Friday, November 21, 2008

रिक्साबला - जगदीश प्रसाद मण्डल



‘ओ रिक्शा, ओ रिक्शा।’ - कने फड़िक्केसँ जीबछ जोरसँ बाजल। हाथमे बम्बैया बैग, जिन्स पेन्ट आ शर्ट पहीरिने, दहिना हाथमे चौड़गर घड़ी। फुल जुत्ता, मौजा सेहो लगौने। बम्बैये हिप्पी कट केश, बुच्चा मोछ आ आँखिपर चश्मा। बचनू रिक्शाबला अपन ताशक संगीक संग ताश खेलाइत। ताशो ओहिना नहि खेलैत, एक सेटपर चारु गोटेक चाह-पान खर्च, हरलाहा पार्टीकेँ देमए पड़ैत। पाँचटा लाल बचनूक जोड़ाकेँ। तेँ एक्केटा सेठ होइमे बाकी। एकटा लाल हएत, चाह-पानक जोगार लगत। तेँ एकाग्र भऽ बचनू लालक पाछु दिमाग लगौने। ताशक चौखड़ी लग आबि जीवछ दुइभेपर बैग रखि रुमालसँ मुँह लग हौंकए लगल। कने काल हौंकि रिक्शाबलाकेँ चड़िअबैत कहलक- ‘हौ भाय, हमरा बहुत दूर जाइक अछि, झब दे चलह?’
ताश परसँ नजरि उठा, जीबछ दिशि देखि बचनू बाजल- ‘भाय, केहेन सुन्दर ठंढ़ा छै, कनी सुसता लाए। तोरो देखै छिअह जे पसीनासँ तड़-बत्तर भेल छह। हमरो एक्केटा लाल बाकी अछि, दू-तीन खेपमे भइये जाएत। अगर जँ अपन लाल नहियो हएत आ विरोधियेकेँ दूटा कारी भऽ जेतै, तैयो जीत हेबे करत।
बचनूक बात सुनि जीबछ शर्टो आ गंजिओ निकालि कऽ रौदमे पसारि देलक। आसीन मास। तीख रौद। तइ परसँ गुमकी सेहो। रेलबे स्टेशनसँ जीबछ पएरे आएल। किएक तँ स्टेशनक बगलेमे तेहेन खच्चा बाढ़िमे बनि गेल जे रिक्शो आ टमटमोक रास्ता बन्न भऽ गेलै। पएरे लोक कहुना कऽ थाल-पानिमे टपैत। बाढ़ि तँ तेहेन आएल छल जे जँ स्टेशन ऊँचगर जमीनपर नहि रहैत तँ ओहो भसि कऽ कतए-कहाँ चलि जाइत। मुदा तैयो स्टेशनक पूबरिया गुमती, पुल आ आध किलोमीटर रेलबे लाइन दहाइये गेल। रेलवेक दछिन तेहेन मोइन फोड़ि देलक जे गाड़िओ बन्न भऽ गेल। डेढ़ मासमे पुलो बनल आ गाड़ियो चलब शुरु भेल।
गाममे रिक्शा बचनुएटा केँ। जाहिसँ कोनो तरहक प्रतियोगिता नहि। प्रतियोगिता तँ शहर-बजारमे होइत, जहिठाम सैकड़ो-हजारो रिक्शा रहैत। अनेरो रिक्शाबला सभ रिक्शापर बैसि, इमहरसँ उमहर घुमबैत आ बजैत- ‘कोट-कचहरी......बैंक.......पोस्ट आॅफिस....... कओलेज.... स्कूल..... स्टेशन..... बस स्टेण्ड...... अस्पताल.... बड़ा बजार..... सिनेमा चौक...... डाकबंगला..... भगतसिंह चौक..... आजाद चौक।
मुदा से तँ गाममे नहि। मुदा तेँ कि गामक रिक्शाबलाकेँ कमाइ नहि होइत। खूब होइत। एक तँ गामक कच्ची रस्ता, तइ परसँ जहाँ-तहाँ टूटलो आ गहूम पटौनिहार सभ कटनौ। एहेन सड़कमे दोसर कोन इंजनबला सवारी सकत। तेँ गामक सवारी रिक्शा। जाहिसँ गामक बेटी-पुतोहूक विदागरी निमहैत। धन्यवाद तँ रिक्शेबलाकेँ दी जे बेचारा छातीपर भार उठा, कखनो चढ़ि कऽ तँ कखनो उतरि कऽ पार लगबैत। कठिन मेहनतक पाइ कमाइत।
अखन धरि ताशक खेल नहि फड़िआइल। किएक तँ कखनो लाल कमि जाए तँ कखनो कारी। अगुताइत जीबछ बाजल- ‘भाय, ताश नै फड़िऐतह। बहुत दुरस्त जाइक अछि। झब दे चलह। नञि तँ अन्हार भेने तोरो दिक्कत हेतह आ हमरो अबेर भऽ जाएत। कहुना-कहुना तँ ऐठामसँ सुग्गापट्टी पाँच कोस हएत।’
