू फाँक भऽ गेल।
पाण्डु रोगी जेकाँ भोलाक देहक खून तरे-तर सुखए लगलैक। मुदा की करैत बेचारा? किछु फुड़बे नहि करैत छलैक। ग्लानिसँ मन कसाइन होअए लगलैक। मने-मन अपनाकेँ धिक्कारए लगल। कोन सुगराहा भगवान हमरा जन्म देलनि जे बहुओ छोड़ि देलक। विचारलक जे एहि गामसँ कतौ चलिये जाएब नीक होएत।
घरसँ भोला पड़ा गेल। संगी-साथीक मुँहसँ दिल्ली,  कलकत्ता,  बम्बइक विषएमे सुननहि रहए। जहिसँ गाड़ियोक भाँज बुझले रहए। ने जेबीमे पाइ रहए, ने बटखरचा। सिर्फ दुइयेटा टाका संगमे रहए। अबधारि कऽ कलकत्ताक गाड़ी पकड़ि लेलक।
  हबड़ा स्टेशन गाड़ी पहुँचते भोला उतड़ि बिदा भेल। टिकट नहि रहनहुँ एक्को मिसिया डर मनमे नहि रहैक। निरमली-सकरीक बीच कहियो टिकट नहि कटबैत छल। एक बेर पनरह अगस्तकेँ सिमरिया धरि बिना टिकटे घुरि आएल रहए। प्लेटफार्मक गेटपर दूटा सिपाहीक संग टी.टी. टिकट ओसुलैत। भोलाकेँ देखि टी.टी.क मनमे भेलै जे दरभंगिया छी भीख मंगए आएल अछि। टिकट नहि मंगलकै। सिपाहियोकेँ बुझि पड़लै जे जेबीमे किछु छैक नहि। टिकटेबला यात्री जेकाँ भोलो गेट पार भऽ गेल।
  सड़कपर आबि आँखि उठा कऽ तकलक तँ नमहर-नमहर कोठा चौरगर सड़क, हजारो छोटका-बड़का गाड़ी आ लोकक भीड़ भोला देखलक। मनमे भेलै जे भरिसक आँखिमे ने किछु भऽ गेल अछि। जहिना आँखि गड़बड़ भेने एक्के चान सात बुझि पड़ैत  तहिना। दुनू हाथे दुनू आँखि मीड़ि फेर देखलक तँ ओहिना। भीड़ देखि मनमे एलै जे जखन एत्ते लोकक गुजर-बसर चलैत छै तँ हमर किएक ने चलत। आगू बढ़ि लोकक बोली अकानए लगल। मुदा ककरो बाजब बुझबे नहि करैत। अखन धरि बुझैत जे जहिना गाए-महीस सभ ठाम एक्के रंग बजैत अछि तहिना ने मनुक्खो बजैत होएत। मुदा से नहि देखि भेलैक जे भरिसक हम मनुक्खक जेरिमे हेरा ने तँ गेलहुँहेँ। फेर मनमे एलै जे लोक तँ संगीक बीच हराइत अछि, असकरमे कोना हराएत। विचित्र स्थितिमे पड़ि गेल। ने आगू बढ़ैक साहस होइ आ ने ककरोसँ किछु पूछैक। हिया हारि उत्तर मूँहे बिदा भेल। सड़कक किनछरिये सभमे खाइ-पीबैक छोट-छोट दोकान पतिआनी लागल देखलक। भुख लगले रहै मुदा अपन पाइ आ बोली सुनि हिम्मते ने होइत। जेबी टोबलक तँ दूटकही रहबे करै। मन पड़लैक मधुबनीक स्टेशन कातक होटल, जहिमे पाँच रुपैये प्लेट दैत। ई तँ सहजहि कलकत्ता छी। एहिठाम तँ आरो बेसी महग हेबे करत। एकटा दोकानक आगूमे ठाढ़ भऽ गर अँटबए लगल जे नहि भात-रोटी तँ एक गिलास सतुऐ पीबि लेब। बगए देखि दोकानदारे कहलक- ‘‘आबह, आबह बौआ। ठाढ़ किएक छह?’’
  अपन बोली सुनि भोला घुसुकि कऽ दोकान लग पहुँचि पुछलक- ‘‘दादा, कोना खुआबए छहक?’’