बचनू- ‘हँ, से तँ पाँच कोससँ कम नहिये हएत। मुदा तइसँ की? ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे रातिक कोन बात जे दिने देखार पौकेटमारी, डकैती, अपहरण होइ छै। ने रस्तामे भीड़-भड़क्का आ ने कोनो चीजक डर। निचेनसँ जाएब।’
गामक बीचमे चौबट्टी। जहिठाम पान-सातटा छोट-छोट दोकान। जहिसँ गामोक आ आनो गामक लोक चौक कहए लगल। चौकक पछबरिया कोनपर एकटा खूब झमटगर पाखरिक गाछ। जहिपर हजारो चिड़ैक खोँता। दिन भरि चिड़ै सभ चराउर करए बाहर जाइत आ गोसाँइ निच्चा होइतहि पतिआनी लगा-लगा गाछपर अबए लगैत। कतेको रंगक चिड़ै तेँ सभ जातिक चिड़ै अपन-अपन संगोर बना-बना अबैत। ततबे नहि, गाछक डारियो बाँटि नेने अछि। एक जातिक चिड़ै एक डारिपर खोँता बनौने अछि। तेँ एक जातिक चिड़ैसँ दोसर जातिक चिड़ैक बीच ने कहा-कही होइत आ ने झगड़ा-झंझट। मुदा अपनामे एक जातिक बीच नीक-अधलाक गप-सप्‍प जरुर होइत। कथा-कुटुमैतीसँ लऽ कऽ रामायण-महाभारतक किस्सा-पिहानी जरुर होइत। पान-पुनक चरचा सेहो करैत। अधला काज केनिहारकेँ डाँटो-फटकार दैत आ जुरमिनो करैत। ओहि गाछक निच्चाँमे बाटो-बटोही रौदमे ठंढ़ाइत आ पाि‍न-बुनीमे सेहो जान बँचबैत। ताशक चौखड़ी सेहो जमैत।
बचनुक बात सुनि जीबछ पेन्टक पैछला पौकेटसँ सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकाललक। एकटा सिगरेट अपनो लेलक आ एकटा बचनुओकेँ देलक। दुनू गोटे सिगरेट लगा, रिक्शापर चढ़ि बिदा भेल। कनिये आगू बढ़ल आकि बचनू जीबछकेँ पूछलक- ‘भाय तूँ बम्बैमे रहै छह?’
  ‘हँ’
  ‘मन तँ हमरो बहु दिनसँ होइए मुदा पलखतिये ने होइए जे जाएब।’
  ‘ओइ ठीन मन तँ खूब लगैत हेतह?’
  ‘एँेह भाय मन। की कहबह? जखैनिये डेरासँ निकलबह आकि रंग-बिरंगक छौँड़ी सभकेँ देखबहक। उमेरगरो सभ जे कपड़ा लगौने रहतह से देखबहक तँ बुझि पड़तह जे कुमारिये अछि। मुदा छउरो सभ की ओइसँ कम अछि। एक तँ ओहिना जे छउरी सभ दामी-दामी कपड़ा पहीनने अछि आ सौँसे देह झक-झक करै छै। तइपरसँ छउरो सभ करिक्का चश्मा पहीन लेतह आ निङहारि-निङहारि देखैत रहतह। चश्मो की कोनो एक्की-दुक्की रहै छै। जखैनिये आँखिमे लगेबह आकि देहपर कपड़ा बुझिये ने पड़तह।’
  ‘ओहन चश्मा हमरा सभ दिशि कहाँ छै, हौ।’
  ‘ऐँह, ओइ ठीन विदेशी चश्मा सभ बिकाइ छै की ने। देहातमे ओहन चश्मा के कीनत।’
चौकसँ कनिये उत्तर एकटा ताड़ीक दोकान। चारि-पाँच कट्ठाक खजुरबोनी। बीच-बीचमे ताड़क गाछ सेहो। उत्तर-दछिने रास्ता। पछबारि भाग ताड़ीक दोकान। ताड़ीक दोकान देखि जीबछ बचनुक पीठमे आगुरसँ इशारा करैत रोकैले कहलक। बचनुक मनमे भेलै जे भरिसक पेशाब करत। रिक्शा रोकि उतरि गेल। जीबछ बाजल- ‘भाय, ताड़ी दोकान देखै छिऐ। चलह दू घोंट पीबि लेब, तखन चलब। हमहीं पाइयो देबै।’
ताड़ीक नाम सुनि बचनू कहलक- ‘ओना ताड़ी हमहूँ पीबै छी मुदा ताड़ी पीबि कऽ ने रिक्शा चलबै छी आ ने ताड़ी पीनिहारकेँ रिक्शापर चढ़बै छी। तेँ अखैन ताड़ी-दारु बन्न करह। जखैन घरपर पहुँचबह तखैन जे मन हुअह से करिहह।’
  ‘भाय, ओतऽ भेटत की नै भेटत, अखैन तँ आगूमे अछि।’
  ‘तब अखैन नै जाह। ताड़ी कीनि कऽ नेने चलह। गामेपर दुनू गोटे पीबि लेब आ रातिमे रहि जइहह।’
  ‘अइठीन कतऽ रहब?’
  ‘से की हमरा घर-दुआर नै अछि। ओतै रहि कऽ राति बीता लिहह। भोरे पहुँचा देबह।’
  ‘अच्छा, ठीक छै, चलह।’
  दुनू गोटे ताड़ी दोकान दिशि बढ़ल। दोकान लग पहुँचते जीबछ घैलक-घैल ताड़ी फेनाइत देखलक। घैलक पतिआनी देखि मने-मन सोचए लगल जे हमरा होइ छलए जे शहरे-बजारक लोक ताड़ी पीबैए। मुदा से नहि गामो-घरक लोक खूब पीबैए। पच्चीस-तीस गोटे दोकानक भीतरो आ बाहरो ताड़क पातक चटाइपर बैसि ताड़िओ पीबैत आ चखनो खाइत। कियो-कियो असकरे पीबैत तँ कियो-कियो दू-दू, तीन-तीन, चारि-चारि गोटेक संगोरमे। कियो खिस्सा कहैत तँ कियो गीत गबैत। कियो अन्हागाहिस गारियो पढ़ैत। सभ उमंगमे। जहिना ताड़ीक फेन उधिआइत तहिना सबहक मन। ताड़ीक खटाइन गंध लगिते जीबछकेँ होए जे कखैन दू गिलास चढ़ा दिऐ।
ताड़ी दोकानसँ कने हटि दूटा बुढ़िया चखनाक दोकान पसारने। एकटा दोकानमे मुरही, घुघनी बदामक कचड़ी आ दोसरमे चारि पाँच रंगक माछक तरुआ। ओंगरिक  इशारासँ मझोलका डाबा देखबैत जीबछ बचनूकेँ कहलक- ‘भाय, दुइये गोरे पीनिहार छी, तेँ वएह डाबा लऽ लाए।’
बचनू- ‘पहिने दाम पूछि लहक?’
डाबाक कान पकड़ि जीबछ पासीकेँ दाम पुछलक। तोड़-जोड़ करैत पैंतीस रुपैयामे पटि गेलै। पेन्टक जेबीसँ नमरी निकालि ओ जीबछकेँ देलक। नमरी पकड़ैत दोकानदार कहलकै- ‘तारिये टाक दाम कटै छिअह। डाबा घुरा दिहह।’
‘बड़बढ़ियाँ’ कहि बचनू डाबा उठा लेलक। डाबाकेँ चखना दोकानक आगूमे रखि बचनू मने-मन सोचए लगल जे औझुका तँ कमाइयो ने भेल। धिया-पूता की खाएत? से नञि तँ तेना कऽ मुरही-कचड़ी कीनि ली जे सभ तुर खाएब। जेहने झुर कऽ कऽ कचड़ी बनौने तेहने माछक कुटिया। एकदम लाल-बुन्द। माछक कुटिया देखि जीबछक मुँहमे पानि अबए लगल। मन चटपटाए लगल। बचनूकेँ कहलक- ‘भाय, कते चखना लेबह?’
मने-मन बचनू हिसाब जोड़ए लगल। दू-दूटा कचड़ी आ दू-दूटा माछ दुनू बच्चाले आ अपना सभले चारि-चारिटा। किएक तँ गरम चीज होइ छै, तेँ बेसी खराब करतै। बाजल- ‘भाय, एक किलो मुरही, एक किलो घुघनी, सोलहटा कचड़ी आ सोलहटा माछक कुटिया लऽ लाए।’
सएह केलक। ताड़ीक डाबा उठा जीबछ विदा भेल। रिक्शा लग आबि बचनू चखनाक मोटरी सेहो जीबछेकेँ दऽ देलक।
चौकक रस्ता छोड़ि बचनू घर परक रस्ता धेलक। लगेमे घर। दुइयेटा घर बचनूकेँ। रिक्शा रखैले एकचारी भनसे घरक पँजरामे देने। एकटा घरमे भानसो करै आ जरनो-काठी रखै। दोसरमे सभतुर सुतबो करै आ चीजो-बौस रखै। अपना दरबज्जा नहि। मुदा घरक आगूमे धुर दसेक परती, जइपर सरकारी चबूतरा बनल। घर लग अबिते बचनू रिक्शा ठाढ़ कऽ आंगन बाढ़नि अनए गेल। बचनूकेँ देखि घरवाली कहलकै- ‘आइ जे भाड़ा नै कमेलौं, तँ राति खएब की? अपने दुनू गोरे तँ ओहुना सुति रहब मुदा बच्चा सभ कना रहत?’
बिना किछु उत्तर देनहि बचनू बारहनि लऽ अंगनासँ निकलि गेल। चबुतराकेँ देहरा कऽ बहारलक। चबुतराक बनाबट सुन्दर, तेँ बहारितहि चमकए लगल। चबुतराक चमकी देखि जीबछ बाजल- ‘भाय, जेहने मजगूत चबुतरा छह तेहने सुन्दर। संगमरमर जेकाँ चमकै छह।’
जीबछक बात सुनि बचनुकेँ ओ दिन मन पड़लै जइ दिन ओ ठीकेदारकेँ गरिऔने रहए। मुस्कुराइत कहलकै- ‘भाय, ओहिना एहेन सुन्दर बनल अछि। जे ठीकेदार बनबाबैक ठीकेदारी नेने रहए ओ नमरी चोर। तीन नम्बर ईंटा आ कोसीकातक बाउलसँ बनबए चाहैत रहए। हम गामपर नै रही। जखैन एलौं तँ देखलिऐ। देखिते सौँसे देह आगि लगि गेल। मुदा ऐठाम रहए क्यो ने। दोसर दिन नाओ कोड़ए ठीकेदारो आ जनो एलै। हमरा तँ गरमी चढ़ले रहए। जखने कोदारि लगौलक आकि जऽनक हाथसँ कोदारि छीनि ठीकेदारकेँ गरिअबै लगलौं। जहाँ गारि पढ़लिऐ आकि ठीकेदारो गहुमन साँप जेकाँ हुहुआ कऽ उठल। जहाँ ओ जोरसँ बाजल आकि हमहूँ गरिअबिते दुनू हाथे कोदारिक बेंट पकड़ि कहलिऐ, सार नाओ लइसँ पहिने तोरे काटि देबह। मुदा सभ पकड़ि लेलक। डरे ठीकेदारो थर-थर कँपए लगल। तखन जा कऽ एक नम्मर सभ किछु -ईंटा, सिमटी, बालु आनि बनौलक।’