  ‘‘तीन मास पहिने धरि आठे आनामे खुआबै छेलिऐक। अखन बारह आनामे खुआबै छिऐ।’’
  भोलाक मनमे संतोष भेल। पाइयेबला गहिकी जेकाँ बाजल- ‘‘कुरुड़ करैले पानि लाबह।’’
  भरि पेट खा आगू बढ़ल। ओना तँ रंग-विरंगक बस्तु देखैत मुदा भोलाक नजरि सिर्फ दुइये ठाम अँटकैत। देवाल सभमे साटल सिनेमाक पोस्टरपर आ सड़कपर चलैत ठेलापर। जाहि पोस्टरमे डान्स करैत देखए ओहि ठाम अटकि सोचए जे ई नर्तकी मौगी छी आकि पुरुख। गाम-घरमे तँ पुरुखे मौगी बनि डान्स करैत अछि। फेर मन पड़लै संगीक मुँहे सुनल ओ बात जे कहने रहए सत्य हरिश्चन्द फिल्ममे मर्दे मौगिओक रौल केने रहए। गुनधुन करैत बढ़ल तँ अपने जेकाँ छौड़ाकेँ ठेला ठेलने जाइत देखि सोचए लगल जे ई काज तँ हमरो बुते भऽ सकैत अछि। गाड़ीक ड्राइवरी तँ करए नहि अबैत अछि। बिना सिखने रिक्शो कोना चलाओल हएत?  ततमत करैत आगू बढ़ल। सड़कक बगलेमे एकटा ठेलाबलाकेँ चाह पीबैत देखलक। ओहिठाम जा कऽ ठाढ़ भऽ गेल। चाह पीबि ठेलाबला पुछलक- ‘‘कोन गाँ रहै छह?’’
  ‘‘विशौल।’’
  ‘‘हमहूँ तँ सुखेते रहै छी। चलह हमरा संगे।’’
  गप-सप्‍प करैत दुनू गोटे धर्मतल्लाक पुरना धर्मशाला लग पहुँचल, ठेलाकेँ सड़केपर छोड़ि दीनमा भोलाकेँ धर्मशालाक भीतर लऽ जा कऽ कहलक- ‘‘समांग असकरे कतौ जैहह नहि। हरा जेबह। हम एक ट्रीप मारने अबै छी।’’
  टंकीपर हाथ-पाएर धोए भोला दीनमासँ बीड़ी मांगि पीबि, पीलर लगा ओँगठि कऽ बैसि गेल। आँखि उठा कऽ तकलक तँ झड़ल-झुरल देवालक सिमटी,  तैपर कतौ-कतौ बर-पीपरक गाछ जनमल देखलक। पैखाना कोठरीक आ पानिक टंकीक आगूमे ठेहुन भरि किचार सेहो देखलक मन पड़लैक गाम। नाच-पार्टी टूटि गेल, घरवाली छोड़ि देलक। दू पाटी गाम भऽ गेल। सोचितहि-सोचितहि निन्न आबि गेलैक। बैसिले-बैसल सुति रहल।
  गोसाँइ डूबितहि बुचाइ -दोसर ठेलाबला- आबि भोलाकेँ जगबैत पुछलक- ‘‘कोन गाम रहै छह?’’
  आशा भरल स्वरमे भोला बाजल- ‘‘बिशौल।’’
  विशौलक नाओ सुनितहि मुस्की दैत बुचाइ पुछलक- ‘‘रुपनकेँ चीन्है छहक?’’