‘जीबछ बाजल- ‘बाह।’
बचनू- ‘कनी उपर आबि कऽ देखहक जे की सभ बनबौने छी। देखहक ई खेलाइ लऽ पच्चीसी घर छी, कौड़ीसँ खेलाएल जाइए। मुदा ई खेल समैया छी। एकर चलती सिर्फ आसिने टामे रहैए। कोजगरा दिन तँ लोक भरि राति खेलते रहैए।’
दोसरकेँ देखबैत- ‘ई मुगल पैठानक घर छी। हमरा गाममे लोक एकरा मुगल-पैठान कहै छै मुदा आन-आन गाममे एकरा कौआ-ठुट्ठी कहै छै। गोटीसँ खेलाइल जाइ अए।’
तेसर घर देखबैत- ‘ई बच्चा सभक छिऐ। एकरा चैरखी-चैरखी घर कहै अए। झुटकासँ खेलल जाइए।’
जीबछ- हौ भाय, तू तँ बड़ खेलौड़िया बुझि पड़ै छह।’
बचनू- ‘हौ, जिनगीमे आउर छै की? खाइत-पीबैत, हँसी-चौल करैत बिता ली। सभ दिन कमेनाइ, सभ दिन खेनाइ। कोनो हर-हर, खट-खट नै। धिया-पूताले तँ हम अपने इस्कूल खोलि देने छिऐ। खेती-पथारीक काजसँ लऽ कऽ रिक्शा चलौनाइ, ईंटा बनौनाइ सभ लूरि हमरा अछि। धिया-पूता तँ देखिये कऽ सीखि लेत।’
ओना जीबछ बचनुक गप सुनैत मुदा मन ताड़ीक खटाइन गंधपर अँटकल। होइ जे कखन दू गिलास चढ़ाएब। नै तँ कमसँ कम आंगुरमे भिड़ा नाकोक दुनू पूरामे लगा ली। जीबछकेँ बचनू कहलक- ‘भाय, ताबे तूँ सभ कुछ सरिआबह, हम घरमे रिक्शा रखि दइ छिऐ। काजसँ निचेन भऽ जाएब।’
जीबछ सभ समान सरिअबए लगल। रिक्शाकेँ गुरकौने बचनु एकचारीमे रखि आंगन जा दुनू बच्चो आ पत्नियोकेँ कहलक- ‘दुनू बाटिओ आ दुनू छिपलियो नेने चलू।’
कहि बचनू आगू बढ़ि गेल। पत्निक मन खुशीसँ झुमि उठल। दुनू बच्चा दुनू बाटी नेने आगू बढ़ल। दुनू छिपली नेने पत्नी डेढ़िया लग ठाढ़ भऽ मुँहपर नुआ नेने कनडेरिये आँखिये दुनूकेँ देखैत। अपना दुनू गोटेले बचनू चारि-चारि पीस माछ, चारि-चारि कचड़ी आ अधा किलो करीब मुरही-घुघनी मिला कऽ रखि, दुनू बच्चाकेँ एक-एक कचड़ी, एक-एक माछक कुटिया आ दू-दू मुट्ठी मुरही-घुघनी मिला कऽ देलक। दुनू बच्चा देखि कऽ चपचपा गेल। अपन-अपन बाटी वामा हाथे उठा दहिना हाथे खाइत बिदा भेल। माए लग पहुँच दुनू बच्चा अपन-अपन बाटी देखए देलक। बाटीमे घुघनीक मिरचाइक टुकड़ी आ कचड़ीमे सटल मिरचाइकेँ देखि माए कहलक- ‘बौआ, मिरचाइ बीछि कऽ रखि दिहए। तोरा सभकेँ करु लगतौ।’
तहि बीच बचनू गमछाक एक भागमे मुरही-घुघनीकेँ मिला, चारि-चारिटा कचड़ी आ चारि-चारिटा माछक कुटिया फुटा, दुनू गोटेले रखलक। चबुतरे परसँ बचनू घरवालीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘ई सभ लऽ जाउ।’
अदहा मुँह झपने बचनुक पत्नी सरधा चबुतरापर पहुँच दुनू छिपली बचनुक आगूमे रखि देलक। एकटा छिपलीमे मुरही कचड़ी आ दोसरमे घुघनी-माछ बचनू दऽ देलक। झुर माछक तरुआ देखि सरधाक मन हँसए लगल। मनमे एलै जे कल्हुका जलखै तकक ओरियान भऽ गेल। दुनू छिपली तरा-उपरी रखि दुनू हाथसँ पकड़ि आंगन बिदा भेलि।
दुनू गोटे –जीबछ आ बचनू- दुनू भाग बैसि बीचमे ताड़ीक डाबा, गिलास आ चखना रखलक। दुनू गिलासमे जीबछ ताड़ी ढ़ारि, आगूमे रखि आँखि मुनि, ठोर पटपटबैत मंत्र पढ़ए लगल। कनी काल मंत्र पढ़ि, आँखि खोलि तीन बेर ताड़ीमे आंगुर डुबा निच्चाँमे झाड़ि बाजल- ‘हुअह भाय, आब पीबह।’
छगाएल दुनू, तेँ एक लगाइते तीन-तीन गिलास पीबि लेलक। मन शान्त भेलै। मन शान्त होइतहि जीबछ सिगरेट निकालि एकटा अपनो लेलक आ एकटा बचनुओक हाथमे देलक। दुनू गोटे सिगरेट धरा पीबए लगल। सिगरेट पीबैत-पीबैत दुनूकेँ निशाँ चढ़ए लगल। निशाँ चढ़िते गप-सप्‍प करैक मन दुनू गोटेकेँ हुअए लगलै। एक मुट्ठी मुरही आ एक टुकड़ी माछ तोड़ि जीबछ मुँहमे लेलक। बचनुओ लेलक। मुँह महक घांेटि जीबछ बाजल- ‘भाय, तोरा रिक्शा चला कऽ परिवार चलि जाइ छह?’