  ‘‘उ तँ हमरा कक्के हएत।’’
  अपन भाएक ससुर बुझि भोलासँ सार-बहिनोइक संबंध बनबैत कहलक- ‘‘चलह, पहिने चाह पीबी। तखन निचेनसँ गप-सप्‍प करब।’’
  कहि टंकीपर जा बुचन देह-हाथ धोए, कपड़ा बदलि भोलाकेँ संग केने दोकानपर गेल। आँखिक इशारासँ दोकानदारकेँ दू-दूटा पनितुआ,  दू-दूटा समौसा दैले कहलक। दुनू गोटे खा, चाह पीबि पानक दोकानपर पहुँचि बुचइ पान मंगलक। पान सुनि भोला बाजल- ‘‘पान छोड़ि दियौ। बीड़िये कीनि लिअ।’’
  बीड़ी पीबैत दुनू गोटे धर्मशालाक भीतर पहुँचल। एका-एकी ठेलाबला सभ अबए लगलैक। बिशौलक नाओ सुनितहि अपन-अपन संबंध सभ फरियबए लगल। संबंध स्थापित होइतहि चाहक आग्रह करैत। चाह पीबैत-पीबैत भोलाक पेट अगिया गेलै। अखन धरिक जिनगीमे एहन स्नेह भाेलाकेँ पहिल दिन भेटलै। ठेलाबला परिवारक अंग भोला बनि गेल। भोलाक सभ व्यवस्था ठेलाबला सभ कऽ देलक। दोसर दिनसँ ठेला ठेलए लगल।
  शनि दिनकेँ सभ ठेलाबला रौतुका शो सिनेमा देखए जाइत। ओहि शोमे एक क्लासक कन्सेशन भेटैत अछि। भोलो सभ शनि सिनेमा देखए लगल।
  चौदह मास बीतलाक बाद भोला गाम आएल। नव चेहरा नव बिचार भोलाक। घरक सभले कपड़ा अनने अछि। धिया-पूताकेँ दू-दूटा चौकलेट देलक। धिया-पूताकेँ चौकलेट देखि एका-एकी जनिजातियो सभ अबए लगलीह। झबरी दादी आबि भोलाकेँ देखि बजए लगलीह- ‘‘कहू तँ एहिसँ सुन्नर पुरुख केहेन होइ छै जे सौंथ जरौनियाँ छोड़ि देलकै।’’
  दादीक बात भोलाकेँ बेधि देलक। आँखि नोराए लगलैक। रघुनीक मन सेहो कानए लगलै। दोसरे दिन रघुनी लड़की ताकए घरसँ निकलल। ओना लड़कीक तँ कमी नहि,  मुदा गाम-घर देखि कऽ कुटुमैती करैक विचार रघुनिक मनमे रहै। लड़कीक कमी तँ ओहि समाजमे अधिक अछि जहिमे भ्रूण-हत्याक रोग धेने छैक। समयो बदलल। गिरहस्त परिवारसँ अधिक पसन्द लोक नोकरिया परिवारकेँ करैत अछि। बगलेक गाममे भोलाक विआह भऽ गेल।
  विआहक तीनिये दिन पछाति कनियाँक बिदागरियो भऽ गेलैक आ पाँचमे दिन अपनो कलकत्ता चलि देलक।
सालक एगारह मास भोला कलकत्ता आ एक मास गाममे गुजारए लगल। गाम अबैत तँ अपनो घरक काज सम्हारि अनको सम्हारि दैत।
  तेसर साल चढ़ितहि भेलाकेँ जौँआ बेटा भेलै। नवम् मास चढ़ितहि ओ गाम आबि गेल। मनमे आशो बनले रहैक जे पाइ-कौड़ीक दिक्कत तँ नहिये हएत। सभ ठेलाबला अपन संस्था बना पाइ-कौड़ीक प्रबन्ध अपने केने अछि। मुदा पहिल बेर छी, कनियाँक देखभाल तँ कठिन अछिये। सरकारीक कोनो बेवस्थो नहिये छैक। मुदा समाजो तँ समुद्र थिक। बिनु कहनहुँ सेवा भेटैत अछि। जाहिसँ भोलोकेँ कोनो बेसी परेशानी नहिये भेलैक।
  समय आगू बढ़ल। पाँच बर्ख पुरितहि भोला दुनू बेटाकेँ स्कूलमे नाओ लिखौलक। शहरक वातावरणमे रहने भोलोक विचार धिया-पूताकेँ पढ़बै दिशि झुकि गेल रहैक। मनमे अरोपि लेलक जे भलेही खटनी दोबर किऐक ने बढ़ि जाए मुदा दुनू बेटाकेँ जरुर पढ़ाएब। अपन आमदनी देखि पत्नीक ऑपरेशन करा देलक। जाहिसँ परिवारो समटले रहलैक।