कचड़ी तोड़ि मुँहमे लैत बचनू उत्तर देलक- ‘किअए ने चलत। हमरा की कोनो कोठा बनबैक अछि जे गुजर नै चलत। तहूमे की हम रिक्शा बारहो मास थोड़बे चलबै छी। भरि बरसात चलबै छी। जहाँ बरखा बन्न भेलै आकि महाकान्त भाइयक चिमनीमे काज करै छी।’
‘नोकरियो करै छह?’
‘एहेन नोकरी तँ भगवान सभकेँ देथुन।’
अलबेला लोक छथि महाकान्त भाय। हुनकर खाली पूँजी टा छिअनि। असली कारबारी हम दू गोटे छी। सरुप मुनसी आ हम। पजेबाक खरीद-बिकरीसँ लऽ कऽ कोइला मंगौनाइ, ओकर हिसाब बारी केनाइ हुनकर काज छिअनि। आ हमर काज पथेरीक देखभाल केनाइ, समएपर ओकरा दमकल चला, खाधिमे पानि देनाइसँ लऽ कऽ बजारसँ समान कीनि कऽ अननाइ आ चिमनी परसँ घर-परक दौड़-बरहा केनाइ रहैए।’
‘तब तँ खूब कमाइ होइत हेतह?’
‘कमाइ जँ करए चाही तँ ठीके खूब हएत। मुदा से नै करै छी। एक सए रुपैया रोज होइए। ओ घरवालीक हाथमे दऽ दै छिऐ। बाकी खेलौं-पीलांै। किएक तँ नजाइज पाइ जँ घरमे देबै तँ ओइसँ भाभन्स नै हएत।’
दुनू गोटे डबो भरि ताड़िओ आ चखनो खा-पीबि गेल। एक दिशि निशाँसँ दुनूक देह भसिआइत, दोसर दिस जोरसँ पेशाब लगि गेलै। उठैक मने ने होइ। मुदा पेशाबो जोेरे होइत जाइत। दुनू गोटे उठि कऽ पेशाब करै गेल। जाबे पेशाब करै लऽ बैसै ताबे बुझि पडै़ जे कपड़ेमे भऽ जाएत। मुदा कहुना-कहुना कऽ सम्हारि पेशाब करए बैसल। पेशाब बन्ने ने होइ। बड़ी कालक बाद पेशाबो बन्न भेलै आ भक्को खुजलै।
चबुतरापर दुनू गोटे आबि कऽ बैसल। जीबछ कहलकै- ‘भाय, हमरा डान्स करैक मन होइए।’
जीबछक बात सुनि बचनू पल्था मारि बैसि, ठेहुनपर दुनू हाथसँ बजबए लगल। मुदा ओहिसँ अबाज नै निकलै। अबाज निकलै मुँहसँ। जहिना-जहिना मुँहसँ बोल निकलइ तहिना-तहिना दुनू ठेहुनपर हाथ चलबै। तहि बीच दुनू बच्चो चबुतरापर आबि थोपड़ी बजबए लगल। अंगनाक मुहथरिपर सरधा बैसि देखए लगली। जीबछ डान्स करए लगल। थोड़े कालक बाद बचनुक मुँह दुखा गेलै। मुदा जीबछ डान्स करिते। दुनू बच्चो थोपड़ी बजबिते। जहिना बाढ़िक रेतपर हेलनिहार चीत गरे सुति कतौसँ कतौ भसिया कऽ चलि जाइत तहिना बैसल बैसल सरधाक मन भसिआइत। तहि बीच बचनु उठि कऽ आंगन गेल। घैलची परक घैलसँ पानि फेकि नेने आएल। उल्टा कऽ घैल रखि, हाथमे औँठी रहबे करै, दुनू हाथे घैलक पेनपर बजबए लगल। लाजबाब बाजा। नचैत-बजबैत दुनू गोटे थाकि गेल। सुति रहल।
भोर होइते दुनू गोटे उठि, मुँह-हाथ धोए चलि देलक।
अइ बेर आसिन अपन चालि बदलि लेलक। किएक तँ आन साल अधहा आसिनक उपरान्त हथिया नक्षत्र अबैत छल। से अइ बेर नञि भेलै। पहिने हथिये चढ़ल। दू दिन हथिया बितलाक बाद आसिन चढ़ल। ओना बूढ़-बुढ़ानुसक कहब छनि जे दुर्गापूजामे हथिया पड़िते अछि, मुदा से नञि भेलै। आसिनक इजोरिया पखक परीबकेँ दुर्गा पूजा शुरु होइत। अइ बेर अमबसिये दिन हथिया चलि गेल। तहिना बरखोक भेल। जइ दिन आसिन चढ़ल ओहि दिन घनघनौआ बरखा भेल आ तेकर बाद फुहियो ने पड़ल। झाँटक कोन गप। हथियाक लेल ओरिआओल जरनो-काठी आ अन्नो-पानि सबहक घरमे रहिये गेल। मुदा तैयो किसान सबहक मनमे खुशी नै कमल। किएक तँ जँ हथियामे धानक खेतमे ठेंगाक हूर गरत तँ धान हेबे करत। मुदा किछु गोटेक मनमे शंका जरुर होइ जे निचला खेतमे ने पानि लगल अछि मुदा उपरका खेतक धान कोना फुटत? किएक तँ उपरका खेतक पानि टघरि कऽ निचला खेतमे चलि गेल। किछु खेतक पानि काँकोड़क बोहरि देने तँ किछु खेतक पानि मूसक बिल देने बहि गेल। जहिसँ बरखाक तेसरे दिन उपरका खेत सभ सुखि गेल। ओना दसमीक मेलो देखिनिहारक आ मेलामे दोकानो-केनिहारक मनमे खुशी। किएक तँ रुख-सुखमे नाचो-तमाशा जमत आ देखिनिहारोक भीड़ जुटत। ओना पैछला सालक सभ छगाएल। किएक तँ जइ दिन सतमी मेला शुरु भेल ओहि दिन तेहेन झाँट आ पानि भेल जे मेलाक चुहचुहिये चलि गेलै।
सुखाड़ समए रहने महाकान्त ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल सोचए लगल। जहियासँ चिमनी शुरु केलहुँ तहियासँ एहेन समए नहि पकड़ाएल छल। आन साल दिआरीक पछाति चिमनीक काजमे हाथ लगबै छलहुँ, से अइ बेर भगवान तकलनि। कहुना-कहुना तँ दिआरी अबैत-अबैत दू खेप भट्ठा जरुर लगि जाएत। सरकारोक योजना नीक पकड़ाएल। एक दिशि खरन्जाक स्कीम तँ दोसर दिशि इन्दिरा आबासक घर। ततबे नहि स्कूल आ अस्पताल सेहो बनत। ई सभ तँ अपने गामटा मे बनत से नहि, आनो-आन गाममे बनत। सालो भरि ईंटाक महगीये रहत। ओते पुराइये ने पाएब। एते बात मनमे अबिते मुँहसँ हँसी निकलल। तहि काल पत्नी रागिनी बेड टी नेने आबि चुप-चाप सिरमा दिशि ठाढ़ भऽ पतिकेँ मुस्कुराइत देखलनि। पतिक मुस्की देखि रागिनी मने-मन सोचए लागलि जे की बात छिऐ जे ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल मुस्करा रहल छथि। मुदा बिना किछु बजनहि टेबुलपर चाह रखि, ओरिया कऽ नाक पकड़ि डोला देलक। नाक डोलबितहि महाकान्त उठि कऽ बैसि रहल। आगूमे रागिनीकेँ ठाढ़ देखि चौबन्निया मुस्की दैत आँखिक इशारासँ पलंगपर बइसैले रागिनीकेँ कहलक। पतिक मूड देखि रागिनी ससरिये जाएब नीक बुझलक।
महाकान्त आ रागिनी, संगे-संग कओलेजमे पढ़ने। जहिये दुनू गोटे बी.ए.मे पढ़ैत छल तहिये दुनूक बीच प्रेम भऽ गेल। दुनू सम्पन्न परिवारक। ओना पढ़ैमे दुनू ओते नीक नहि जते दुनूक रिजल्ट नीक होए। दुनूकेँ मैट्रिको आ इन्टरोमे फस्ट डिविजन भेल रहै। तेकर कारण मेहनत नहि पैरबी रहए। नीक रिजल्टक दुआरे संगियो-साथीक बीच आ शिक्षकोक बीच दुनूक आदर होइ। दुनूक बीच संबंध बी.ए. आनर्सक क्लासमे भेलै। किएक तँ आनर्समे कम विद्यार्थी रहने गप-सप्‍प करैक अधिक समए भेटै। दुनूक बीच संबंध गप-सपसँ शुरु भेल। तेकर बाद किताबक लाथे डेरोमे एनाइ-गेनाइ शुरु भेल। संबंध बढ़िते गेलै। संगे बजार बुलनाइ, किताब-कापी खरीदनाइसँ लऽ कऽ कपड़ा, जुत्ता-चप्पल खरीदनाइ धरि संगे हुअए लगलै। सिनेमा तँ मेटनियो शोमे देखए लगल। जाहिसँ आंगिक संबंध सेहो शुरुह भऽ गेलै। एकटा डबल रुम लऽ दुनू गोटे डेरो एकठाम कऽ लेलक। दुनूक बीचक संबंधक चरचा सिर्फ विद्यार्थिये आ शिक्षके धरि नहि रहि दुनूक पिता धरि पहुँचि गेलै। मुदा दुनूक पिताक दू विचार। तेँ बुझियो कऽ दुनू अनठा देलक। महाकान्तक पिता सुधीर जुआन-जहानक खेल बुझैत तँ रागिनीक पिता रमानन्द सम्पन्न परिवार आ पढ़ल-लिखल लड़का बुझि बेटीक भार उतड़ब बुझैत।
एम.ए. पास केलापर दुनूक विआह भऽ गेलै। सुधीरक परिवार एक पुरखियाह। अपनो भैयारीमे असकरे आ बेटो तहिना। ओना बेटी चारिटा, जे सासुर बसैत। परिवारक काजसँ महाकान्तकेँ कम्मे सरोकार। तेँ भरि-भरि दिन चौखड़ी लगा जुओ खेलैत आ शराबो पीबैत। जे पितो बुझैत। महाजनीक कारोबार, तेँ भरि दिन सुधीर रुपैयेक हिसाब-बारी आ धानेक लेन-देनमे व्यस्त रहैत। महाकान्तक क्रियाकलाप देखि एक दिन खिसिया कऽ सुधीर कहलखिन- ‘बौआ, बड़ कठिनसँ धन होइ छै। एना जे भरि-भरि दिन बौआइल घुमै छह, तइसँ कैक दिन लछमी रहतुहुन। तेँ किछु उद्यम करह।’