पढ़ैमे जेहने चन्सगर रतन तेहने लाल। क्लासमे रतन फस्ट करैत आ लाल सेकेण्ड। सातवाँ क्लास धरि दुनू भाँइ फस्ट-सेकेण्ड स्कूलमे करैत रहल। मुदा हाइ स्कूलमे दुनू भाँइ आर्ट लऽ पढ़ए लगल जहिसँ क्लासमे कोनो पोजीसन तँ नहिये होइत मुदा नीक नम्बरसँ पास करए लगल।
  मैट्रिकक परीक्षा दऽ दुनू भाँइ कलकत्ता गेल। अखन धरि आने परदेशी जेकाँ अपनो पिताकेँ बुझैत छल। तेँ मनमे रंग-विरंगक इच्छा संयोगने कलकत्ता पहुँचल रहए। मुदा अपन पिताक मेहनत,    -छातीक बले ठेला घीचैत देखि- पराते भने गाम घुमैक विचार दुनू भाँइ कऽ लेलक। पितेक जोरपर तीनि दिन अँटकल। मुदा किछु कीनैक विचार छोड़ि देलक। मेहनतक कमाइ देखि अपन इच्छाकेँ मनेमे दुनू भाँइ दाबि लेलक। मुदा तइयो भोला दुनू बेटाकेँ फुलपेंट, शर्ट, धड़ी, जुत्ता कीनि कऽ देलखिन।
  तीन मासक उपरान्त मैट्रिकक रिजल्ट निकललै। दुनू भाँइ-रतनो आ लालो- प्रथम श्रेणीसँ पास केलक। फस्ट डिवीजन भेलोपर आगू पढ़ैक विचार मनमे नहि अनलक। उपार्जनक लेल सोचए लगल। नोकरीक भाँज-भुँज लगबै लगल। नोकरियोक तँ वएह हाल। गामक-गाम पढ़ल बिनु पढ़ल नौजवानक फौज तैयार अछि। एक काजक लेल हजार हाथ तैयार अछि। जाहिसँ समाजक मूल पूँजी –मानवीय- आगिमे जरैत सम्पति जेकाँ नष्ट भऽ रहल अछि।
  समए मोड़ लेलक। पढ़ल-लिखल नौजवानक लेल नोकरीक छोट-छीन दरबज्जा खुजल। गामक स्कूलमे शिक्षा-मित्रक बहाली होअए लगलैक। जाहिसँ नव ज्योतिक संचार गामोक पढ़ल लिखल नौजवानमे भेलैक। ओना समएक हिसाबसँ शिक्षा मित्रक मानदेय मात्र खोराकी भरि अछि, मुदा बेरोजगारीक हिसाबसँ तँ नीक अछिये। बगलेक गामक स्कूलमे रतनो आ लालोक बहाली भऽ गेलैक। पाँच तारीककेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करत।
आगू नहि पढ़ैक दुख जते दुनू भाँइक मनमे नहि रहैक ताहिसँ बेसी खुशी नोकरीसँ भेलैक। कोपर बुद्धिमे कलुषताक मिसियो भरि आगमन नहि भेलैक अछि। दुनू भाँइ बैसि कऽ अपन परिवारक संबंधमे विचारए लगल। रतन लालकेँ कहलक- ‘‘बौआ, कोन धरानी बाबू अपना दुनू भाँइकेँ पढ़ौलनि से तँ देखले अछि। अपनो सभ एक सीमा धरि पहँचि गेल छी। तेँ  अपनो सभक की दायित्व बनैत अछि, से तँ सोचए पड़तह ?’’
  रतनक बात सुनि लाल बाजल- ‘‘भैया, अपना सभ ओहि धरतीक सन्तान छी जाहि धरतीपर श्रवण कुमार सन बेटा भऽ चुकल छथि। पाँच तारीकसँ पहिनहि बाबूकेँ कलकतासँ बजा लहुन। हम सभ ठेलाबलाक बेटा छी, एहिमे कोनो लाज नहि अछि। मुदा लाजक बात तहन हएत जहन ओ ठेला घीचताह आ अपना सभ कुरसीपर बैसि दोसरकेँ उपदेश देबै।’’
  मूड़ी डोला स्वीकार करैत रतना बाजल- ‘‘आइये बाबूकेँ जानकारी दऽ दैत छिअनि जे जानकारी पबितहि गाड़ी पकड़ि घर चलि आउ। पाँच तारीखकेँ दुनू भाँइ ज्वाइन करए जाएब। दुनू भाँइक विचार अछि जे अहाँकेँ गोर लागि घरसँ डेग उठाएब।’’
  दुनू भाँइक विचार सुनितहि माएक मन सुख-दुखक सीमापर लसकि गेलनि। जरल घरारीपर चमकैत कोठा देखए लगलीह। आँखिमे नोर छलकि गेलनि। मुदा ओ दुखक नहि सुखक छलनि।

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