पिताक बात महाकान्त चुपचाप सुनि लेलक। किछु बाजल नहि। बेटाकेँ चुप देखि फेर कहलखिन- ‘पाँच लाख रुपैया दै छिअह, चिमनी चलाबह। उत्तरबरिया बाधमे अपने बीस बीघा ऊँच जमीन छह, ओहिमे चिमनी बना लाए।’
‘बड़बढ़ियाँ’ कहि महाकान्तो चुप भऽ गेल। पिताक मनमे जे जखने काजमे लगि जाएत तखने चालि-ढ़ालि बदलि जेतै। किएक तँ काज ओहन कारखाना होइत, जहिमे मनुष्य पैदा लैत।
आने साल जेकाँ अपन काज बचनू करए लगल। पथेरीक देखभालसँ लऽ कऽ हाट-बजार आ महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ ब्राण्डीक बोतल पहुँचबै धरि। महाकान्तो अपन आने साल जेकाँ नियमित काज करए लगल। सबेरे आठ बजेमे जलखै खा मोटर साइकिलसँ चिमनीपर चलि अबैत। चिमनीपर आबि तीनू गोटे -महाकान्त, सरुप, बचनू- भरि मन गाँजा पीबि महाकान्तक चिमनीक कार्यालयमे सुति रहैत। बारह बजेमे बचनू उठा दैत। उठितहि महाकान्त मुनसीसँ रुपैया मांगि बचनुएकेँ ब्राण्डी कीनैक लेल बजार पठा दैत आ अपने मुँह-हाथ धोए खाइले घरपर बिदा होइत। घरपर पहुँचि धड़-फड़ कऽ खाइत आ चोट्टे घुरि कऽ चिमनीपर आबि सुति रहैत, जे चारि बजे उठैत। बचनुओ बजारसँ शराब खरीद महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ दऽ दैत। कओलेजे जिनगीसँ दुनू गोटे -महाकान्तो आ रागिनियो- शराब पीबैत। ओना रागिनी ब्राण्डीये टा पीबैत मुदा महाकान्त सभ कुछ खाइत-पीबैत। गाँजा, भाँग, इंग्लीस, पोलीथिन, अफीम, ताड़ी सभ कुछ। जखन जे भेटल तखन सएह।
आइ जखन बचनू ब्राण्डीक बोतल लऽ रागिनी लग पहुँचल तँ रागिनीक नजरिमे नव विचार उपकलै। आन दिन रागिनी बचनूसँ बोतल लऽ रखि लैत। मुदा आइ आदरसँ बचनूकेँ हाथक इशारासँ पलंगपर बइसैक इशारा केलनि। दुनू गोटे, पलंगपर आमने-सामने बैसि गेल।
रागिनी बाजलि- ‘बहुत दिनसँ मनमे छल जे अहाँसँ भरि मन गप करितहुँ। मुदा अहाँ तते धड़फड़ाएल अबै छी जे किछु कहैक मौके ने भेटैए।’
बचनू- ‘गिरहतनी, हम तँ मूर्ख छी। अहाँ पढ़ल-लिखल छी। अहाँक गप्पक जबाव हमरा बुते थोड़े देल हएत।
रागिनी- ‘कोनो की हम अहाँसँ शास्त्रार्थ करब जे जबाव देल नञि होएत। अपन मनक व्यथा कहब। जे सभकेँ होइ छै।’
मनक व्यथा सुनि बचनू मने-मन सोचए लगल जे हम सभ गरीब छी, हरदम एकटा ने एकटा भूर फूटले रहैए। मुदा रागिनी तँ सभ तरहे सम्पन्न छथि। नीक भोजन, दुनू परानी पढल-लिखल। तखन की मनमे बेथा छनि जे हमरा कहती। मुदा तैयो मनकेँ असथिर कऽ रागिनी दिशि देखए लगल। मनमे उत्सुकता बढै़। मुदा रागिनीक चेहरामे, डूबैत सूर्य जेकाँ, मलिनता बढ़ैत।
रागिनी- ‘हमरासँ अहाँ बहुत नीक जिनगी जीबै छी।’
अपन प्रशंसा सुनि बचनू गद-गद भऽ गेल। आँखि चौकन्ना हुअए लगलै। मनमे ओहन-ओहन विचार सेहो उपकए लगलै जेहेन आइ धरि मनमे नहि आएल छलै। मुदा किछु बाजै नहि।
बचनूकेँ चौकन्ना होइत देखि रागिनी कहए लागलि- ‘जहिना अकासमे चिड़ैकेँ उड़ैत देखै छिऐ, तहिना अहूँ छी। मुदा हम पिजरामे बन्न चिड़ै जेकाँ छी। जखन पढ़ै छलहुँ तखन यएह सोचै छलहुँ जे कोनो कओलेजमे प्रोफेसर बनि जिनगी बिताएब। से सभ मनेमे रहि गेल। भरि दिन अंगनामे घेराएल रहै छी। ने ककरोसँ कोनो गप-सप्‍प होइए आ ने अंगनासँ निकलि कतौ जा सकै छी। तहूमे असकरुआ परिवार अछि। लऽ दऽ कऽ एकटा सासु छथि। ने दोसर दियादनी आ ने कियो दोसर। भरि दिन पलंगपर पड़ल-पड़ल देह-हाथ दुखा जाइए। जाधरि पढ़ै छलहुँ ताधरि दुनियाँ किछु आरो बुझाइत छल। मुदा आब किछु आर बुझाइत अछि। कखनो मन होइए तँ किछु पढ़ै छी नै तँ टी.बी. देखै छी। पढ़िये कऽ की हएत। ने दोसरकेँ बुझा सकै छी आ ने अपना कोनो काज अछि, जहि लेल सीखब। जानवरोसँ बत्तर जिनगी बनि गेल अछि। जहिना गाए-महीस भरि पेट खेलक आ खूँटापर बान्हल रहल तहिना भऽ गेल छी। मुदा मनुक्ख तँ मनुख छी। जाधरि अपना मनक बात दोसरकेँ नहि कहबै आ दोसरक पेटक बात नहि सुनबै, ताधरि नीक लगत। अनेरे लोक किअए पढ़ैए। जँ लकीरक फकीरे बनि जीबैक छैक।
सुखल मुस्की दैत बचनू बाजल- ‘गिरहतनी, अहाँकेँ कोन चीजक कमी अछि जे कोनो तरहक दुख हएत?’
रागिनी- ‘अहाँ जे कहलहुँ ओ ठीके कहलौं। किएक तँ एहनो बुझिनिहारक कमी नञि अछि। एहनो बहुत लोक अछि जे धनेकेँ सभ कुछ बुझैत अछि। मुदा धन तँ खाली शरीरक भरण-पोषण कऽ सकैत अछि, मनक तँ नहि। तीन सालसँ बेसी ऐठाम ऐला भऽ गेल मुदा ने एक्कोटा सिनेमा देखलहुँ आ ने एक्को दिन कतौ घुमै-फिरैले गेलहुँ। जाधरि बेटी माए-बाप लग रहैए ताधरि सभ कुछ -धन-सम्पत्ति कुटुम्ब-परिवार- अपन बुझि पड़ै छै, मुदा सासुर पाएर दैतहि सभ बीरान भऽ जाइ छै। तहिना माए-बापक बीच जे आजादी बेटीक रहै छै ओ सासुर ऐलापर एकाएक बन्न भऽ जाइ छै।
बचनू- ‘जँ कतौ जाइक मन होइए वा देखैक मन होइए तँ नैहर किअए ने चलि जाइ छी?’
रागिनी- ‘जहिना सासुर तहिना नैहरो भऽ गेल। जहिना सासुरमे पुतोहू बनि जीबैत छी तहिना नैहरोमे पाहुन बनि जाइ छी। जना हम्मर किछु एहि घरमे अछिये नहि। जे घर अप्पन नञि रहत ओहि घरमे ककरा कहबै जे हम फल्लाँ ठीन जाएब। जन्म देनिहारि माइयो आने बुझैए। तइ परसँ भाए-भौजाइक जुइत। ई तँ नञिहरक गप कहलौं आ अहिठामक जे होइए से हमहीं बुझै छी। बुरहा ससुर जखन आंगन औताह तँ बुझि पड़त जे जना अस्सी मन पानि पड़ल छनि। बूि‍ढ़ सासुसँ तँ कने हँसियो कऽ गप्प करताह मुदा हमरा देखिये कऽ झड़कबाहि उठि जाइत छनि। जँ कहियो माथपर नुआ नहि देखलनि तँ बुढ़ीकेँ अगुआ कऽ की कहताह की नहि, तेकर कोनो ठेकान नहि। भरि-भरि दिन, पहाड़ी झरना जेकाँ, आँखिसँ नोर झहरैत रहैए। कियो पोछनिहार नहि।’
बचनू- ‘गिरहतनी, हमरा बड़ देरी भऽ गेल। महाकान्त भाय बिगड़ताह।’
रागिनी- ‘अच्छा, चलि जाएब। कहै छलौं जे सदिखन तरे-तर मन औंढ़ मारैत रहै अए जे लछमी बाइ जेकाँ तलवार उठा परदा-पौसकेँ तोड़ि दी, मुदा साहस नै होइए। केरा भालरि जेकाँ करेज डोलए लगैए। आइ जखन अपन मनक बात अहाँकेँ कहलौं तँ मन कने हल्लुक बुझि पडै़ए।’
बचनू- ‘तखन तँ गिरहतनी हमहीं नीक छी।’
रागिनी- ‘बहुत नीक। बहुत नीक। एते काल जे अहाँसँ गप केलहुँ से जना बुझि पड़ैए जे जना पाकल घाबक पीज निकललापर जे सुआस पड़ै छै तहिना भऽ रहल अछि। आब सभ दिन एक घंटा गप्प कएल करब। अहाँ कियो आन छी। घरेक लोक छी की ने।’
एक टकसँ बचनू रागिनीक आँखिपर आँखि दऽ हृदए देखए लगल। तहिना रागिनियो बचनुक हृदए पढ़ैए लागलि।

No comments:

Post a Comment